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पापकर्म की प्रशंसा मत करो उसका प्रायश्चित करो-योग रुचि विजय जी

महावीर अग्रवाल 
मंदसौर २६ जुलाई ;अभी तक;  मनुष्य भव में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी को पाप कर्म व पुण्य कर्म का भेद समझना चाहिए। जो कर्म हमें दुर्गति की ओर ले जाएं तथा हमारा संसार का भव बडाये वह पाप कर्म ही है। जो कर्म हमें आत्म सुख की और प्रवृत्त करें वही पुण्य कर्म है। हम अपने जीवन में पाप कर्म से बचने की पूरी कोशिश करें लेकिन जाने अनजाने में यदि हमसे पाप कर्म हो जाए तो उसका हमें प्रायश्चित जरूर करना चाहिए।
उक्त उद्गार परम पूज्य पन्यास प्रवर योग रुचिविजय जी महाराज साहब ने नया आबादी स्थित श्री आराधना भवन के हाल में आयोजित धर्म सभा में कहे। आपने शुक्रवार को यहां धर्मसभा में कहा कि बुरे कर्म का फल बुरा ही होता है इसलिए बुरे कर्म अर्थात पाप कर्म करने से हमें बचना ही चाहिए। जीवन में हमें पाप करने की प्रशंसा से भी बचना चाहिए तथा पाप कम होने पर मन में पश्चाताप के भाव लाना चाहिए।
चार्तुमास में जमीकंद का त्याग करें- संत श्री ने कहा कि जीवन में हमें जमीकंद (आलू प्याज अन्य जड़ वाले पदार्थ) का आहार करने से बचना चाहिए लेकिन पूरे वर्ष जमीकंद का त्याग नहीं कर सको तो कम से कम चार्तुमास के चार महीने में जमीकंद का त्याग अवश्य करना चाहिए।
संत श्री की प्रेरणा से जमीकंद का त्याग किया श्रावक श्राविकाओं ने-  योग रुचि विजय जी महाराज साहब की अमृतमयी वाणी से प्रभावित होकर आराधना भवन में प्रतिदिन प्रवचन में आने वाले अधिकांश श्रावक श्राविकाओं ने जमीकंद (आलू प्याज) का चार माह तक त्याग करने का संकल्प लिया। संत श्री ने उन्हें जमीकंद का आहार नहीं करने के पंचकाण भी कराए। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ अध्यक्ष दिलीप रांका ने किया।

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