पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के तीसरे दिन तप कल्याणक मना, पंडाल    में  गूंजे जयकारे

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर १५ जून ;अभी तक;   दिगंबर जैन समाज के नवनिर्मित अभिनंदननाथ जिनालय के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के तीसरे दिन तप कल्याणक मनाया गया। पूज्य मुनि श्री आदित्यसागरजी और अप्रमितसागरजी व सहजसागरजी महाराज के सानिध्य में चल रहे भव्य महोत्सव के तीसरे दिन राज दरबार लगा, 32 मुकुट बद्ध राजाओं द्वारा आदि कुमार को विभिन्न वस्तुएं, हीरे जवाहरात आदि भेंट किए गए ढोल नगाड़ों की गूंज जयकारों के साथ आदि कुमार का राज्याभिषेक हुआ। इसी समय दरबार में नर्तकी नीलांजना का नृत्य हुआ। नृत्य करते-करते ही नीलांजना की मृत्यु हो जाती है तो देवगन उसी समय वैसी ही मायावी नीलांजना प्रस्तुत कर देते हैं और वह नृत्य करने लगती है परंतु आदि कुमार को यह एक क्षण का समय वैराग्य आने के लिए काफी था। संसार की नश्वरता को आदि कुमार समझ लेते हैं और उसी समय उन्हें वैराग्य हो जाता है। लोकांतिक देवों का भी उस समय आगमन होता है वह आदि कुमार के वैराग्य की अनुमोदना करते हैं। भगवान के तप कल्याण की क्रियाएं प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी पीयूष प्रसून के द्वारा संपन्न कराई गई।
                             विशाल मंच पर तप कल्याणक के विभिन्न दृश्य दिखाए गए। जन्म और तप कल्याण के मध्य के,बालक आदि कुमार के बालस्वरूप का अत्यंत सुंदर चित्रण प्रस्तुत किया गया। जब बालक आदि कुमार अपने बालसखाओ के साथ मिलकर विभिन्न क्रिडाएं करते हैं, आदि कुमार के जन्म पर प्रमुदित होकर सौधर्म इंद्र इंद्राणी नृत्य करते हैं व कुबेर इंद्र द्वारा रत्नों की वृष्टि की जाती है।  यह सभी क्रियाएं मंच पर जीवंत की गई। भगवान के वैराग्य का कारण नर्तकी नीलांजना बनती है। नीलांजना की मृत्यु पर संसार को क्षणभंगुर जान समस्त वैभव का त्याग कर, केशलोंच कर, दीक्षा लेकर आदि कुमार वन में चले जाते हैं। तप कल्याणक की विभिन्न क्रियाएं मंच पर दर्शाई गई। भगवान के जयकारों से पूरा पंडाल गूंज उठा।
                         विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री आदित्यसागरजी महाराज ने कहा प्रत्येक जीव का तप कल्याणक नहीं होता, जो जीते जी जीते हैं, उनके कल्याणक होते हैं। जो जीते जीते मरते हैं, उनका कोई कल्याणक नहीं होता। आपने कहा जीवन में सात दोषों से दूर रहे। 7 जीव ऐसे हैं जो जीते हुए भी मृत जैसे हैं। कंजूस, क्रोधी, दरिद्री, रोगी, मूर्ख, अधर्मी,एवं पराई नौकरी करने वाले,ये सात प्रकार के मनुष्य इन अवगुणों से  जीते जीते भी वे मृत के समान है।
                             उन्होंने कहा कंजूस का कमाया धन व्यर्थ जाता है, वह जोड़ जोड़ कर शरीर छोड़ देते हैं। क्रोधी व्यक्ति विवेक शून्य हो जाता है। दरिद्र होना एक अभिशाप है। मूर्ख लोगों के साथ रहकर अपनी गरिमा कम ना करें। जो पापी अधर्मी और व्यसनी है उनको आने वाले समय में कर्मों का फल भोगना पड़ता है। रोगी व्यक्ति की पीड़ा असहनीय होती है, तन मन और धन हर तरफ से त्रस्त रहता है। पराई नौकरी करने वाला तो खुल के जीवन जी भी नहीं पाता।
मुनिश्री ने कहा भगवान की देशना व्यक्ति विशेष के लिए नहीं प्राणी मात्र के लिए होती है। आपने कहा हमारे कल्याण के लिए कल्याणक के दिन आते हैं। मुनिश्री ने कहा अपने जन्मदाता माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने वालों को तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। आपने कहा किसी की दीक्षा हो रही हो और किसी की समाधि हो रही हो तो वहां उपस्थित रहने का अवसर कभी मत खोना।
डॉ चंदा भरत कोठारी ने बताया धर्मसभा के प्रारंभ में प्रातः काल अभिषेक शांतिधारा करने का सौभाग्य श्री महावीर कुमार अभय कुमार शांतिलाल दोशी को प्राप्त हुआ। धर्मसभा के प्रारंभ में आचार्य श्री विरागसागर व विशुद्ध सागर जी के चित्र का अनावरण व दीप प्रज्वलन श्रावक श्रेष्ठी श्री हंसमुख गांधी इंदौर व सकल जैन समाज मंदसौर अध्यक्ष प्रदीप कीमती ने किया। मंगलाचरण श्री जंबूकुमार जैन नीमच ने प्रस्तुत किया। मुनिसंघ के पाद प्रक्षालन श्रीमती प्रेमबाई अशोक नरेश संजय पाटनी ने किए, मुनिराज को जिनवाणी भेंट करने का सौभाग्य श्रीमती विनीता प्रदीप कीमती व स्नेहलता अशोक बड़जात्या को प्राप्त हुआ। इस अवसर पर श्री अरुण सेठी इंदौर तथा भीलवाड़ा नीमच उदयपुर पिपलिया आदि अनेक स्थानों से आए सैकड़ों भक्तों ने मुनि श्री को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया। अतिथियों व लाभार्थियों का स्वागत पंचकल्याणक महोत्सव समिति अध्यक्ष शांतिलाल बड़जात्या, दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष आदिश जैन, नवीन जिनालय ट्रस्ट अध्यक्ष सुरेश जैन, सचिव अजीत बंडी, उपाध्यक्ष ललित जोशी, सह सचिव राकेश जैन, कोषाध्यक्ष राजेश जैन आदि ने किया। संचालन कोमल प्रकाश जैन ने किया आभार विजेंद्र सेठी ने माना।