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ब्राह्मण कुल में जन्म लेना सर्वश्रेष्ठ- निग्रहाचार्य श्री भागवतानंद गुरूजी
महावीर अग्रवाल
मंदसौर २२ नवंबर ;अभी तक; खानपुरा क्षेत्र स्थित श्री रामानुज कोट मंदिर परिसर में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन हो रहा है। कथा के द्वितीय दिवस व्यास पीठ से निग्रहाचार्य श्री भागवतानंद गुरुजी ने कथा का श्रवण कराते हुए नारदजी के पुनर्जन्म की कथा सुनाई। आपने कहा कि बाल अवस्था में संतों की सेवा करने के कारण उन्हें पुनर्जन्म का पूरा स्मरण रहा और उन्हीं पुण्य प्रतापों के कारण उन्हें नारद का जन्म मिला।
आपने कहा कि ब्राह्मण चाहे दुराचारी भी हो तो भी उसका वध नहीं करना चाहिये। उसे दण्डित कर छोड़ देना चाहिये। आपने ब्राह्मण कुल में जन्म लेना श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के लिये तप तपस्या करना पड़ती है। अश्वथामा ने जब पांच पाण्डव के पुत्रों की हत्या की तब पांचाली ने भीम और अर्जुन का क्रोध शांत करते हुए कहा कि यह आपके गुरू पुत्र भी है और ब्रह्मपुत्र भी है इसलिये आप उनकी हत्या न करे। तब अर्जुन ने उन्हें ऐसा दंड दिया कि उनकी सिर पर जो मणि धारण की थी उसे निकालकर उन्हें छोड़ दिया। जिससे वे दर-दर भटकते रहे। अर्जुन को ब्रह्म हत्या का पाप नहीं लगा और उनके पुत्र की हत्या का दण्ड भी दे दिया।
आपने कहा कि जिस तरह कलयुग में प्रवेश किया और राजा परिक्षित से संत पर मृत सांप डालकर उनका उपहास करने का जो कृत्य किया था उसी के कारण उन्हें श्राप स्वरूप सात दिन में तत्क्षक नाग से काटने के बाद मृत्यु का श्राप दिया गया था।
पोथी पूजन मुख्य यजमान गौतम गनेड़ीवाल, श्री कृष्णचंद्र चिचानी, महेंद्र दरक, सुरेश भावसार, प्रमोद तोषनीवाल, बाबूलाल डागा आदि ने किया। व्यास सम्मान कारूलाल सोनी, देवेश्वर जोशी, घनश्याम भावसार, सुरेन्द्र दीक्षित, चंदा कश्यप, फूलकुंवर भावसार, केसर तिवारी, मंजू मोदी ने किया। पूजा पद्धति पंडित सुदर्शन आचार्य और अन्य विद्वान आचार्यों द्वारा संपन्न कराई गई। प्रसादी का लाभ श्री मुकेश बाबूलाल जांवदिया परिवार ने लिया। संचालन सुरेशचन्द्र भावसार ने किया आभार कृष्ण चंद्र चिचानी ने माना। शाम 4 से 5 बजे तक एक घंटे तक प्रश्नोत्तरी का आयोजन हुआ जिसमें श्रद्धालुओं द्वारा पूछे प्रश्नों का व्यास पीठ से निग्रहचार्य भागवतानंद गुरुजी ने समाधान किया।
आपने कहा कि जिस तरह कलयुग में प्रवेश किया और राजा परिक्षित से संत पर मृत सांप डालकर उनका उपहास करने का जो कृत्य किया था उसी के कारण उन्हें श्राप स्वरूप सात दिन में तत्क्षक नाग से काटने के बाद मृत्यु का श्राप दिया गया था।
पोथी पूजन मुख्य यजमान गौतम गनेड़ीवाल, श्री कृष्णचंद्र चिचानी, महेंद्र दरक, सुरेश भावसार, प्रमोद तोषनीवाल, बाबूलाल डागा आदि ने किया। व्यास सम्मान कारूलाल सोनी, देवेश्वर जोशी, घनश्याम भावसार, सुरेन्द्र दीक्षित, चंदा कश्यप, फूलकुंवर भावसार, केसर तिवारी, मंजू मोदी ने किया। पूजा पद्धति पंडित सुदर्शन आचार्य और अन्य विद्वान आचार्यों द्वारा संपन्न कराई गई। प्रसादी का लाभ श्री मुकेश बाबूलाल जांवदिया परिवार ने लिया। संचालन सुरेशचन्द्र भावसार ने किया आभार कृष्ण चंद्र चिचानी ने माना। शाम 4 से 5 बजे तक एक घंटे तक प्रश्नोत्तरी का आयोजन हुआ जिसमें श्रद्धालुओं द्वारा पूछे प्रश्नों का व्यास पीठ से निग्रहचार्य भागवतानंद गुरुजी ने समाधान किया।