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राग द्वेष कसाय को छोड़ो, दया करुणा धर्म को अपनाओ-साध्वी श्री रमणीक कुंवर 

महावीर अग्रवाल 
मंदसौर २५ अगस्त ;अभी तक ;   मानव जीवन में राग, द्वेष, लोभ, हिंसा सदैव मनुष्य की दुर्गति करने का ही काम करती है। यह सब हमें छोड़ना चाहिए और दया, करुणा, दान तप, तपस्या मानव को अपनाना चाहिए। जीवन में जो चीज छोड़ने योग्य है हम उसे पकड़े रहते है, लेकिन जो चीजें पाने योग्य है उनसे दूर रहते हैं। हमें इस पर चिंतन कर धर्म के सही स्वरूप को समझना चाहिए।
                                       उक्त उदगार परम पूज्य जैन साध्वी श्री रमणीक कुंवर जी म. सा. ने कहे । आपने रविवार को नई आबादी शास्त्री कॉलोनी में आयोजित धर्मसभा में कहा कि हमारे जीवन में राग द्वेष कषाय के जो अवगुण है हम उन्हें छोड़े और दया करुणा को अपनाये। जीवन में हमें दान पुण्य तप तपस्या का महत्व समझते हुए धर्म आराधना की ओर प्रवृत होना चाहिए।
                                     सांसारिक आसक्ति को छोड़े- साध्वी श्री रमणीक कुंवर जी ने धर्म सभा में सुमति कुमार युवक जो की संभ्रांत परिवार का था उसका वृतांत बताते हुए कहा कि सांसारिक मोह (आसक्ति) का जब तक हम त्याग नहीं करेंगे तब तक हम धर्म और संयम की मार्ग की ओर प्रवृत्त नहीं हो पाएंगे । जब 12 वर्ष तक सुमति कुमार जैसा युवा सांसारिक मोह को छोड़ संयम को अपना सकता है तो हम भी सांसारिक मोह  छोड़ सकते हैं
पुण्या श्रावक से प्रेरणा लो – साध्वी ने पुण्या श्रावक का वृतांत भी बताया। पुण्या श्रावक की धर्म आराधना, साधर्मी  भक्ति एवं सामायिक आराधना उत्कृष्ट प्रकार की थी। प्रभु महावीर ने राजा क्षणिक के सम्मुख उसकी प्रशंसा भी की थी। पुण्या श्रावक साधारण श्रावक था लेकिन उसने अपरिग्रह को जिस प्रकार अपनाया वह प्रेरणादायक है । वह जितनी जरूरत है उतना कमाता था शेष समय सामायिक में लगाता था। पुण्या श्रावक जब सामायिक करता था तब उसका पूरा ध्यान उसी पर रहता था। जीवन में हम भी पुण्या श्रावक जैसा पुण्य अर्जित करें । पुण्या श्रावक का पुण्य इतना जबरदस्त था कि प्रभु महावीर अपने प्रवचनों में उसकी धर्म आराधना की प्रशंसा करते थे। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। धर्मसभा में साध्वी चंदनाश्रीजी म. सा. ने भी अपने विचार रखें।

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