प्रदेश

छतरपुर जिले में अधिकांश सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला 

रवीन्द्र व्यास 
                                          छतरपुर जिले की 6 विधानसभा सीटों पर इस बार चुनावी  घमासान उग्र रूप में देखने को मिल रहा है | चुनाव के शुरूआती चरण में ही आरोप प्रत्यारोप का दौर व्यक्तिगत स्टार पर पहुँच गए हैं | उस पर भी अब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ने वर्षों के साथियों को एक दूसरे का राजनैतिक दुश्मन बना दिया है | यही कारण है कि जिले की ६ में से पांच सीटों पर त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय संघर्ष की स्थितियां निर्मित कर दी हैं | 
                                   
                                            सियासत के  समीकरणों को देखते हुए बीजेपी ने  अनुसूचित जाती की सीट के अलावा पांच सीटों पर हर वर्ग को साधने का प्रयास किया है | बीजेपी ने दो पिछड़ा वर्ग से दो ब्राम्हण वर्ग से और एक ठाकुर वर्ग से प्रत्यासी मैदान में उतारे हैं | जब की कांग्रेस ने भी इसी फार्मूले का अनुसरण किया है | दोनों ही दलों का यह फार्मूला उनके कार्यकर्ताओं को रास नहीं आया है | नतीजतन दोनों ही दाल के बागी निर्दलीय और अन्य दलों से टिकट लेकर मैदान में उतर आये  हैं |   
 
                                               ४८ महाराजपुर विधानसभा सीट कभी बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक हुआ करती थी | २००८ के परिसीमन के बाद से इसका सियासी मिजाज कुछ ऐसा बदला है कि यहाँ से  2013 में बीजेपी जीती | 2018 में कांग्रेस के सबसे युवा प्रत्याशी नीरज दीक्षित ने बीजेपी के प्रत्यासी मानवेन्द्र सिंह को 14005 मतों के बड़े अंतर से हराया था | कांग्रेस ने नीरज को फिर से उम्मीदवार बनाया है जबकि बीजेपी ने मानवेन्द्र सिंह के पुत्र कामख्या प्रताप सिंह को प्रत्यासी बनाया है | कामाख्या के नाम की घोषणा के साथ ही उनका पार्टी में विरोध शुरू हो गया था | विरोध स्वरुप कई बीजेपी से जुड़े नेताओं ने  निर्दलीय रूप से नामंकन भरा है | कांग्रेस प्रत्यासी को भी अपने दल के बागी प्रत्यासी अजय दौलत तिवारी के विरोध का सामना करना पढ़ रहा है | दौलत तिवारी समाजवादी पार्टी के टिकट पर  चुनावी रण में हैं | इस सीट पर बसपा ने भी सशक्त प्रत्यासी महेश कुशवाहा को मैदान में उतारा है , जिसके कारण यहां प्रारंभिक टूर पर चतुष्कोणीय संघर्ष की स्थिति बन रही है |
                                     ४९  चंदला विधानसभा क्षेत्र अजा के लिए परिसीमन के बाद से सुरक्षित क्षेत्र बनाया गया है | इस विधानसभा क्षेत्र से 2008 से लगातार बीजेपी चुनाव जीत रही है | 2018 में बीजेपी के   राजेश प्रजापति कांग्रेस के   हर प्रसाद  अनुरागी से मात्र  1177 मत के अंतर से चुनाव जीते थे | जबकि    2013  में उनके पिताश्री  आर डी प्रजापति  बीजेपी   के टिकट पर   37397  मत से जीते थे  । इस बार बीजेपी ने राजेश प्रजापति के स्थान पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष की पसंद पर दिलीप अहिरवार को प्रत्याशी बनाया है | जबकि कांग्रेस ने फिर से हर प्रसाद अनुरागी उर्फ़ गोपी मास्टर पर विश्वास जताया है | यहाँ कांग्रेस के बागी पुष्पेंद्र अहिरवार सपा से जबकि डी  डी  अहिरवार के बसपा से चुनाव लड़ने के कारण यहाँ भी चतुष्कोणीय संघर्ष की स्थितियां बनी हैं | उत्तर प्रदेश की सीमा से सिटी इस विधानसभा सीट पर सपा और बसपा का अच्छा खाशा असर देखने को मिलता है | 
                   
