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प्रभु के जन्मकल्याणक में हजारों श्रद्धालु हुए सम्मिलित, सौधर्म इंद्र ने किया जन्माभिषेक

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर १४ जून ;अभी तक;  अभिनंदन नगर में चल रहे पंचकल्याणक महोत्सव के दूसरे दिन दिगंबर जैन समाजजनों ने भगवान का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाया। प्रातः 7 बजे आदी कुमार के जन्म के साथ तीनों लोको में जय-जयकार होने लगी, वाद्य यंत्र बजने लगे, नरकों में भी कुछ समय के लिए शांति छा गई, छः ऋतुआंे के फल फूल प्रकृति ने एक साथ प्रदान किए, चारों ओर सुख समृद्धि हो गई। प्रभु के जन्म का इंद्रांे ने भी उत्सव मनाया। कुबेर इंद्र ने रत्न वृष्टि की। राजा नाभीराय व माता मरुदेवी के पुत्र आदी कुमार का जन्म होने पर स्वर्ग में सौधर्म इंद्र को अवधि ज्ञान से ज्ञात हुआ। शची इंद्राणी माता मरुदेवी के कक्ष में मायावी बालक को सुलाकर आदिकुमार को दर्शन के लिए ले आती है।
                                    सौधर्म इंद्र शची इंद्राणी से कहते हैं मुझे भी बालक आदी कुमार के दर्शन कराओ तो इंद्राणी कहती है अभी तो मैं इनका रूप निहार कर तृप्त नहीं हो रही, आपको कैसे दे दूं ? तो सौधर्म इंद्र कहते हैं तुम हीरे जवाहरात ले लो, महल ले लो, सारी धनसंपदा ले लो पर मुझे प्रभु आदि कुमार की एक झलक दिखा दो। तब शचि, बालक को सौधर्म के हाथों में देती है तो सौधर्म इंद्र 1008 नेत्रों से तीर्थंकर बालक का रूप निहारते हैं फिर भी नैत्र तृप्त नहीं होते। इंद्र बालक को हाथी पर लेकर पांडुक शिला पर जाते हैं वहां क्षीरसागर के 1008 कलश से आदि कुमार का जन्म अभिषेक किया गया। बालक को पालना झूलाना, बाल क्रीड़ा बधाईयां आदि कार्यक्रम संपन्न हुए।
डॉ चंदा भरत कोठारी ने बताया नवीन जिनालय में 81 कलशों से शुद्धि व संस्कार किए गए। पंचकल्याणक की विभिन्न क्रियाओं के अंतर्गत 32 इंद्र इंद्राणी, व 69 अन्य पात्र, कुल 101 व्यक्तियों ने याग मंडल विधान की पूजन की।
                                        इस अवसर पर सानिध्य प्रदान कर रहे परम पूज्य मुनि आदित्यसागर जी महाराज ने धर्म सभा में संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपने भाव, भाषा, भोजन व भेष पर नियंत्रण आवश्यक है। आपने कहा अपने भावों में अहमपना नहीं डालें। कृतित्व भाव से नहीं कर्तव्य भाव से कार्य करें।
मुनिश्री ने कहा भाषा से ही व्यक्ति मन में उतरता है, अपशब्द बोलकर अपने व्यक्तित्व को ना गिराए। शुद्ध सात्विक भोजन करें, क्योंकि अशुद्ध भोजन में भावों की शुचिता नहीं रहती। उन्होंने कहा चम्मच और चमचों से हमेशा दूर रहे। भारतीय संस्कृति अनुसार हाथ से भोजन करें। आपने कहा फटे वस्त्र पहनना दरिद्रता की निशानी है। फटे वस्त्रों से पूजा करने से पुण्य का क्षय होता है। मुनिश्री ने कहा आपके स्वयं के पास संस्कार नहीं होंगे तो आने वाली पीढ़ी को क्या संस्कार दोगे। आपने कहा प्रभु ने जन्म लेकर सिद्धत्व को प्राप्त किया, हमारा जन्म लेने का प्रयोजन संयम की ओर अभिमुख होना है। आपने यह भी कहा कि मंदसौर की अखंड जैन समाज का संदेश पूरे देश में जाना चाहिए।
मंच पर पूज्य मुनि श्री अप्रमितसागर जी, सहजसागरजी व श्वेतांबर जैन साध्वी श्री विमलप्रभा श्रीजी भी विराजमान थे।
प्रातः काल प्रभु की शांतिधारा का लाभ श्री फतेहलाल ताराबाई कियावत को मिला, प्रथम जन्म अभिषेक  सौधर्म इंद्र के करने के बाद श्री कांतिलाल गोटूलाल दोषी को सौभाग्य प्राप्त हुआ। द्वितीय कलशाभिषेक का लाभ कांतिलाल, सीए आंचल मिंडा को मिला, तृतीय कलश का लाभ अरविंद कुमार मनसुखलाल मिंडा, चतुर्थ कलश विपिनकुमार दोषी व पांचवा कलशाभिषेक के लाभार्थी दिलीपकुमार अनंतलाल जैन रहे। सायंकालीन महाआरती का लाभ श्री सुरेशचंद्र जवेरचंद अमित राहुल जैन परिवार को मिला। समारोह के प्रारंभ में मंगल नृत्य श्रीमती चहिता गौरव बड़जात्या अक्षिता शोनित गोधा ने प्रस्तुत किया। नीमच समाज से जंबूकुमार जैन, सकल जैन समाज मंदसौर के कार्याध्यक्ष नरेंद्र मेहता, उप संयोजक अशोक मारु, महामंत्री सुनील तलेरा व गोपी अग्रवाल एवम सभी लाभार्थियों का स्वागत सर्वश्री शांतिलाल बड़जात्या, पं. विजय कुमार गांधी, विजयेंद्र सेठी, राजेंद्र कियावत, राजमल गर्ग, नंदकिशोर अग्रवाल, आदीश जैन, अरविंद मेहता, अशोक चयन, अभय अजमेरा, भरत कोठारी, कमल विनायका, नरेंद्र कुमार गांधी एडवोकेट, अजीत बंडी आदि ने किया। संचालन प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी पीयूष प्रसून ने किया, आभार सुरेश जैन ने माना।

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