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अपहरण कर मासूम को बेचा, अब 10 साल बाद माता  पिता से मिली

मयंक शर्मा

खंडवा ३ मई ;अभी तक;  इटारसी की मुस्कान संस्था में रह रही पश्चिम बंगाल की 17 साल की एक लड़की के माता-पिता का पता 10 साल बाद पता चला। अपहरण के बाद चंगुल से निकलने, वाली पीडिता ने कहा कि   खंडवा और फिर इटारसी पहुंचने से लेकर अब माता-पिता को देखने की उसकी कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट जैसी है।

पश्चिम बंगाल पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर ने उसके माता-पिता को खोजकर वीडियो कॉल पर माता-पिता से  बात कराई। मुझे उनके चेहरे अजीब से दिखे। दूसरी बार कॉल की तो पहचान ली।  मेरे परिवारवालों का पता चल गया है। मैं बहुत खुश हूं। एक बार फिर मैं अपने घर जाऊंगी।

पीडिता ने कहा कि मैं पश्चिम बंगाल में सिमोंदपुर झोखापुरा की रहने वाली हूं। जब मैं 10 साल की थी, तब परिवार वालों ने मजदूरी के लिए कोलकाता भेज दिया। भाभी-भैया (दूर के रिश्ते की बहन के परिजन) लेने आए थे। वहां से मुझे मुंबई भेजा गया। वहां एक परिवार में रखा गया। वहां मुझसे काम करवाते थे। खाना समय पर नहीं देते। काम नहीं बनता था, तो मुझे पीटते थे। मैं वहां से भागना चाहती थी, लेकिन दरवाजा बंद होने की वजह से निकल नहीं सकी। मैंने तय कर लिया कि अब यहां नहीं रहना। रात के समय बालकनी से नीचे उतरकर भागने का प्लान में सफल रही। मुंबई से कोलकाता का समझकर ट्रेन में बैठ गई।

खंडवा स्टेशन पर उतर गई। भूख से परेशान थी, इसलिए प्लेटफॉर्म पर सजे दुकानों पर गई। किसी ने कुछ दिया, तो खा लिया। अनजान शहर होने से वहीं प्लेटफॉर्म पर बैठ गई। जहां पुलिस अंकल (आरपीएफ जवान) ने मुझसे बातचीत की। मेरा, पापा, माता का नाम, पता पूछा। मैं बंगाली भाषा जानती थी, शायद इस वजह से कोई मेरी बात समझ नहीं पा रहा था। इसके बाद मुझे खंडवा में रतागढ़ बालिका आश्रय गृह और हिंदू बाल सेवा सदन भेज दिया गया। यहां दो साल रहने के बाद इटारसी स्थित  मुस्कान संस्था में नाबालिग को शिफ्ट कर दिया।ं 28 मार्च 2019 को मुझे इटारसी के बालिका गृह लाया गया था। यहां पहले मुझे अच्छा नहीं लगा। बाद में मुझे पढ़ाई और पेंटिंग, डांस का मौका मिला, तो अच्छा लगने लगा।

फरवरी 2023 में एक मामले के सिलसिले में पश्चिम बंगाल पुलिस खंडवा आई थी। इसी दौरान, सीडब्ल्यूसी के सदस्य एडवोकेट पन्नालाल गुप्ता ने बंगाल पुलिस के अब्दुल हसीम से कहा कि पिछले 7 साल से आपके राज्य की एक लड़की परिवार का इंतजार कर रही है। उसके परिवार को खोजने की कई बार कोशिश की गई, लेकिन पता नहीं चला। पन्नालाल गुप्ता नैप् अब्दुल हसीम से मदद मांगी।प्अब्दुल हसीम हजारी ने खुद इस मामले में रुचि दिखाई। बंगाल पहुंचने के बाद उन्होंने बच्ची के बताए अनुसार गोपालनगर थाने में 2016 में दर्ज गुमशुदगी का रिकॉर्ड मंगवाया। सैकड़ों मामलों को खंगालने के बाद उनकी नजर एक मामले पर पड़ी। 27 अप्रैल को बच्ची खंडवा स्टेशन पर मिली थी। इसके तीन महीने बाद बंगाल के बनगांव जिले के गोपालनगर थाने में किडनैपिंग का केस दर्ज मिला।केस कराने वालों से संपर्क किया, तो उन लोगों ने बताया कि 2016 में उनकी बेटी को दो महिलाओं ने अगवा कर लिया था। कई जगह खोजा, लेकिन पता नहीं चला।

