योगिराज स्वामी टेऊँरामजी महाराज का 138वें जन्मोत्सव पर पंच दिवसीय कार्यक्रमों का शुभारंभ
स्वामी टेऊँराम महिमा-
जिसका आश्रम- वही आकर बनागा.
भक्तों के वश में रहे,कहे भगवान ! योग क्षेम तांका करे,सुख सम्पत्ति मान !!
परमात्मा प्रत्येक युग में भक्त-व संत-महात्माओं के दुःख दूर करते हैं ! भक्त नामदेव, सैना, सधना, प्रहलाद, ध्रुव, कबीरदास आदि भक्तों के समय-समय पर दुःख कष्ट- दूर कर उनके कार्य पूर्ण किये हैं ! भक्त धन्ना के कदू के खेत से गेहूँ बना दिये, तो ज्ञानेश्वर के कहे अनुसार एक भैंसे से गायत्री मंत्र उच्चारण करवा दिए ! अर्थात् जब कभी भी भक्तों पर कष्ट- विपत्ति आयी है, तो भगवान ने उनकी रक्षा की हैं ! भक्तों का मान बढ़ाया है !
इसी प्रकार सिंध प्रदेश के युगपुरुष सद्गुरु स्वामी टेऊँराम जी महाराज को भी जीवनकाल में अनेक विपत्तियों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा !
पर कहते हैं न कि जिसे भगवान पर पूर्ण विश्वास होता है ! उसका बाल भी बांका नहीं होता ! स्वामी जी का भी भगवान पर पूर्ण विश्वास था ! मजहबियों-भेदवादियों द्वारा कितने ही कष्ट-दुख दिये गये ! पर मुख से कभी भी किसी के प्रति कुछ भी नहीं कहा ! किसी को कड़वा शब्द तक नहीं बोला ! कितने परिश्रम, सेवा भाव से रेत के टीले पर आश्रम बनवाया था ! वह सब ईर्ष्यालुओं ने जला दिया ! कुआँ तोड़ दिया ! बगीचे को तहस-नहस कर दिया ! पेड़-पौधे काट दिए ! झोंपड़ियाँ, चबूतरे, भण्डारगृह सभी में आग लगा दी ! जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता ! उस समय ऐसा आभास हो रहा था मानो कि वह प्रलयकाल की अग्नि हो ! जो सच्चे प्रभु भक्त होते हैं वे इस कठिन परीक्षा में “प्रभु के दरबार” में पास हो जाते है ! जिन-जिन संत- पुरुषों ने सच्ची भक्ति की हैं ! उन्होंने पहले दुःख ही पाया है ! सोना जितना जलाया जाता है ! उतनी ही उसमें चमक अधिक होती हैं ! संत-महात्माओं का जीवन भी उसी प्रकार का होता है ! सत्यता में अनेक कठिनाइयां आती हैं !
इतना सब कुछ होने पर किसी से कुछ भी नहीं कहा ! ये सब तो प्रभु परमात्मा की लीला है ! सब देखते रहो ! अनेक लोगों ने स्वामी जी व संतों से कहा- आप सामान निकाल लो ! किन्तु स्वामी जी ने कहा- “जिनका सामान है- वह ही अपने आप निकालेगा !” जिसने आश्रम बनवाया है- प्रेरणा दी हैं ! वही सब कुछ आकर करेगा ! हमारा कुछ भी नहीं है ! इतने निर्मोही- विरक्त- फकड़ थे- युगपुरुष सद्गुरु स्वामी टेऊँराम जी महाराज !
इसी प्रकार सिध्द योगी महापुरुष स्वामी टेऊँराम जी महाराज के आश्रम को जला देने पर भी किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं ! न दुःख ! न क्रोध ! न कोई मन में क्षोभ ! अपनी मस्ती में मस्त ! फिर क्या था ! देखो- भगवान की लीला !
लक्ष्मी नारायण धार अंग्रेजी भेष !
किसने आग लगाई है,
*कहो हमें दरवेश !!
स्वयं प्रभु परमात्मा “भगवान श्री लक्ष्मी नारायण” यूरोप-यूरोपियन (अंग्रेजी अफसर) का रूप धारण कर स्वामी जी के पास आये और सब कुछ पूछा – किसने जलाया है..?? कैसे जला..? स्वामी जी अपने ध्यानमग्न ! मंद- मंद मुस्करा रहे थे ! वो पहचान गए थे ! ये स्वयं परमात्मा रूप धारण कर आये है ! फिर स्वामी जी कहा- “आपका आश्रम है ! आपको ही बनना है !” फिर ऐसी लीला बनी कि कुछ समय बाद स्वयं प्रभू- परमात्मा ने पुनः “श्री अमरापुर आश्रम”(दरबार) का निर्माण करवा दिया और अपने भक्त स्वामी जी का मान बढ़ाया !गीता में बताया गया कि “मेरे भक्त कैसे होते हैं !” जो अनुकूल वस्तु पाकर हर्षित नहीं होते और प्रतिकूल वस्तु पाकर दुःखी नहीं होते ! जो चीज नष्ट हो गई ! उसका शोक नहीं करते तथा जो वस्तु उसके पास नहीं है ! उसकी आकांक्षा नहीं करते ! मान-अपमान में भी समान रहते है ! आसक्ति से रहित रहते है ! जीवनभर ऐसी वृत्ति रखकर सदैव प्रभु परमात्मा के चिंतन में स्थित रहते है ! अनेक कठिनाइयां आने पर मन विचलित नहीं करते ! न ही कभी किसी का अहित सोचते है और न ही कभी कड़वा शब्द बोलते है ! परमात्मा की रजा में राजी रहते है ! ऐसे ही थे- सर्वगुण सम्पन्न परम योगीश्वर स्थितप्रज्ञ सद्गुरु श्री स्वामी टेऊँराम जी महाराज !