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अधिक मास कैसे बना और क्या है इसका महत्व

  *रमेशचन्द्र चन्द्रे*
      मंदसौर १७  जुलाई ;अभी तक;   सतयुग में एक दैत्य राजा हिरण्यकश्यपु हुआ था जो भक्त प्रहलाद का पिता था। कठोर तपस्या के कारण ब्रह्मा जी से उसको अस्त्र शस्त्र एवं अन्य वरदानों सहित दिन- रात एवं ब्रह्मा के बनाए हुए *वर्ष के 12 माह में  किसी भी माह में उसकी मृत्यु नहीं हो,  इस प्रकार का वरदान प्राप्त था। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह निरंकुश हो गया तथा उसने अपने आप को ही विष्णु का अवतार घोषित कर प्रजा पर अत्याचार करने लगा इसलिए हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए विष्णु भगवान को तेरहवें माह का निर्माण करना पड़ा।
                               तब ही से प्रत्येक तीसरे वर्ष में एक अधिक मास आता है परंतु हम सभी जानते हैं कि *सूर्य की 12 संक्रांति के आधार पर वर्ष में 12 माह होते हैं और  प्रत्येक माह का  कोई न कोई देवता और स्वामी आवश्य है* किंतु प्रत्येक 3 वर्ष में आने वाले इस *अधिक  मास* का ही कोई स्वामी नहीं होने के कारण सर्वत्र इसकी अवमानना एवं निंदा होती थी और इस माह में धार्मिक गतिविधियां भी नहीं होती थी तब कालांतर में भगवान श्री कृष्ण से इस अधिक मास अपने आप को प्रतिष्ठित एवं सम्मानित तथा पवित्र मास घोषित करने की प्रार्थना की तो श्रीकृष्ण ने इस “अधिक मास” को अपने दिव्य गुण एवं पवित्रता प्रदान करते हुए *इसको “पुरुषोत्तम मास” के नाम से प्रतिष्ठित करते हुए* यह वरदान दिया कि इस माह में जो भी धार्मिक अनुष्ठान , भगवत कथा अथवा तीर्थ यात्रा, ईश्वर दर्शन, एवं पवित्र नदियों में स्नान करके प्रभु भक्ति मे लीन रहेगा तथा मन वचन और कर्म से पवित्र उद्देश्य लेकर  दान पुण्य करेगा उसे मनचाहा यथा योग्य फल प्राप्त होगा।
                                  *तभी से इस अधिक मास को पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है अर्थात इसमें ईश्वर का निवास होता है* भगवान की कृपा से इस बार यह मास श्रावण मास के रूप में आया है इसलिए भगवान शिव से जुड़े अनुष्ठान करने वाले मनुष्य के जीवन में निश्चित ही अनुकूलताएं आएगी। अतः यह मास हम सबके लिए धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन, चिंतन, मनन एवं आत्म निरीक्षण, अनुशीलन एवं आलोडन का महीना है! आपके लिए यह जानकारी संक्षिप्त में प्रस्तुत है।🙏🌹

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