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पुण्यों का फल है संस्कृत पढ़ना- श्री मिथिलेश जी

महावीर अग्रवाल 

मंदसौर ४ मई ;अभी तक;  संस्कृत पढ़ना और बोलना पुण्यों  का फल होता है वर्तमान समय मंे जब हमारे बच्चे आधुनिकता की अंधी दौड़ में भाग रहे है, संस्कारों को कोई महत्व नहीं दे रहे हैं बड़ांे के सम्मान को ताक में रख स्वार्थी होते जा रहे है ऐसे में यदि आप अपने बच्चो को संस्कृत सिखाते है उसे संस्कृत पढ़ने, बोलने भेजते है तो यह आपके  पुण्यों  का फल है यह सब वातावरण एव संस्कृत बोलना जीवन के संस्कार देती है। संस्कृत भारती यह संस्था भाषा के साथ जीवन की परिभाषा एवं संस्कार भी सिखाती है । न केवल संस्कार सीखा रही है वरन हमारे महापुरुषों ने भारत के श्रेष्ठ होने का जो सपना देखा था वो भी पूरा कर रही है
                                उक्त विचार प्रांतकार्यकरिणी के सदस्य श्री मिथिलेश नागर ने संस्कृत भारती द्वारा चलाये जा रहे आठ दिवसीय संस्कृत प्रबोधन शिविर में कहे। उन्होंने कहा कि यह वह संस्था है जो हमारी सनातन संस्कृति और बालकों में, लोगो में संस्कारों की भूमि तैयार कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जिस प्रकार घर-घर तिरंगा हो सकता है तो भारत के है घर मे संस्कृत भाषा भी हो सकती है एवं यह स्वप्न संस्कृत भारती के माध्यम से निश्चित ही साकार होगा।
                                    कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा सरस्वती माता के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्वलन किया गया तत्पश्चात अतिथि का स्वागत प्रभुलाल जाट ने किया। कार्यक्रम का संचालन सपना पोरवाल ने किया व आभार दिलीप भाटी ने माना।

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