नरयावली ; मिथक तोड़ते प्रदीप के विकल्प की तलाश में कांग्रेस
रवीन्द्र व्यास
मध्य प्रदेश के सागर जिले की नरयावली विधानसभा सीट १९७६ में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी | पहला चुनाव 1977 में हुआ और कांग्रेस के लीलाधर विधायक चुने गए | 77 से 1998 तक के २१ वर्ष में हुए 6 विधान सभा चुनाव में यहां कोई भी प्रत्यासी दुबारा चनाव नहीं जीत सका | एक मिथक बन गया कि यहां से कोई दूसरी बार चुनाव नहीं जीत सकता | 1990 में बीजेपी से विधायक चुने गए नारायण प्रसाद कबीरपंथी ने 2003 का चुनाव जीत कर मिथक पर कुछ विराम अवश्य लगाया | 2003 के बाद यह कहा जाने लगा कि लगातार कोई दूसरी बार चुनाव नहीं जीत सकता | 2008 के चुनाव में बीजेपी के प्रदीप लारिया चुनाव जीते उन्होंने इस मिथक को तोड़ते हुए लगातार तीन चुनाव जीते | अब कांग्रेस इस सीट को फिर से वापस जितने के लिए तमाम तरह के जतन कर रही है | यहां प्रदीप लारिया के भाई का बीजेपी से हुआ मोह भंग और स्थानीय स्टार पर लोगों द्वारा ली जा रही कांग्रेस सदस्य्ता ने भी बीजेपी में बेचैनी बड़ा दी है |
अजा के लिए सुरक्षित नरयावली विधानसभा क्षेत्र में 1977 से अब तक हुए दस चुनावों में यहां कांग्रेस और बीजेपी का पलड़ा बराबरी का रहा है | पांच बार बीजेपी तो पांच बार कांग्रेस चुनाव जीती है | 2003 से बीजेपी लगातार यहां से चुनाव जीत रही है | 2008 से बीजेपी के प्रदीप लारिया यहां के मिथक को तोड़ते हुए चुनाव जीत रहे हैं |
नरयावली दरअसल सागर नगर का उपनगरीय विधानसभा क्षेत्र है , 35 फीसदी इलाका सागर शहर का है | सागर की मकरोनिया नगर पालिका और केंट का इलाका नरयावली में ही आता है | तहसील सागर के आर आई सर्किल एक और दो ,नरयावली आर आई सर्कल परसोरिया आर आई सर्कल के 13 पटवारी हलके इसमें आते हैं | 2 लाख 29 हजार 968 मतदाता वाले इस क्षेत्र में 1 लाख 22 हजार 133 पुरुष , 1 लाख 07 हजार 828 महिला और 7 अन्य मतदाता हैं। जिनमे सामान्य वर्ग के 35 फीसदी , ओबीसी के 28. 35 फीसदी एस सी के 25. 96 फीसदी और एस टी के 5. 69 फीसदी 4 फीसदी मुस्लिम और 1 फीसदी अन्य मतदाता हैं | सागर का उपनगरीय क्षेत्र होने और तेजी से विकसित होने के कारण यहां औद्योगिक एरिया है , बड़े बड़े शो रूम हैं पर ६५ फीसदी आबादी कृषि और मजदूरी पर निर्भर है | |
नरयावली विधानसभा सीट 1977 की कांग्रेस विरोधी लहर में भी यहाँ से कांग्रेस के लीलाधर ने जनसंघ के जमुना प्रसाद को 3530 मत से हराया था | कांग्रेस की जीत का यह सिलसिला 1985 तक जारी रहा | 1980 और 1985 में यहां से कांग्रेस के उत्तमचंद खटीक ,1993 में प्यारेलाल चौधरी और 1998 में कांग्रेस के सुरेंद्र चौधरी यहाँ से विधायक चुने गए | बीजेपी के यहां से पहले विधायक 1990 और 2003 में नारायण प्रसाद कबीर पंथी चुने गए ,| 2008 से यहां से लगातार बीजेपी के इंजिनियर प्रदीप लारिया चुनाव जीत रहे हैं |