                                        50 राजनगर विधानसभा सीट  जिले की एक मात्र ऐसी सीट है , जहाँ इसके निर्माण के बाद से ही कांग्रेस का कब्जा है |  यहाँ समाजवादी पार्टी से अपनी राजनीति शुरू करने वाले विक्रम सिंह उर्फ़ नाती राजा २००८ से विधायक हैं | हर चुनाव में उन्हें अपनों के ही विरोध का सामना करना पड़ा | 2008 का चुनाव वे ३०३२ मत से जीत तो गए पर उन्हें इस चुनाव में  कांग्रेस  के बागी  शंकर प्रताप सिंह (मुन्ना राजा ) बीएसपी से चुनावी मैदान में आ गए थे  ।2013  में बीजेपी ने उनके मुकाबले के लिए डॉ रामकृष्ण कुसमरिया  को मैदान में उतारा था वे भी  8607 मत से हार गए थे |  201 8 में  उन्हें कांग्रेस के प्रमुख नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के विरोध का सामना करना पड़ा , सत्यव्रत जी के पुत्र नितिन चतुर्वेदी कांग्रेस से बागी होकर सपा से चुनाव लड़े थे , चतुष्कोणीय मुकाबले में   विक्रम सिंह (नाती राजा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी के  अरविन्द पटेरिया को  ७३२ मत से पराजित किया था | इस बार फिर ये दोनों प्रत्यासी चुनावी रण में हैं | दिलचस्प ये है  कि  अंतर विरोध का सामान दोनों को ही करना पढ़ रहा है | यहां बीजेपी के बागी डॉ घासीराम पटेल के बसपा से खड़े होने के कारण त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बन गई है | अरविन्द अति आत्मविश्वास से ग्रस्त हैं तो नाती राजा को आज भी अपनी रियासत पर भरोषा है | वहीँ बसपा प्रत्याशी  डॉ पटेल को  अपने जातीय समीकरण पर विश्वास है | 
               
                                      ५१ छतरपुर जिले का सबसे दिलचस्प मुकाबला छतरपुर में ही देखने को मिल रहा है | यहाँ कांग्रेस ने वर्तमान विधायक आलोक चतुर्वेदी )पज्जन ) को प्रत्याशी बनाया है |  उनका मुख्य मुकाबला बीजेपी की ललिता यादव से है | कांग्रेस प्रत्याशी को अपनों के ही विरोध का सामना करना पढ़ रहा है | कभी उनके खाश रहे  डील मणि सिंह बसपा के टिकट पर, और बेनी प्रसाद चंसौरिया सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में आ गए हैं |  इस मुकाबले में कौन कितने वोट काटता है इस पर हार जीत का फैसला होगा |पर इस विधानसभा क्षेत्र में दिलचस्प समीकरण देखने को मिल रहे हैं |  बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले छतरपुर विधानसभा क्षेत्र में जिसमे अधिकाँश इलाका नगरीय क्षेत्र का है , यहाँ लोगों में  बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है | शायद यह बदलते समीकरणों का ही असर है कि  प्रत्याशी   व्यक्तिगत आरोप लगाने  से भी नहीं चूक रहे हैं | 2018 में कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी ने बीजेपी की अर्चना सिंह को 3495 मत से पराजित किया था | हालांकि 2013 में भी वर्तमान  प्रत्याशी आमने सामने थे ,उस समय बीजेपी की ललिता यादव ने कांग्रेस के आलोक चतुर्वेदी को 2217 मत से पराजित किया था | २०१३ के चुनाव में निर्दलीय रूप से खड़े हुए डील मणि सिंह को १७ हजार से ज्यादा मत मिले थे | उनको मिले मत आलोक चतुर्वेदी की हार की बड़ी वजह बने थे | हालंकि इस बार परिस्थितियां बदली हैं मतदाता ज्यादा  जागरूक हुए हैं || जिसका असर चुनाव परिणाम में देखने को मिलेगा | 
               