अभिभावको  की व्यथा सुनने के बाद अब्दुल हसीम ने इटारसी में रहने वाली बच्ची की फोटो मोबाइल पर मंगाया। यह फोटो गुमशुदगी दर्ज कराने वालों को दिखाया गया। बच्ची के माता-पिता ने उसे पहचान लिया। शनिवार शाम मां, पिता और बहन को देखने की खुशी बच्ची के चेहरे पर झलक रही थी। 7 साल बाद देखकर मां-बहन की आंखों में आंसू आ गए। मुस्कान संस्था की संचालक रितू राजपूत ने नाबालिग के माता-पिता से वीडियो कॉल कर बात कराई तो बच्ची भावुक हो गई। वर्षों बाद अपने माता-पिता को देख उसके आंसू छलक गए। दरअसल, 2016 में 10 साल की उम्र में जब बच्ची खंडवा स्टेशन पर मिली थी, तब वह बंगाली भाषा बोल रही थी। पूछताछ में वह कभी गोपालनगर, तो कभी गोपालपुर की रहने वाली बता रही थी। अपनी पूरी बात, वो समझा नहीं पा रही थी। टीम को भी कुछ समझ नहीं आया। पश्चिम बंगाल पुलिस से भी संपर्क किया गया, लेकिन पुलिस ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। वह यहां सीडब्ल्यूसी में रहने लगी। रितू राजपूत ने बताया कि पांच साल से हमारी संस्था में रह रही है। बच्ची जब आई थी, तब गुमसुम रहती थी। धीरे-धीरे उसे अच्छा लगने लगा। पेंटिंग, डांस में उसका इंट्रेस्ट है। डांस और पेंटिंग में उसे इनाम भी मिले। 8वीं में पढ़ाई कर रही थी। वह हिंदी बोलना सीख गई, लेकिन बचपन की यादें लगभग भूल गई है। यहां तक कि बंगाली भाषा बोलना भी भूल गई।

चाइल्ड लाइन सदस्य व एडवोकेट पन्नालाल गुप्ता ने बताया कि पश्चिम बंगाल के गोपालनगर थाने में बच्ची के पिता की ओर से साल 2016 में दो महिलाओं के नाम से आईपीसी की धारा 363, 366, 372 के तहत केस दर्ज कराया गया था। इसमें दो महिला हसी मजूमदार व रत्ना हलदर निवासी जायदेव पाली को आरोपी बनाया गया। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर पूछताछ भी की, लेकिन बच्ची की बरामदगी नहीं होने के कारण गुनाह साबित नहीं हो पा रहा था। अब बच्ची का पता चल गया है। सीडब्ल्यूसी के समक्ष दस्तावेज पेश करने होंगे। इसके बाद, परिजन व पुलिस बच्ची को ले जा जाएंगे। जांच के बाद और घटना स्पष्ट हो पाएगी। बच्ची के माता-पिता मजदूर वर्ग से हैं। पीडिता को 27 अप्रैल को खंडवा लाया गया। खंडवा सीडब्ल्यूसी के सामने बालिका को पेश करने के बाद 29 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के गोपालनगर थाने की पुलिस के सुपुर्द कर दिया। पुलिस बच्ची को लेकर पश्चिम बंगाल रवाना हो गई है।  बंगाल के सीडब्ल्यूसी के समक्ष बच्ची को पेश किया जाएगा। उसकी काउंसिलिंग होगी, इसके बाद उसे परिवार के हवाले किया जाएगा। अपहरण के आरोपियों के खिलाफ अभी तब बच्ची के नहीं मिलने की वजह से केस पेंडिंग चल रहा था। अब इस मामले में आगे की कार्रवाई की जाएगी। पीडिता का पता चलने के बाद एक बार फिर से दोनों महिलाओं पर अपहरण का केस चलेगा। पीडिता ने कहा कि अब मेरे परिवारवालों का पता चल गया है। मैं बहुत खुश हूं। एक बार फिर मैं अपने घर जाऊंगी।

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