नवरात्र शुरू होते ही चरम पर पहुँचने लगेगा चुनाव प्रचार

नवरात्र आने ही वाले हैं। चुनावी चौसर बिछ चुकी है। घोषणावीर निकल चुके हैं मैदानों की तरफ़। ताज़ा घोषणा मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने की है। पढ़ो और पढ़ाओ योजना। इसके तहत तक़रीबन एक करोड़ विद्यार्थियों को मुफ़्त शिक्षा देने और पाँच सौ से पंद्रह सौ रुपए हर महीने दिए जाने का प्रावधान है।भाजपा अपनी पुरानी किंतु पॉपुलर योजनाओं पर टिकी हुई है। लाड़ली लक्ष्मी, बहना आदि। आम मतदाता की पौ बारह है। दोनों पार्टियाँ जीभर कर लुटा रही हैं। पैसे, सुविधाएँ, सब कुछ। इस बीच भाजपा में अगली सूची में होने वाले कत्लेआम को लेकर चिंताएँ दिखाई दे रही हैं।कांग्रेस की सूचियाँ लगभग तैयार हैं लेकिन वह पितृ पक्ष गुजरने की राह तक रही है। तीनों राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस के प्रदेश क्षत्रप चिंतित हैं। पहले तो सूची आने में देर हो चुकी है। दूसरा – प्रत्याशियों की घोषणा के बाद उपजने वाले विरोध और नाराज़गी से जूझने में उन्हें काफ़ी वक्त लगने वाला है।भाजपा इस तात्कालिक विरोध और नाराज़गी के झमेले से तब तक उबर चुकी होगी। समझा जाता है कि उसका प्रचार जल्दी रफ़्तार पकड़ लेगा। तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो इस सब में कांग्रेस अभी पिछड़ी हुई नज़र आ रही है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में फिलहाल कांग्रेस की सरकार है इसलिए ज़ाहिर है कि एंटीइंकमबेंसी भी उसी के खिलाफ होगी। मध्यप्रदेश में कांग्रेस भाजपा के खिलाफ अठारह साल की एंटीइंकमबेंसी को भुनाने में लगी हुई है। कौन, कहाँ, कितना कामयाब होगा, यह तो तीन दिसंबर को ही पता चलेगा जब पाँचों राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आएँगे।बहरहाल प्रमुख तीन राज्यों मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में लोगों के बीच वैसा उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है जैसा पिछले चुनावों में हुआ करता था। कुल मिलाकर जनता अभी शांत है और नेता बेचैन। न तो आम आदमी की इस शांत शैली को सक्रियता में बदलने की किसी के पास कोई दवा है और न ही नेताओं की बेचैनी मिटाने का कोई इलाज किसी के पास है।चुनावी समर अभी ऐसा ही चलेगा। नवरात्र शुरू होते ही अगले रविवार से चुनाव प्रचार अपने चरम पर पहुँचने को बेताब होगा। तभी आम आदमी में भी हलचल मचेगी। ग़नीमत है कि कोविड का वह समय पार हो चुका, वर्ना ये राजनीतिक दल और ये नेता उस संकट के दौर में भी अपनी रैलियाँ और सभाएं करने से बाज नहीं आते।