सरकारी व चरनोई की जमीनों पर कालोनियां काट करोड़ो रु के प्लाट बेच दिये
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २८ अक्टूबर ;अभी तक ; प्रशासन ने अभी हाल ही में बताया की करोड़ो की जमीन अतिक्रमण से मुक्त कराई। मतलब वर्षों से अतिक्रमण बेरोकटोक था। यह तो प्रशंसा की बात है लेकिन तीन दशक में कुछ कालोनियों में सरकारी तो कुछ में चरनोई की जमीनों पर कालोनियां बन कर छोटे से लेकर बड़े अधिकारियों के हस्ताक्षर होकर प्लाट बेचकर करोड़ो रु दबा लिया। इस प्रकार बेशुमार दौलत चंद लोगों की जेबे लंबा लब होगई तो जांच से ही पता चल सकता है।
इधर 29 अक्टूबर 24 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी वर्चुअली मन्दसौर के सुंदरलाल पटवा मेडिकल कालेज के उदघाटन समारोह में भाग लेने विशिष्ट अतिथि के तौर पर भाग लेने आ रहे है। उनकी झोली में मन्दसौर की सरकारी ,चरनोई की जमीनों को लेकर साठगांठ से कुछ कालोनियों में वे करोड़ो रु के प्लाटो में बदल गए ।या तो पटवारियों को भनक नही लगी या साठगांठ से करोड़ो का खेल हो गया और हो रहा हो तो यह उच्च स्तरीय या सीबीआई की जांच से पता चल सकेगा। पर यह मीडिया द्वारा उजागर करने के बाद प्रशासन ने क्यो ठोस कदम नही उठाए। क्यो कुछ पटवारियों के खिलाफ जांच के बाद जो कदम शासन हित मे उठाने थे वे क्यो नही उठाए गए।
जरा अब इधर भी देखे मन्दसौर में कुछ कॉलोनाइजर ने ही करोड़ो रु की व ,चरनोई की जमीन पर कालोनी काट दी। नक्षे पास हो गए। कई अधिकारियों के उन पर हस्ताक्षर हो गए। करोड़ो के प्लाट बिक गए। तो कुछ कालोनियों में बगीचे की जमीन ढूढने जाओ तो जांच कर्ताओं को ही व बगीचा देखना पड़ेगा। कुछ कालोनी में नियमानुसार गरीबो के लिए प्लाट कहा है यह भी जांच कर्ताओं को देखना चाहिए। इतना बड़ा करोड़ो खेल दिल खोल के तो तभी हो सकता है जब आपकी मजबूत साठगांठ हो।शासन को चाहिए कि वह एक मजबूत जांच दल बनाए या यहां के मामलों को सीबीआई को सौपकर जांच रिपोर्ट जनता की टेबल पर रखे।
कुछ कालोनियों में बगीचे की जमीन क्या सुरक्षित है। यह प्रशासन ने कभी जांच कर ठोस कदम उठाने का साहस नही दिखाया। मीडिया ने कई बार कुछ कालोनियों में गड़बड़ी के मामले विस्तार से उठाए। परंतु अनियमितता रोकने या पकड़ने की पहली कड़ी पटवारी होती है लेकिन ऐसे कुछ पटवारियो ने प्रशासन को क्या अनभिज्ञ रखा।कौनसी कालोनी की अनियमितता की रिपोर्ट प्रशासन को की गई सामने नही है। अभी तक मिडिया ने जो मामले उजागर किये उन मामलों को भी नही देखा गया तो अन्य कालोनियों की बारीकी से जांच की क्या अपेक्षा की जा सकती है। किसी पटवारी ने समय पर प्रशासन को किसी अनियमितता वाली कालोनी की कोई सूचना दी हो ऐसा अभी तक तो कोई उदाहरण सामने नही है। प्रशासन ने किसी पटवारी के विरुद्ध कालोनी में गड़बड़ पाई जाने पर कोई कदम उठाए हो ऐसा भी कोई उदाहरण नही है। इसका मतलब यह हुआ कि जो चल रहा है वह सर्वश्रेष्ठ है। शासन को चाहिए कि वह मीडिया ने जिन कालोनियों के मुद्दे उठाए उनकी गोपनीय जांच करवाएं और सरकारी, चरनोई की जमीन , गरीबो के प्लाट, बगीचों की जमीन इन सबकी उच्चस्तरीय जांच करवा कर ठोस कदम उठाए।
एक पटवारी से जब सरकारी जमीन को लेकर जब पूछा तो उनका कहना था कि पटवारी के यहां से कुछ भी नही होता है ऑनलाइन सारा रिकार्ड उपलब्ध है ।एक मामले को लेकर उनका कहना है कि कालोनी भाग 1 व भाग 2 वाला मामला मेरे पास जांच में आया नही है। फोन जरूर आ रहे है।सुनने में भी आया है। कुछ पेपर लगे है तो आएगा ही । जांच आएगी मेरे पास ही । सर्वे नम्बर व खाता नम्बर चेंज हो जाएंगे यह रिकॉर्ड परीक्षण से पता चलेगा। अब ऐसे मामलों में वर्तमान रिकार्ड में खातेदार व पुराने रिकार्ड में यह सब परीक्षण करने की जरूरत है।
ऐसे ही जब एक कॉलोनाइजर से बात की तो उनका तो यहां तक कहना था कि 80 वर्ष पुराना रिकार्ड है। सन 38 से स्वामित्व की जमीन बता रहे है।जब बंदोबस्त होता है तो नम्बर चेंज होते है।इतने अधिकारी बैठे है परमिशन दे रहे है।सरकारी कभी नही रही।