प्रदेश
भाजपा संगठन को जनप्रतिनिधियों के चंगुल से मुक्त होना होगा “सत्ता और संगठन में तालमेल तो हो पर घालमेल ना हो”- रमेशचन्द्र चन्द्रे
रमेशचन्द्र चन्द्रे
मंदसौर १८ नवंबर ;अभी तक; जब सत्ता में बैठे हुए लोग संगठन का निर्धारण करते हैं तो अनेक प्रकार की विसंगतियां उत्पन्न होती है, क्योंकि पार्टी संगठन में किसी मंत्री सांसद या विधायक की पसंद के पदाधिकारी बनाए जाते हैं तो वह उनके इशारे पर ही काम करते हैं किंतु वे एक अच्छे और स्वाभिमानी कार्यकर्ता कभी नहीं बन सकते।
उक्त विचार शिक्षाविद श्री रमेशचंद्र चन्द्रे ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी का संगठन सिर्फ सत्ता प्राप्ति करने के उद्देश्य से नहीं बना है बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में शुचिता और पवित्रता की स्थापना के लिए बहुत चिंतन- मनन के बाद इसका निर्माण किया गया है। यद्यपि सत्ता प्राप्ति तो पार्टी का एक छोटा- सा लक्ष्य है जो बहुत अनिवार्य भी है लेकिन इसके साथ-साथ राष्ट्र को परम- वैभव के शिखर पर पहुंचाना तथा राजनीतिक क्षेत्र में नेतृत्व करने वाले व्यक्तियों के चरित्र निर्माण तथा उनके जीवन में पवित्रता कायम रहे, इस बात का प्रयास तथा उन पर निरंतर निगरानी करने का लक्ष्य भी भारतीय जनसंघ की स्थापना से लेकर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना तक रहा है और आज भी होना चाहिए।
उन्होंने ने कहा कि पंच- पंचायत से लेकर केंद्र की सरकार तक में चुने हुए जनप्रतिनिधियों की दिशा और दशा का निरंतर अध्ययन, भाजपा संगठन के द्वारा होते रहना चाहिए और समय-समय पर इस बात की समीक्षा भी होना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी के उद्देश्यों के अनुसार, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हमारे जनप्रतिनिधि किस स्तर पर काम कर रहे हैं। यदि उनकी कार्य पद्धति में कहीं भी दोष उत्पन्न होता दिखाई दे रहा है तथा वे मनमाने तरीके से, दूरगामी परिणामों को ध्यान में ना रखते हुए घोषणाओं पर घोषणाएं करते हैं तो, उनकी इन गतिविधियों के प्रति सतर्क रहकर उन पर नियंत्रण तथा उनका मार्गदर्शन करना चाहिए और यदि सत्ता के मद में पानी सिर से ऊपर निकल रहा हो तो उन्हें घर का रास्ता दिखाने में भी देरी नहीं करना चाहिए।
पंचायत, नगर परिषद, पालिक, निगम, जनपद, जिला पंचायत, मंडी, मंडल एवं विधानसभा तथा संसद की बैठकों के पूर्व, भारतीय जनता पार्टी के संगठन को संबंधित जनप्रतिनिधियों की एक बैठक लेकर यह दिशा निर्देश अवश्य देना चाहिए कि “जहां-जहां भाजपा का संगठन सत्ता में है वहां पर किसी अनुचित, अन्यायपूर्ण अथवा समाज या राष्ट्र विरोधी प्रस्ताव पारित न हो जाए।
श्री चन्द्रे ने कहा कि पार्टी के संगठन में किसी भी स्तर पर अध्यक्ष से लेकर मंडल केंद्रों तक पदाधिकारियों की नियुक्तियां, संगठन द्वारा ही निर्धारित मानदंडों के आधार पर ही होना चाहिए इसमें किसी प्रकार की कोई सलाह, मंत्री, विधायक या अन्य जनता प्रतिनिधियों से लेने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए क्योंकि यदि उनकी पसंद/ सलाह से पार्टी के पदाधिकारी नियुक्त किए गए तो फिर पार्टी का नियंत्रण इन पर से समाप्त हो जाएगा तथा यह लोग निरंकुश हो सकते हैं अतः इस बात की सावधानी बरतना आवश्यक है।
पार्टी संगठन में उम्र का बंधन नहीं रखकर शुद्ध योग्यता के आधार पर एवं वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए ही पदाधिकारियों का चयन किया जाना चाहिए।
श्री चन्द्रे ने कहा कि उक्त मानदंडों पर पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी की दृष्टि बहुत तीखी और पैनी होना आवश्यक है किंतु फिर भी किन्ही कारणों से सत्य को जानते हुए वह या तो अनजान बन जाते हैं या फिर निष्पक्ष बने रहने के चक्कर में भी चुपचाप भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य या कृपाचार्य की तरह रहकर द्रोपदी का चीर हरण होते हुए देखते रहते हैं तो फिर उन्हें भी पार्टी में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी संगठन को, केंद्र से लेकर मंडल स्तर तक जनप्रतिनिधियों के चंगुल से पूर्णता मुक्त करना आवश्यक है अन्यथा जो पार्टी, भारत की एकता अखंडता तथा भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं परंपराओं की रक्षा के लिए बनी थी, वह सिर्फ सत्ता के माया जाल में उलझ कर रह जाएगी तथा अपने लक्ष्य से भटक सकती है।
