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टीकमगढ़ नगर की स्थाई समाधान के लिये पारम्परिक जल स्रोत कुआँ और बावड़ियों को पुनर्जीवित करने की जरूरत

पुष्पेंद्र सिंह
टीकमगढ़  15 जून !’अभीतक ‘टीकमगढ़ नगर के पारम्परिक जल स्रोत कुआँ और बावड़ियों को अगर सहेज कर रखा गया होता तो बारीघाट जल सयंत्र में पानी की कमी के बावजूद, यहाँ के वाशिंदो को कभी जल अभाव का सामना नहीं करना पड़ता!
                            उत्तरप्रदेश के पड़ोसी जिले ललितपुर ने अपना पानी देकर फिलहाल व्याप्त जल संकट को दूर कर दिया लेकिन उस समस्या के स्थाई समाधान के लिए उन जल श्रोतों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है ऐसा यहाँ के तमाम जागरूक नागरिकों का अभिमत है!
                                    सभी जानते हैं कि बुंदेलखंड के टीकमगढ़ छतरपुर,पन्ना जिलों के रियासत कालीन दूरदर्शी शासकों ने अपनी राजधानी के इन शहरों में वैज्ञानिक सोच के तहत,बावरी और कुओं को इस तरह से निर्मित करवाया था कि भले गर्मी कितनी ही बढ़ जाय, लेकिन उनमें पानी की कमी नहीं होगी! यद्यपि समय समय पर राज्य सरकारें’ जल है तो कल है, ‘पानी रोको अभियान’और जल संरक्षित करने के तमाम अभियान चलाये गए लेकिन हमारे जनप्रतिनिधि पानी के मामले में लापरवाह ही रहे!
                               पिछले 25वर्षों के दरम्यान नपा में सत्तासीन रहे जनप्रतिनिधियों ने उन जल श्रोतों के अस्तित्व की अनदेखी करके उन्हें नेस्तनाबूत कर दिया!जिसका परिणाम ये हुआ कि स्थानीय जनता नगरपालिका की जल आपूर्ति पर निर्भर रह गयी गर्मियों के बढ़ते बोरवेल भी औसत पानी देने में असफल हो जाते हैं तमाम जागरूक लोगों का मानना है कि यदि उन बावरी और कुओं को संरक्षित किया जाता तो नगर की आवादी को ‘जलसंकट ‘का सामना नहीं करना पड़ता!पानी के संरक्षण के लिए सरकार भले करोड़ों रूपये खर्च कर रहीहै समय समय पर तमाम अभियान भी चलाती है लेकिन वे अभियान मात्र औपचारिक हो कर रह जाते हैं।
                                  सभी जानते हैं कि जिले के चंदेलकालीन सैकड़ों तालाबों का अस्तित्व संकट में है लोगों ने उनकी भूमि पर कब्ज़ा कर लिया और वे दिनों दिन सिकुड़ते जा रहे हैं उनके भराव के प्राकृतिक रास्ते भी लोगों के कब्जे में हैं इसलिए वर्षा काल में उनमें क्षमता के अनुसार जलभराव नहीं हो पाता!सम्बंधित विभाग के जिले में पदस्थ अफसर भी लापरवाह हैं इसकी वानगी के तौर पर सिंचाई विभाग के ऑफिस और उसकी कॉलोनी के सामने महेंद्र सागर तालाब से निकली नहर को पाट कर उन पर अपने घर बना लिए, लोगों की शिकायत के बावजूद भी सिंचाई विभाग के अफसरों ने अपनी केनाल को मुक्त करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाये!यही हालात वन विभाग के हैं जहाँ करोड़ों रूपये खर्च होने के बावजूद वन बचाओ अभियान दम तोड़ रहा हैं जिले के जंगलों का एरिया कम होता जा रहा है और करोड़ों रूपये का बजट बढ़ता जा रहा हैं!पिछले 20वर्षों में पौधरोपण के लिए जितनी राशि व्यय की गयी उसका यदि पचास प्रतिशत पौधों को संरक्षित किया जाता तो हज़ारों पेड़ अपने यौवन पर इतरा रहे होते!समय रहते इन मामलों में हमें चेतने की आवश्यकता है!

 

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