नरयावली विधानसभा क्षेत्र सुरक्षित विधान सभा क्षेत्र होने के बावजूद जातीय समीकरणों से मुक्त नहीं हो पाया है | पिछले दो दशकों में यहाँ का राजनैतिक मिजाज नहीं बदला है | 2003 से 2018 तक के चुनावों में जहाँ बीजेपी को औसतन 50 प्रतिशत मत मिल रहे थे , वहीँ कांग्रेस को 40 फीसदी औसत मत से संतोष करना पढ़ रहा था | २०१८ के चुनाव में यहाँ कांग्रेस के मतों में लगभग ४ फीसदी मत की वृद्धि हुई तो बीजेपी के मत में २ फीसदी की गिरावट देखने को मिली |
अगर पिछले 2018 चुनाव को देखे तो यहाँ कांग्रेस के अजा के बड़े नेता माने जाने वाले सुरेंद्र चौधरी और बीजेपी के दिग्गज नेता प्रदीप लारिया के मध्य सीधा मुकाबला था | 1998 में एक बार विधायक बने सुरेंद्र चौधरी का यह चौथा चुनाव था | चुनाव में कांग्रेस को जहाँ एंटी इन्कम्बेंसी की उम्मीद थी वही बीजेपी अपने विकाश वाद को प्रमुख मुद्दा बनाये थी | यहाँ चुनावी प्रचार में आये बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने बड़ा असर किया था |
2023 के चुनाव में नरयावली विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण को उभारने के प्रयास एक बार फिर हो सकते हैं | कांग्रेस नरयावली में सड़कों की दुर्दशा , सिचाई सुविधा , बेरोजगारी ,महंगाई और भ्र्ष्टाचार, के साथ ओबीसी के आरक्षण , और दलितों पर अत्याचार को प्रमुख मुद्दा बना रही है | जबकि बीजेपी विकाश की गौरव गाथा के साथ लाड़ली बहना योजना को प्रमुख तौर पर उठा रही है | ,
कौन जीता-
2018 प्रदीप लारिया _बीजेपी
2013 : प्रदीप लारिया _ बीजेपी
2008 -प्रदीप लारिया_बीजेपी
2003 – नारायण प्रसाद कबीरपंथी _बीजेपी
1998 _सुरेंद्र चौधरी _ कांग्रेस
1993 _ प्यारेलाल चौधरी _ कांग्रेस
1990 _ नारायण प्रसाद कबीरपंथी _बीजेपी
1985 _ लोकमन खटीक _कांग्रेस
1980 _ उत्तम चंद्र खटीक_कांग्रेस
1977 _लीलाधर _ कांग्रेस
विधानसभा क्षेत्र में बेरोजगारी और महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दे हैं औद्योगिक क्षेत्र होने के बावजूद यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता है | , विधानसभा की ग्रामीण आबादी अभी भी बिजली और पानी के संकट से जूझ रही है | चुनाव के समय किसानो के सामने खाद का एक बड़ा संकट हो जाता है जिसके स्थाई समाधान की दिशा में सार्थक पहल नहीं हुई है | शहरी इलाके के साथ ग्रामीण इलाकों में भी महंगाई का एक बड़ा मुद्दा बन रहा है | जिस विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस 1977 में भी जीती वहां को दोबारा पाने के लिए इस बार कांग्रेस के दावेदार बढ़ गए हैं प्रमुख तौर पर सुरेंद्र चौधरी के अलावा , रेखा चौधरी ,शारदा खटीक के नाम सामने आये हैं , जबकि बीजेपी से वर्तमान विधायक प्रदीप लारिया के अलावा वृंदावन संतोष रोहित , सहित आधा दर्जन से ज्यादा दावेदार हैं | बीजेपी विधायक प्रदीप लारिया के सामने इस बार घर से ही चुनौती मिली है , उनके ही भाई हेमंत लारिया ने कांग्रेस का दमन थाम लिया है |