प्रदेश

बीजेपी के अजेय गढ़ रहली को जितने की जुगत में कांग्रेस 

रवीन्द्र व्यास 

 कहते हैं कि चौदहवीं शताब्दी में रहली को  अहीरों ने बसाया था | महराज  छत्रसाल  के राज्य का प्रमुख राज्य रहा , उन्होंने   इसे पेशवा बाजीराव को 1731 में तोहफे दे दिया था |  अकूत पुरा संपदा  से संपन्न यह क्षेत्र माना जाता है |  रहली का  सूर्य मंदिर भारत के सूर्य मंदिरों की सूचि में  छठा स्थान रखता है। रहली का सूर्य मंदिर सुनार एवं देहार‘ नदियों के पवित्र संगम पर स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार रहली के सूर्य मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में चंदेल राजाओं ने किया था। कर्क रेखा में स्थित होने के कारण इस  पूर्वाभिमुख सूर्य मंदिर की महत्ता अत्यधिक है।  

          मध्यप्रदेश  की राजनीति में   सागर  जिले की  रहली  विधानसभा  क्षेत्र  का  अपना एक अलग महत्व है | बीते ३८ वर्षों से इस विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस ने जीतने के तमाम जतन  किये पर हर बार मुंह की खाना पड़ी  | हालंकि यह वह  विधान सभा क्षेत्र है जहाँ 1977 की आंधी भी कांग्रेस को डिगा नहीं पाई थी  | पर कांग्रेस का यह राज यहाँ ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सका | 1985 में यहां के लोगों ने एक ऐसे जनप्रतिनिधि को चुना जो अपने मतदाताओं को भगवान मानता है | नाम है गोपाल भार्गव , मध्य प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री  |  गोपाल जी ने विधान सभा में ऐसी गोपाल गांठ लगाई की १९८५ से अबतक यहाँ बीजेपी का ही  ध्वज फहरा रहा है | कांग्रेस ने अनेकों जतन किये पर हर बार नाकाम ही रहे |

                                 दमोह लोकसभा की विधान सभा सीट रहली का    विधानसभा  क्षेत्र का  अधिकांश इलाका ग्रामीण क्षेत्र का है  गढ़ाकोटा ,रहली तहसील और सागर तहसील के परसोरिया आर आई सर्किल के ८ पटवारी हल्का और  रहली,गढ़ाकोटा ,शाहपुरा ,नगर पंचायत क्षेत्र हैं और ढाना क्षेत्र आते हैं | कुल   2 लाख 35  हजार 269 मतदाता वाले इस विधानसभा वाले क्षेत्र में  1  लाख 24  हजार 201 पुरुष ,  1 लाख 11  हजार 68  महिला मतदाता हैं। जिनमे सामान्य वर्ग के 37 फीसदी , ओबीसी 30. 42 फीसदी अजा  के 18. 97 फीसदी अजजा के 9. 61 फीसदी अन्य १ फीसदी मुस्लिम वर्ग के ३ फीसदी मतदाता वाला यह क्षेत्र हिन्दू आबादी बाहुल्य है | हालांकि हिन्दू वर्ग के जातीय विभाजन की तमाम कोशिशों के बावजूद  यहां से अजेय गोपाल भार्गव को हराया नहीं जा सका | 

                                   बुंदेलखंड की अन्य विधान सभा  क्षेत्र  की  तरह यहां  का मुख्य आर्थिक आधार  कृषि  पर ही निर्भर है |  इस विधानसभा क्षेत्र  में कार्यशील लोगों की अधिकता  यह बताती है कि यह कर्म प्रधान लोगों  का क्षेत्र है |   विधानसभा क्षेत्र  1952 से 1980 तक  कांग्रेस का अजेय गढ़  था | 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में भी  यहां से कांग्रेस के महादेव प्रसाद ने चुनाव जीता था ।  1985 से यहां का राजनैतिक परिदृश्य कुछ ऐसा बदला की यह सीट बीजेपी का गढ़ बन गई | 1985 से 2018 तक हुए आठ चुनावों में यहां से बीजेपी के गोपाल भार्गव चुनाव जीतते रहे |  कांग्रेस ने यहाँ हर चुनाव में सामाजिक और जातीय समीकरणों को आधार बनाकर हर बार प्रत्यासी बदले पर गोपाल भार्गव को कोई मात नहीं दे सका | मध्यप्रदेश के संभवतः यह अकेला विधान सभा क्षेत्र होगा जहाँ पिछले 35 वर्षों में तमाम जातीय विद्वेष के षड्यंत्र यहाँ की जनता ने विफल किये |  कहते हैं की यहाँ के जनता के दिलों में आज भी गोपाल भार्गव राज करते हैं |

