प्रदेश

ग्राम करजू में सोयाबीन सहीत कई फसलों के दामों को लेकर विरोध प्रदर्शन किया

महावीर अग्रवाल

मन्दसौर ११ सितम्बर ;अभी तक ;   देश का किसान अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है किसान की आय दुगनी करने वाले अपनी आय जोड़ने में लगे हुए हैं। भाव नहीं मिलने से किसान अपनी सोयाबीन की फसलों को हकवा रहें हैं। सरकार बीमा नहीं देना चाहतीं हैं, घोर अन्याय किसानों के साथ किया जा रहा है ।किसानों के साथ सरकार धोखा कर रही है फसल बीमा का करोड़ों का रुपया पड़ा है परंतु पीड़ित किसानों को फसल बीमा का लाभ नहीं मिल पा रहा है यह केवल पूंजीपतियों की सरकार है, किसानो की नहीं है। स्वामी स्वामीनाथन की सिफारिश तत्काल सरकार लागू करना चाहिए ताकि किसान को लाभ प्राप्त हो सके । वर्तमान हालात से किसान परेशान और आक्रोशित हैं।
                                    उक्त बात जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष एवं किसान नेता शंकरलाल आंजना ने कही। श्री आंजना ने कहा कि सोयाबीन के दाम 6000रू. प्रति क्विंटल किए जाने की मांग को लेकर किसान सड़क पर खड़े हैं कोई सुनने वाला नहीं है सही दृष्टि से लागत मूल्य के आधार पर सोयाबीन का भाव 10000रू. प्रति क्विंटल किया जाना चाहिए साथ ही साथ अन्य फसलों के दामों में भी वृद्धि की जानी चाहिए । महंगाई तो बढ़ रही है परंतु सोयाबीन का भाव नहीं बढ़ रहा है अन्य फसलों का भाव भी नहीं बढ़ रहा है । दूसरी ओर मक्का, उड़द, ज्वार, अलसी, रायड़ा, गेहूं के दाम भी नहीं मिल रहें हैं किसान को सही भाव मिलेंगे तो काश्तकारो को आर्थिक लाभ होगा और फसल भी बोऐगे।
                                 मध्यप्रदेश में एनएसपी नहीं है जबकि तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक में एनएसपी  पद्धति लागू है वहां एनएसपी पद्धति से फसलों को खरीदा जाता है। आंजना ने कहा कि स्वामीनाथन की आयोग की सिफारिशों को तत्काल लागू की जाना चाहिए  50 प्रतिशत ज्यादा मुनाफे पर फसलों को खरीदी जाय, अच्छे बीजों के बीजों के दाम आधे मूल्य पर किसानों को दिये जाये गांव गांव मे ज्ञान चौपाल लगाकर किसानो को मार्गदर्शन दिया जायेगा। प्राकृतिक आपदा में किसान की मृत्यु होने पर उसके नामित को एक करोड़ रूपये की आर्थिक सहायता मिलना चाहिए। फसल बीमा की सुविधा पूरे देश में लागू होना चाहिए।
                                श्री आंजना ने जोर देकर कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में किसान का बहुत बड़ा योगदान रहता है इसलिए किसानों की मांगों को अनदेखा  करना अपने आप में कई सवाल खड़ा करता है।

Related Articles

Back to top button