जले हुए तेल की परिभाषा क्या है बताए, नकली, मिलावटी की जांच के लिए सरकार द्वारा बनाया विभाग कटघरे में

महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २० मई ;अभी तक;  मिलावटी मिर्च,मसाले हो या खराब बासी मावा।पानी मिला दूध बेधड़क बिक रहा है या कारपेट से पकाए जा रहे फल हो। ताजा मामला जले हुए तेल से बन रहे नमकीन का है। कलेक्टर श्री दिलीप कुमार यादव के ध्यान में शायद जले हुए तेल से नमकीन बनाने का मामला आया होगा तब ही तो उन्होंने कुछ समय पूर्व खाद्य सुरक्षा विभाग को जले हुए तेल के नमूने लेने के निर्देश दिए थे लेकिन इस विभाग के निरीक्षक श्री बी एस जामोद का कहना है कि जले हुए तेल की परिभाषा बताए । जले हुए तेल की परिभाषा ही नही है। उन्होंने उनके पास रखी पुस्तकों का हवाला देते हुए यहां तक कहा कि इन किताबों में बताए कहा है जले हुए तेल को लेकर निर्देश । हालांकि उन्होंने 8 नमकीन बनाने वालों के यहां से कड़ाई के तेल के नमूने लेकर जांच के लिए भेजे है जहां से रिपोर्ट आना है।
                                   एक समय धानमंडी में मिर्च- मसालों की बिक्री को लेकर खूब चर्चा थी। आज भी इस क्षेत्र में जाने पर मिर्च की पिसाई का अनुभव नाक कर ही लेता है। यहां किन-किन मसालों की अभी भी पिसाई होकर खुले बाजार में धड़ल्ले से बिक्री हो रही है ।इसका ठीक-ठीक रिकॉर्ड कोई नहीं बता सकता है। हां लेकिन कब- कब और कितने –  कितने नमूने मिर्च मसालों के लिए जा रहे हैं इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है ।खाद्य सुरक्षा निरीक्षक का ऑफिस जिला चिकित्सालय के ऊपर मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी के पास एक कमरे में लग रहा हैं। इसके दफ्तर के दरवाजे कब खुलते होंगे यह शायद मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी भी नहीं बता सकते होंगे जिनके अधीन और पास में यह दफ्तर है। इसी दफ्तर के पास ही इसके ही एक कमरे के छोटे से भाग में औषधि निरीक्षक का भी दफ्तर है। यह भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी के निर्देशन में है लेकिन इसके भी हाल ऐसे है कि इसके दरवाजे भी कब खुलते हैं, यह भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी एक बार तो पूछने पर नहीं बता पाए थे ।यह दो दफ्तर एक कमरे के छोटे से दो भाग में चल रहे हैं लेकिन सरकारी दफ्तरों में छोटी दुकान ऊंचे पकवान की दास्तान इनसे संबंधित दुकानों से बह कर आने वाली चर्चाओं में सुनते हैं तो आश्चर्य होता है लेकिन यह भी सरकार की जांच से ही पता चल सकेगा कि इन दफ्तरों से रिश्वत, भ्रष्टाचार का कितना बड़ा नाता है या नहीं है।
हां बात इन्हीं विभागों में से एक खाद्य सुरक्षा विभाग से संबंधित जले हुए तेल के नमूने लेने को लेकर है ।नगर में अनेक नमकीन बनाने वालो कि दुकानें हैं और कही नमकीन के भाव आसमान छू रहे है तो कही कम है ।कम भाव मे नमकीन बेचने वाले दुकानदार भी यकीनन कमा रहे होंगे तो आसमान छूते भाव पर नमकीन बेचने वालों के तो वारे न्यारे हो रहे है या वे भी उतना ही कम रहे जितना कम भाव पर बेचने वाले कमा रहे है लेकिन यह तो सरकार की जांच से ही पता चल सकेगा।लेकिन यहां प्रश्न उठता है भाव के अंतर का तो यह हो क्या रहा है । जनस्वास्थ्य से क्या खिलवाड़ हो रहा है तो कोन जांच करेगा और कौन बताएगा जनता को की क्या गलत है और क्या सही है।