रहली  विधानसभा क्षेत्र को  जातीय समीकरणों  से मुक्त  क्षेत्र   माना जाता है |  इस  विधानसभा सीट पर मतदाताओं का  बीजेपी के गोपाल भार्गव पर ऐसा अटल  विश्वास  है कि पिछले आठ विधान सभा चुनावों में  उन्ही को जिताया है | हालंकि मतदाताओं के विचारों में उतार चढ़ाव आता जाता रहा है पर विश्वास गोपाल जी के प्रति ही व्यक्त किया है |   जातीय समीकरणों को देखे तो यहाँ बहुतायत में पिछड़ा वर्ग के मतदाता हैं किन्तु उनकी पहली पसंद गोपाल भार्गव हैं | कांग्रेस ने हर चुनाव में गोपाल भार्गव को शिकस्त देने के लिए  पिछड़ा वर्ग के अलग अलग  वर्ग के लोगों को मैदान में उतारा पर हर बार कांग्रेस को हार का ही मुंह देखना पड़ा | गोपाल भार्गव को इन चुनावों में 1998 में सबसे कम 8205 मत से और सबसे ज्यादा 2013 के चुनाव में 51765 मत से जीते | हर चुनाव में उनका औसत मत 54 प्रतिशत से ज्यादा ही रहा है | चुनावी राजनीति के इस खेल के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं गोपाल भार्गव | 2013 के चुनाव में  तो वे घर बैठे चुनाव जीते थे , उन्हें  जनता पर इतना विश्वास था कि प्रचार में ना भी जाए तो चुनाव जीत जाएंगे | हुआ भी यही  वे  रिकार्ड मत से चुनाव जीते ,इस चुनाव में उन्हें 63  फीसदी से ज्यादा मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया था |

  नगर पालिका से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले  गोपाल भार्गव    1982 से 1984 तक गढ़ा कोटा के नगरपालिक अध्यक्ष रहे | 1985 में उन्हें बीजेपी से टिकट पाने के लिए खासी मशक्कत करना पड़ी थी | बीजेपी  का ही एक वर्ग नहीं चाहता था की रहली सीट पर  गढ़ा कोटा के किसी नेता को टिकट दिया जाए | यहाँ पार्टी के दिग्गज नेताओं  की पारखी नजरों का ही कमाल था कि उन्होंने गोपाल  भार्गव को चुना |

रहली से इस अजेय  गोपाल भार्गव के मुकाबले में कांग्रेस ने दमोह के मुकेश नायक को प्रत्याशी बनाया था |( मुकेश नायक 1985 में  दमोह विधानसभा सीट से मात्र 92 से जीत पाए थे )| कांग्रेस के इस युवा नेता को स्थापित करने के लिए कांग्रेस  अतीत के इतिहास को देखते हुए रहली सीट को कांग्रेस के अनुकूल माना था | किन्तु कांग्रेस के यह चाल यहाँ उलटी पढ़ गई |

2018 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर एक बड़ा दाव  खेला था | गढ़ाकोटा निवासी और बीजेपी नेता  कमलेश साहू को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया |    सीधे  मुकाबले में  ग्रामीण इलाके वाली इस विधानसभ सीट पर  कांग्रेस  का किसान हित वाला  घोषणा पत्र  भी  बेअसर रहा  |  कांग्रेस का पिछड़ा वर्ग का कार्ड भी काम नहीं आया | कांग्रेस ने एक बड़ी तैयारी  के साथ बीजेपी के कमलेश साहू को कांग्रेस से प्रत्यासी बनाया था |

रहली  विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण अब तक भले बेअसर रहे हों , पर पिछले चार वर्षों से कांग्रेस इस अभियान में जुटी है कि यहां  पिछड़ा वर्ग को एक जुट किया जाए | इसके लिए आसपास के विधान सभा क्षेत्रों में भी बाकायदा एक तरह से अभियान चलाया जा रहा है | | 

रहली के अब तक के विधायक 

2018  :– गोपाल भार्गव _बीजेपी      

2013    गोपाल भार्गव_ बीजेपी   

2008 ,  – गोपाल भार्गव _बीजेपी      

2003  –   गोपाल भार्गव _बीजेपी   

1998 _  गोपाल भार्गव _बीजेपी

1993 _  गोपाल भार्गव _बीजेपी

1990 _   गोपाल भार्गव _बीजेपी

1985 _ गोपाल भार्गव _बीजेपी

1980 _ महादेव प्रसाद _कांग्रेस

1977  _ महादेव प्रसाद _कांग्रेस

1972  _ गौरी शंकर पाठक _कांग्रेस

1967  _ एन  पी तिवारी  _ जनसंघ

1962 _  मणिभाई जे पटेल _कांग्रेस

1957  _  मणिभाई जे पटेल _कांग्रेस

1952 _  बाला प्रसाद बाला जी  _कांग्रेस

यहां हुए अब तक के १५ विधान सभा चुनावों में 1952 से 1980 तक के सात चुनावों में कांग्रेस ६ बार और एक बार जनसंघ ने चुनाव 1967 में जीता था | १९८५ से यहां लगातार चुनाव जीतने  वाले बीजेपी के गोपाल भार्गव को  हारने   के लिए कांग्रेस के सारे प्रयास अब तक निरर्थक साबित हुए | उम्र की सीमा का दबाव इस बार उन पर पार्टी के ही नेताओं द्वारा डाला जा रहा है | १ जुलाई 1952 को  जन्मे गोपाल भार्गव ७१ वर्ष के हो चुके हैं , उन पर पार्टी ७० वर्ष वाला फार्मूला अगर लागू करती है तो उनका टिकट काट कर उनके इकलौते पुत्र को यहां से बीजेपी उतार सकती है | इस तरह की अटकलबाजियां यहां जोर शोर से लगाईं जा रही हैं | पार्टी के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान यहां दमोह वाली गलती दोहरा सकते हैं , इसके पीछे वजह बताई जाती है कि वे सागर संभाग और खास कर सागर जिले के राजनैतिक निर्णय  मंत्री भूपेंद्र सिंह के कहने पर लेते हैं | भूपेंद्र सिंह की गोपाल भार्गव और गोविन्द सिंह से अनबन जग जाहिर है | इन हालातों में यहाँ इस बार चुनाव स्थितियां बड़ी ही रोचक रह सकती हैं |

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