                                        52 बिजावर में भी चुनावी संघर्ष चतुष्कोणीय हो गया है | यहाँ बीजेपी ने राजेश शुक्ला को प्रत्याशी बनाया है | जबकि कांग्रेस ने चरण सिंह यादव को प्रत्याशी बनाया है | चरण सिंह इस विधान सभा के लिए बाहरी प्रत्याशी हैं | जबकि राजेश शुक्ला ने पिछला चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ कर जीता था | बाद में वे बीजेपी में आ गए थे | उनको टिकट मिलने के बाद से यहाँ बीजेपी के नेताओं में अशंतोष के स्वर उग्र हुए | बीजेपी की पूर्व विधायक रेखा यादव ने पार्टी छोड़ कर सपा की सवारी कर ली है | वे बीजेपी के लिए चुनौती उत्पन्न कर रही हैं तो कांग्रेस के लिए भुवन विक्रम सिंह जो निर्दलीय प्रत्याशी के तौर  पर मैदान में आये  चुनौती दे रहे हैं |  2018 के चुनाव में कांग्रेस ने दो लगातार चुनाव हारने के बाद राजेश शुक्ला को टिकट नहीं दिया था | जिसके चलते उन्होंने समाजवादी पार्टी के चुनाव लड़ा और बीजेपी के पुष्पेंद्र नाथ पाठक को ३६७१४ मत से पराजित किया था | इस चुनाव में कांग्रेस के शंकर प्रताप सिंह बुंदेला की जमानत जप्त हो गई थी | इस बार यहाँ से बसपा के महेंद्र गुप्ता और आम आदमी पार्टी के अमित भटनागर भी  चुनावी हार जित के समीकरण बनाने बिगाड़ने में अहम भूमिका अदा करेंगे | 
               
                                      53 मलहरा विधानसभा सीट ही ऐसी विधानसभा सीट है जहां कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला देखने को मिलेगा | जातीय समीकरण वाली इस विधान सभा सीट पर उपचुनाव के प्रत्याशी बीजेपी के प्रदुम्न सिंह लोधी और कांग्रेस की राम सिया भारती के  मध्य मुकाबला होगा | 2018 का चुनाव प्रदुम्न सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था और बीजेपी की मंत्री ललिता यादव को १५७७९ मत से हराया था | उप चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की रामसिया भारती को १७५६७ मत से शिकश्त दी थी | दोनों ही प्रत्याशी एक ही वर्ग से आते हैं | ऐसे में दलीय समीकरण  बड़े असरकारी होंगे | हालंकि यहां से बसपा से लखन लाल अहिरवार और सपा से मोती लाल यादव के अलावा आजम आदमी पार्टी से किन्नर चन्दा भी  हैं | जातीय समीकरणों के खेल में कौन बाजी मारता है यह आने वाले कुछ दिनों में ही साफ़ हो जाएगा | 

छतरपुर जिले के प्रबुद्ध  मतदाता भले ही योग्य और विकाश में सहायक प्रतिनधि की बात करते हों , पर जिले में आज भी चुनावी दौर में विकाश क्ले मुद्दे कही दफ़न हो जाते हैं  | उन पर हावी होते हैं जातीय समीकरण , दाम और दारु का खेल , गाँव दारी का भय | यही कारण है की चाहे कोई भी दल हो वह माले मुफ्त दिल बेरहम की तर्ज पर देश प्रदेश के खजाने को लुटाने में जुट जाता है | मकसद कैसे भी हो राजसिंहासन पाना है |

Related Articles

Back to top button