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बाबा जोरावरसिंह और बाबा फतेहसिंह की शहादत को ‘‘वीर बाल दिवस’’ के रूप में मनाने की पवित्र व गौरवपूर्ण परम्परा प्रारंभ नरेन्द्र मोदी ने- रविन्द्र पाण्डेय

महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २५ दिसंबर ;अभी तक;  26 दिसम्बर को बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी की शहादत को ‘‘वीर बाल दिवस’’ के रूप में मनाने की घोषणा कर भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत ही पवित्र व गौरवपूर्ण परंपरा प्रारंभ की है।
                                          उक्त जानकारी देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. रविन्द्र पाण्डेय ने बताया कि जो गौरवपूर्ण कार्य सिख पंथ के दशमेश पु. गुरु गोविंद सिंह जी के परिवार ने किया वह हम सबके लिए बहुत ही गर्व व श्रद्धा का विषय है। सिख पंथ के दसवें गुरु गोविंदसिंहजी के पुत्रों का बलिदान वीर बाल दिवस के लिए वीरता का बहुत बड़ा उदाहरण भारतीय इतिहास में है परंतु दुर्भाग्य था कि आजादी के बाद जो गौरवपूर्ण विषय पाठ्यक्रमों में विद्यालयों में हमें पढ़ाया जाना था वह नहीं पढ़ाया गया और जो वीर हमारे देश में हुए उनको भुला दिया गया और मध्यकाल का वह इतिहास पढ़ाया गया जो मुगल आक्रांता थे जिन्होंने इस देश को जो सोने की चिड़िया था उसको लूटा और हिंदुओं के देवस्थानों को नष्ट किया और देश में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण किया उन मुगलों को महिमा मंडित किया गया जो बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण था वर्तमान परिपेक्ष में भारत सरकार बहुत अच्छे निर्णय ले रही है जिससे अपनी भावी पीढ़ी को इतिहास की गौरवपूर्ण घटनाएं पात्र और वीरों का इतिहास हमें पढ़ने को मिल रहा है निश्चित ही यह भारत सरकार का कार्य देश का गौरव और मान बढ़ाने का कार्य है।
                                                श्री पाण्डेय ने बताया कि वीर बाल दिवस खालसा पंथ के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जा रहा है.पु. गुरु गोविंद सिंह जी दशमेश गुरु कहलाये सिख पु.गुरु गोबिंद सिंह के छोटे छोटे बेटों ने अपने  धर्म आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे, 26 दिसंबर 1704 में आज के ही दिन पु. गुरु गोबिंद सिंह जी के दो साहिबजादे जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी को इस्लाम धर्म कबूल न करने पर सरहिंद के नवाब ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था, माता गुजरी जी को किले की दीवार से गिराकर शहीद कर दिया गया था। यह दिन हमारे बच्चों को स्कूलों मे सांता क्‍लॉज बनाने का नहीं है।  यह उनकी कहानियों को याद करने का भी दिन और यह जानने का भी दिन है कि कैसे उनकी निर्मम हत्या सात वर्ष ओर नो वर्ष की आयु मे की गई- खासकर जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी की.।

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