अ.भा. साहित्य परिषद की प्रादेशिक काव्य गोष्ठी गूगल मीट पर संपन्न

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर ९ दिसंबर ;अभी तक;  अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत की प्रादेशिक काव्यगोष्ठी त्रिपुरारीलाल शर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। आपने प्रान्त के समस्त जिलों के पदाधिकारियों को सम्बोधित करते हुवे कहा कि साहित्यिक गतिविधियों द्वारा अपने क्षेत्र में प्रेम व सदभावना की ज्योत जलाए रखे, साथ ही आपके साथ राष्ट्रीय अधिवेशन में उड़ीसा जा रहे अखिल भारतीय साहित्यिक अधिवेशन के समस्त प्रतिभागियों को शुभकामनाओं के साथ दिशा निर्देश दिए। श्री शर्मा ने कहा कि मंदसौर गौरव दिवस पर श्री नंदकिशोर राठौड़ ने दशपुर गौरव गान की रचना एवं गायन कर साहित्य परिषद का नाम गौरवान्वित किया है । अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन में जाने वाले दल के साथ अखिल भारतीय साहित्य परिषद मंदसौर के सचिव नंदकिशोर राठौर भी उड़ीसा के भुवनेश्वर में अपनी साहित्यिक प्रस्तुतियां देंगे।
                                         काव्यगोष्ठी का संचालन मंदसौर के वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र भावसार ने करते हुवे सर्वप्रथम भेरूसिंह चौहान को सरस्वती वंदना के लिए आमंत्रित किया आपने अपनी रचना ‘हे हंसवाहिनी ज्ञान का दीप जला दो, मानवता का पाठ पड़े सब ऐसा मंत्र बता दो’ गीत के साथ काव्यगोष्ठी का आगाज़ किया। बड़नगर से प्रमोद पंचोली ने बालगीत ‘बबलू-मुनियाँ पूछ रहे,सूरज दादा क्या हमको बतलाओगे, हुवे बहुत दिन आये नही कितने दिन छुट्टी मनाओगे‘ रचना का पाठ किया। खरगोन के हीरालाल तिरोले ने:राम राज्य लाना है तो राम काज करना होगा, राम नही बन सकते तो रामदूत बनना होगा‘ गीत गाया । इंदौर से लाल जादवानी ने ‘हम ख्यालों से ही होती है दोस्ती’ कविता सुनाई। गोपाल बैरागी ने मनुष्य की महानता को बतलाते हुवे सुई से चन्द्र फतह तक की यात्रा कविता में पिरोई। सुरेश सरल ने गांवों का महत्व बताती ‘मेरे गांव में मथुरा काशी’ कविता पढ़ी।
देवास से राजभवरसिंह सेंधव ने राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत गीत ‘हम इंडिया को हिंदुस्तान करेगे’ सुनाकर काव्य गोष्ठी को नई ऊंचाई प्रदान की। विजय शर्मा खलघाट ने श्रृंगारिक रचना ‘श्रृंगार बिना भी लगती तू सुंदर प्रिये’ का पाठ किया वही मंदसौर के हास्य कवि नरेंद्र भावसार ने हास्य के माध्यम से पत्नी का दूसरा पहलू बताते हुए कहा कि ‘श्रीमती जी हमारी नए-नए पकवान बना रही थी और बड़े प्यार से हमें खिला रही थी श्रीमती जी को नई कर खरीदना थी इसलिए हमें पटा रही थी’ बिलासपुर से श्रीमती चन्द्रकला सिंह ने अकेलेपन के दर्द को बयां करते हुए कहा की ‘मुझे प्यार नहीं असल मे मुझे साथ चाहिए’ गीत सुनाया। श्रीमती रेखा वर्मा ने मां की व्यथा बेटे के घर आने पर घर के निर्जीव टेबल, सोफा तक मे जान आने की पीड़ा बताकर वाहवाही बटोरी। पुल्किता आनन्द झाबुआ ने अपनी रचना में नया प्रयोग नींद अच्छी श्रोता के साथ किया। ओमप्रकाशजी ने ‘दाता की ताकत से बिन पतवार नोका पार लगती है’ रचना पढ़ी। खरगोन से अजय मुजाल्दे ने ‘दफ़्तर की ज़िंदगी फाइलों में कटती’ कविता पढ़ी।
सनावद के किशोर चोलकर ने गजल ‘धन का गुमान’ सुनाई वही सुरेंद्र सेंधव ने प्रकृति का सुंदर चित्रण करते हुवे गीत ‘चल पंछी तू घर अपने अब सांझ हुई है जाती,ये दिवस अंत की बेला प्रस्थान गीत है गाती’ सुनाया। सुनील चोरे खण्डवा ने ‘जीवन के इस पथ पर चल पैदल’ कविता पढ़ी। चंदा डांगी ने अपनी रचना के माध्यम से देश की बेटियों को चक्रव्यूह में नही फसने की सलाह दी। दिलीप शर्मा देवास द्वारा गीत ‘खिलौना रही है यह जिन्दगी सब ने इससे खेला है’ गाकर एक नया माहौल बनाया। शाजापुर की कविता पुणतांबेकर ‘दुआए साथ रख लो तो दवाएं काम आएगी’ रचना सुनाई।अजय डांगी ने ‘कोख में बच्चा’ मार्मिक रचना सुनाई। मकन सिंह खपेड़ ने शीत ऋतु पर रचना पढ़ी।
अंत मे अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ त्रिपुरारीलाल शर्मा ने ‘पीड़ा ने मुझसे स्वयं कर लिया स्वंयम्बर’ रचना का पाठ कर खूब दाद बटोरी।