इनके द्वारा जले हुए तेल का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है या नहीं इसका भी कभी इस विभाग ने जांच कर कदम नहीं उठाया। क्या यह विभाग इस बात को लेकर अनभिज्ञ है या सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ हैं। आखिर इस विभाग के खिलाफ कब ठोस कदम उठाए जाएंगे जिससे यह कहा जा सके कि नागरिकों को अब न जले हुए तेल के नमकीन और नही खराब मिर्च मसालों की सामग्री लोगो को बेचने का कोई साहस उठा सकेगा। अब उन्हें नकली और मिलावटी मिर्च मसालो कि सामग्री कोई भी बेचने का साहस न कर सकेगा लेकिन अभी तो यह कपोल कल्पित ही है।
जले हुए तेल के नमूनो को लेकर जब खाद्य सुरक्षा विभाग के निरीक्षक श्री बीएस जामोद  के पास जब जले हुए तेल के नमूनों को लेकर पूछा गया तो उनका कहना था कि कडाई के तेल के 8 नमूने लेकर जांच के लिए भेजे हैं जहां से रिपोर्ट आना है ।अभी मिलावटी नमकीन की तो बात ही नहीं हुई है जिसकी की चर्चा रहती है जब उनसे जानना चाहा कि नगर में कितने जगह नमकीन बनाने का काम चल रहा है तो उनका कहना था कि 8 – 10 जगह चल रहा होगा। उनसे जले हुए तेल को लेकर बात की तो उनका कहना था कि जले हुए तेल की परिभाषा क्या है बताएं जबकि इस की परिभाषा ही नही है। यह पुस्तक पडी है देख लें। कड़ाही में तेल जिसका उपयोग किया जा रहा है उसके नमूने लेंगे ।जब उनसे प्रयोगशाला से रिपोर्ट आने को लेकर जानकारी चाही गई तो उनका कहना था कि पूरे प्रदेश में एक ही लेब हैं और उसकी क्षमता से हजार गुना ज्यादा सेम्पलिंग हो रही है। इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर में नई प्रयोगशालाए बनाई है लेकिन इनमें अभी काम ही शुरू नहीं हुआ है। इससे तो ऐसा लगता है कि नगर में अब कहीं भी कोई भी मिलावट का सामान बिक भी नहीं रहा है तो फिर इस विभाग की जरूरत सरकार को किस लिए है।
पहले कभी दूध के नमूनों को लेकर दुकानदार तो ठीक गली मोहल्ले तक में मोटरसाइकिल पर दूध बेचने वालों तक को  भय रहता था कि कब उनके द्वारा बेचे जा रहे दूध का कोई नमूना ना ले ले लेकिन अभी तो ऐसा लग रहा है कि वर्षों से दूध के नमूने भी नहीं लिए जा रहे हैं ।शायद यह मान लिया गया होगा कि दूध एक नंबर का उपभोक्ताओं को मिल रहा है ।  ऐसा ही फलों को लेकर चल रहा है।
जले हुए तेल को लेकर नगर के एक प्रमुख डॉ रमेश चंद्र कनेसरिया से चर्चा की गई तो उनका कहना था कि जले हुए तेल का मतलब बार-बार गर्म वह बार-बार इस्तेमाल करते हैं तो उस तेल की चिकनाई का रूपांतरण हो जाता है। इसे संतृप्त वसा कहते हैं चिकनाई की मात्रा बढ़ जाती है ,जो धीरे-धीरे हमारे शरीर मे खून को लाने ले जाने वाली धमनियों में जमा होकर हृदयाघात का कारण बन सकता है। बार बार- बार इस्तेमाल किया हुआ तेल आय अखाद्य हो जाता है। ऐसे तेल को साबुन बनाने के काम में लिया जाना चाहिए।
खाद्य सुरक्षा विभाग व औषधि निरीक्षक विभाग जो कि अभी एक कमरे के दो भाग में चल रहे हैं। नए कलेक्टर कार्यालय में इसी प्रकार के कमरे को स्थान देकर कलेक्टर अपने अधीन निर्देशन में इन दोनों विभागों को संचालित करेंगे तो शायद इन पर कहीं अंकुश लगाया जा सकता है। और समय की मांग है कि यह किया जाना चाहिए। वरना तो ये दोनों विभाग बे लगाम मनमाने तरीके से चलते रहेंगे ।