प्रसूता को परिजन एवं ग्रामीण उसे प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठाकर जंगल और बहते हुये नाले को पार करते हुए पैदल चलकर 3 किलोमीटर दूर खडी एम्बुलेंस में बैठाने के लिये लायें
आनंद ताम्रकार
बालाघाट २ अक्टूबर ;अभी तक ; जिला मुख्यालय बालाघाट से लगे महज 15 किलोमीटर दूर घने जंगल के बीच बसे गंगुलपारा गांव में बीते सोमवार की रात यहां प्रसूता की अचानक गंभीर अवस्था में स्वास्थ्य बिगड़ने पर पीड़िता के परिजन एवं ग्रामीणों ने उसे प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठाकर घने जंगल और बहते हुये नाले को पार करते हुए पैदल चलकर 3 किलोमीटर दूर खडी एम्बुलेंस में बैठाने के लिये लायें। प्रसुता की नाक और मुंह से खून बह रहा था एम्बुलेंस के माध्यम से उसे जिला अस्पताल लाकर भर्ती कराया गया है।
गंागुलपारा गांव में जनजाति आदिवासी बरसों से निवास कर रहे है इस गांव में 35 परिवार के लगभग 150 की संख्या विपरित परिस्थितियों और असुविधाओं के चलते निवास करने के लिये बरसों से विवश है। आवागमन के लिये ना पक्की सड़क है ना ही नालों पर पुलिया बनी हुई है जिसके कारण बरसात के 4 महिने पूरा गांव कटा हुआ रहता है।
जिला चिकित्सालय में प्रसूता का उपचार चल रहा है जहां उसे रक्त प्रदान किया गया और उसकी स्थिति पहले से बेहतर बताई गई है। रश्मिका तारा कावरे सरपंच ग्राम पंचायत गांगुलपारा ने बताया की वर्षा के दिनों में गांगुलपारा के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित हो जाते है और गंभीर अवस्था में बिमार होने अथवा किसी प्रकार की आपात स्थिति होने पर कोई विकल्प उपलब्ध रहता।
इन्हीं विसंगतियों के चलते सोमवार को प्रसूता को प्लास्टिक की कुर्सी में बिठाकर एम्बुलेंस तक पैदल चलकर पहुंचाया गया मार्ग पर पढने वाले 8-9 नालों पर पुलिया बनना जरूरी है।
मेडिकल विशेषज्ञ जिला अस्पताल बालाघाट डॉक्टर गीता बोकडे ने बताया की प्रकृति को गंभीर अवस्था में भर्ती कराया गया था महिला के नाक और मुंह से खून निकल रहा था जिस पर त्वरित उपचार देने से उसकी स्थिति में सुधार हुआ है। गर्भावस्था में कई बार खून के थक्के जम जाने से इस तरह की स्थिति निर्मित हो जाती है।