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गुरु पूर्णिमा पर विशेष- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भगवा ध्वज को ही अपना गुरु क्यों माना?

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर १९ जुलाई  ;अभी तक;  किसी धार्मिक पंथ समुदाय जो अन्यान्य धार्मिक संगठनों में किसी व्यक्ति को ही आदर्श मानकर उसकी गुरु के रूप में पूजा की जाती हैं, किंतु वही व्यक्ति कालांतर में कभी-कभी पथभ्रष्ट हो जाता है, ऐसे सैकड़ों उदाहरण हम देख रहे हैं कि ऐसे अनेक गुरु या तो जेल में हैं तथा अनेकों पर व्यभिचार के मुकदमे चल रहे हैं और कुछ जमानत पर है।  कुछ गुरु ऐसे हैं जिनके चाल चलन प्रकट नहीं हुए किंतु जनसामान्य में उनके चरित्र पर उंगलियां उठाई जाती है?
                             शिक्षाविद श्री रमेश चन्द्र चंद्रे ने कहा कि  व्यक्ति में दोष उत्पन्न होना स्वाभाविक है इसीलिए विश्वामित्र जैसे उग्र तपस्वी जो गायत्री मंत्र के महान दृष्टा थे वे अपने तपो मार्ग से इंद्र की अप्सरा मेनका के कारण भटक गए थे, तथा उनका पुण्य क्षीण हो गया था।
उक्त सभी का अध्ययन करने के पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार ने किसी व्यक्ति को गुरु के स्थान पर मान्यता नहीं देकर भगवा ध्वज को गुरु के रूप में मानने की परंपरा का निर्माण किया और यही कारण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे विशाल संगठन ने गुरु के रूप में भगवा ध्वज को स्वीकार किया तथा प्रतिदिन उसके समक्ष भारत माता की रक्षा का संकल्प दोहराने के लिए भारत में ही नहीं विदेश में भी शाखाओं में स्वयंसेवकों द्वारा प्रार्थना की जाती है।
श्री चंद्रे ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व्यक्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता क्योंकि यदि किसी व्यक्ति के नेतृत्व में जब संगठन काम करता है तब कालांतर में वही व्यक्ति पथभ्रष्ट होकर राष्ट्र को नुकसान पहुंचा सकता है लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि संघ में व्यक्ति का महत्व नहीं है किंतु यदि व्यक्ति अपने सिद्धांतों, ईमानदारी, चरित्र एवं आचरण की सभ्यता को जब तक सुरक्षित रखकर राष्ट्र भाव से कार्य करता है तब तक उसका नेतृत्व स्वीकार्य है किंतु यदि वह उक्त चरित्र को सुरक्षित नहीं रख पाता है और मानवीय कल्याण को छोड़कर अपने ही स्वार्थ में रत रहकर राष्ट्र भाव से विरक्त हो समाज विरोधी कार्य करता है तो ऐसे व्यक्ति को, संघ छोड़ने में देरी भी  नहीं करता क्योंकि संघ के लिए ऐसे व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि,  यह भारत राष्ट्र व्यक्ति से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि  प्रत्येक गुरु पूर्णिमा पर संघ के द्वारा भगवा ध्वज की पूजा कर उसके समक्ष स्वयंसेवक अपनी समर्पण राशि, बंद लिफाफे में समर्पित करता है जिसका वह गुणगान नहीं करता और ना ही संघ करता है। यह राशि छोटी से लेकर बहुत बड़ी भी हो सकती है किंतु इसकी चर्चा करने से व्यक्ति के मन में ष्गुरु को दक्षिणाष् देने का अहंकार पैदा हो सकता है, इसलिए समर्पण करने वाला स्वयंसेवक और संघ इसकी चर्चा खुलकर समाज में नहीं करता तथा इसी राशि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वर्ष भर संचालन होता है जिसमें हजारों पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं, संघ प्रचारकों  के प्रवास खर्च एवं संघ कार्यालयों का मेंटेनेंस होता है। यह समर्पण राशि संघ की भाषा में गुरु दक्षिणा कहलाती है तथा इसी राशि से संघ का संचालन होता है इसके अतिरिक्त अन्य कोई स्रोत का उपयोग संघ नहीं करता।
इस पवित्र भगवा ध्वज में अपनी पूर्व परंपराओं को प्रकट करने की शक्ति है इसको नष्ट करने के लिए ना तो काल सक्षम है और ना ही यमदंड इस प्रकार के चिरंजीवी, उदयीमान, बाल सूर्य का तेज धारण करने वाले, प्राची के मुख कि अरुण ज्योति के समान इस पवित्र त्यागमय भगवा ध्वज को संघ ने अपना गुरु माना है।
यद्यपि गुरु को भारतवर्ष में भगवान का दर्जा दिया गया है तथापि वह गुरु उस अव्यक्त परमात्मा की  बराबरी नहीं कर सकता इसलिए भगवा ध्वज को ही ईश्वरीय स्वरूप में गुरु माना गया है।
उन्होंने कहा कि  सिख परंपरा में भी गुरु गोविंद सिंह जी ने किसी व्यक्ति को गुरु के स्थान पर नहीं रख कर गुरु ग्रंथ साहब को ही गुरु के स्थान पर प्रतिष्ठित किया है, क्योंकि हाड मांस का पुतला जो मनुष्य के रूप में हमारे सामने हैं उसमें कभी भी दोष उत्पन्न हो सकते हैं और यदि दोष उत्पन्न होते हैं तो उसके प्रति सबकी श्रद्धा खंडित होती है एवं गुरु शब्द की अवमानना हो जाती है।
एक मनुष्य के जीवन- काल में माता उसकी प्रथम गुरु होती है तथा लौकिक गुरु जो उसे स्कूल में पढ़ाते हैं तथा उसे जहां से भी शिक्षा प्राप्त होती है उसको गुरु मानने की परंपराएं भारत में प्रचलित है किंतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने परमपिता परमेश्वर की अभिव्यक्ति के रूप में भगवा ध्वज, जिसके नेतृत्व में अनेक धर्म युद्ध लड कर  धर्म की रक्षा की थी, उसके प्रति श्रद्धा भाव रखकर  अपने व्यक्तिगत कर्तव्य जो नीति सम्मत हो एवं राष्ट्रीय कर्तव्यों का निर्वाह करने के संकल्प को दोहराने के लिए राष्ट्रीय संघ सेवक संघ ने भगवा ध्वज को अपना गुरु माना है ।

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