श्री चन्द्रे ने अंत मे कहा कि यहां यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि भारतीय जनता पार्टी का आर्थिक संचालन भी कार्यकर्ताओं के एवं सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत वर्ग के लोगों के धन से ही होना चाहिए। इसके संचालन में किसी भी प्रकार का धन, मंत्रियों से विधायकों से या जनप्रतिनिधियों से प्राप्त नहीं करना चाहिए, अन्यथा धन का दबाव देकर वे पार्टी को अपने हिसाब से चलाने का प्रयास करेंगे। इसलिए यहां भी पार्टी को कठोरता बरतनी पड़ेगी तभी सत्ता और संगठन में एक रिस्पेक्टबल डिस्टेंस बना रहेगा, यह पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी की नैतिक जिम्मेदारी है ।
उन्होंने ने कहा कि पंच- पंचायत से लेकर केंद्र की सरकार तक में चुने हुए जनप्रतिनिधियों की दिशा और दशा का निरंतर अध्ययन, भाजपा संगठन के द्वारा होते रहना चाहिए और समय-समय पर इस बात की समीक्षा भी होना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी के उद्देश्यों के अनुसार, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हमारे जनप्रतिनिधि किस स्तर पर काम कर रहे हैं। यदि उनकी कार्य पद्धति में कहीं भी दोष उत्पन्न होता दिखाई दे रहा है तथा वे मनमाने तरीके से, दूरगामी परिणामों को ध्यान में ना रखते हुए घोषणाओं पर घोषणाएं करते हैं तो, उनकी इन गतिविधियों के प्रति सतर्क रहकर उन पर नियंत्रण तथा उनका मार्गदर्शन करना चाहिए और यदि सत्ता के मद में पानी सिर से ऊपर निकल रहा हो तो उन्हें घर का रास्ता दिखाने में भी देरी नहीं करना चाहिए।
पंचायत, नगर परिषद, पालिक, निगम, जनपद, जिला पंचायत, मंडी, मंडल एवं विधानसभा तथा संसद की बैठकों के पूर्व, भारतीय जनता पार्टी के संगठन को संबंधित जनप्रतिनिधियों की एक बैठक लेकर यह दिशा निर्देश अवश्य देना चाहिए कि “जहां-जहां भाजपा का संगठन सत्ता में है वहां पर किसी अनुचित, अन्यायपूर्ण अथवा समाज या राष्ट्र विरोधी प्रस्ताव पारित न हो जाए।
श्री चन्द्रे ने कहा कि पार्टी के संगठन में किसी भी स्तर पर अध्यक्ष से लेकर मंडल केंद्रों तक पदाधिकारियों की नियुक्तियां, संगठन द्वारा ही निर्धारित मानदंडों के आधार पर ही होना चाहिए इसमें किसी प्रकार की कोई सलाह, मंत्री, विधायक या अन्य जनता प्रतिनिधियों से लेने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए क्योंकि यदि उनकी पसंद/ सलाह से पार्टी के पदाधिकारी नियुक्त किए गए तो फिर पार्टी का नियंत्रण इन पर से समाप्त हो जाएगा तथा यह लोग निरंकुश हो सकते हैं अतः इस बात की सावधानी बरतना आवश्यक है।
पार्टी संगठन में उम्र का बंधन नहीं रखकर शुद्ध योग्यता के आधार पर एवं वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए ही पदाधिकारियों का चयन किया जाना चाहिए।
श्री चन्द्रे ने कहा कि उक्त मानदंडों पर पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी की दृष्टि बहुत तीखी और पैनी होना आवश्यक है किंतु फिर भी किन्ही कारणों से सत्य को जानते हुए वह या तो अनजान बन जाते हैं या फिर निष्पक्ष बने रहने के चक्कर में भी चुपचाप भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य या कृपाचार्य की तरह रहकर द्रोपदी का चीर हरण होते हुए देखते रहते हैं तो फिर उन्हें भी पार्टी में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी संगठन को, केंद्र से लेकर मंडल स्तर तक जनप्रतिनिधियों के चंगुल से पूर्णता मुक्त करना आवश्यक है अन्यथा जो पार्टी, भारत की एकता अखंडता तथा भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं परंपराओं की रक्षा के लिए बनी थी, वह सिर्फ सत्ता के माया जाल में उलझ कर रह जाएगी तथा अपने लक्ष्य से भटक सकती है।
श्री चन्द्रे ने अंत मे कहा कि यहां यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि भारतीय जनता पार्टी का आर्थिक संचालन भी कार्यकर्ताओं के एवं सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत वर्ग के लोगों के धन से ही होना चाहिए। इसके संचालन में किसी भी प्रकार का धन, मंत्रियों से विधायकों से या जनप्रतिनिधियों से प्राप्त नहीं करना चाहिए, अन्यथा धन का दबाव देकर वे पार्टी को अपने हिसाब से चलाने का प्रयास करेंगे। इसलिए यहां भी पार्टी को कठोरता बरतनी पड़ेगी तभी सत्ता और संगठन में एक रिस्पेक्टबल डिस्टेंस बना रहेगा, यह पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी की नैतिक जिम्मेदारी है ।