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विनम्रता का भाव कभी नहीं छोडना चाहिए – स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती

महावीर अग्रवाल

मंदसौर १८ अगस्त ;अभी तक ; श्री केशव सत्संग भवन खानपुरा मंदसौर पर दिव्य चातुर्मास पूज्यपाद 1008 स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी सरस्वती ऋषिकेश के सानिध्य में चल रहा है।  स्वामी जी द्वारा प्रतिदिन प्रात: 8.30 से 10 बजे तक श्रीमद् भागवद् महापुराण के एकादश स्कन्द का का वाचन किया जा रहा है।

रविवार को धर्मसभा में स्वामी श्री आनन्द स्वरूपानंदजी सरस्वती ने कहा कि अब चातुर्मासिक प्रवचनों के अंतर्गत एकादश स्कन्द में भगवान श्रीकृष्ण एवं उद्धव जी की वार्तालाप के बारे में बताया जायेंगा। आपने बताया कि शास्त्र के अनुसार गुरू ज्ञानी, अच्छी शिक्षा देने वाला, अच्छी बुरी की बात समझाने वाला होना चाहिए। वही शिष्य में भी कुछ गुण होना चाहिए शिष्य नम्र होना चाहिए उसके अंदर विनम्रता का भाव होना चाहिए, अभिमानी नहीं होना चाहिए गुरू से ज्यादा ज्ञान अर्जित कर लों धन अर्जित कर लो तो भी गुरू के प्रति विनम्रता का भाव होना ही चाहिए। कार्य करने में कुशलता होनी चाहिए। स्वामी जी ने कहा कि व्यक्ति को सभी के प्रति विनम्र तो होना ही चााहिए विनम्र व्यक्ति की हर तरफ तारिफ होती है   सम्मानिय होता है।

धर्मसभा में स्वामी जी ने कहा कि हमारी ममता सांसारिक जीवन ओर रिश्तों की जगह भगवान पर होना चाहिए मेरा शरीर, मेरा परिवार, मेरा घर के स्थान पर मेरे भगवान की सोच होना चाहिए। भगवान के प्रति कर्तज्ञता की हमे भगवत कृपा का पात्र बनाती है। आपने बताया कि हमें शब्दों के साथ अर्थो का भी ज्ञान होना चाहिए बेवजह के शब्द जिनके अर्थो का ज्ञान नहीं होता है उन्हें नहीं बोलना चाहिए।

कार्यक्रम के अंत में भगवान की आरती उतारी गई एवं प्रसाद वितरित किया गया। इस अवसर पर  ट्रस्ट के अध्यक्ष जगदीशचंद्र सेठिया, प्रहलाद काबरा,  मदनलाल गेहलोत, पं शिवनारायण शर्मा, राजेश देवडा, घनश्याम भावसार, राधेश्याम गर्ग, महेश गेहलोद, रामचंद्र कोकन्दा, डॉ प्रमोद कुमार गुप्ता, जय प्रकाश गुप्ता,  सहित बडी संख्या में महिलाएं पुरूष उपस्थित थे।  बडी संख्या में धमार्लुजन उपस्थित थे।

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