प्रदेश

भारतीय किसान संघ मालवा प्रांत जिला मंदसौर ने केन्द्र सरकार को पत्र मेल कर जी.एम. नीति के बारे में पुनर्विचार करने की मांग की

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर १९ नवंबर ;अभी तक ;   भारतीय किसान संघ मालवा प्रांत जिला मंदसौर द्वारा राष्ट्रव्यापी आव्हान के तहत 19 नवम्बर को भारत सरकार के लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव, राज्यसभा सभापति श्री जगदीप धनखड़ को राष्ट्रीय जी.एम. नीति और सलाह तथा जी.एम. फसलों के बारे में हितधारकों के साथ राय के संबंध में पत्र ई-मेल के माध्यम से भेजे गये।
                                          भारतीय किसान संघ मालवा प्रांत के जिलाध्यक्ष बद्रीलाल पाटीदार देहरी व जिला मंत्री राधेश्याम धाकड़ फतेहगढ़ ने बताया कि 19 नवम्बर को पूरे देश भर में भारतीय किसान संघ ने एक साथ ईमेल किये गये है। जिसमें उल्लेख किया गया कि 23 जुलाई 2024 को माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के 2 माननीय न्यायाधीशों की बेच द्वारा जी.एम. सरसों के बारे में अपने निर्णय में केन्द्र सरकार को संभवत आगामी 4 माह में सभी संपर्कित व्यक्तियों (कृषि, कृषि वैज्ञानिक, राज्य सरकारों, किसान संगठनों, उपभोक्ता संगठन आदि) से सलाह करते हुए जी.एम. फसलों के ऊपर एक राष्ट्र नीति बनाने की सलाह के बारे में हमने आपको आग्रह किया था कि कि यह सलाह की प्रक्रिया जल्द से जल्द की जाये। यह एक गंभीर मामला है। बी.टी. कपास आते हुए करीब 22 वर्ष हो गये, फिर भी जी.एम. के बारे में कोई सहमति नहीं बनी। ऐसी फसलों को हम शाकाहारी बोले अथवा मांसाहारी इसके बारे में भी कोई निर्णय नहीं हुआ है। इसका प्रसंस्कृत खाद्य को हम मांसाहारी चिन्हित करें या शाकाहारी इसके ऊपर निर्णय लेना अभी बाकी है। ऐसी फसल अलग-अलग खेत में किया जाना, इसका खरीददारी के लिए अलग व्यवस्था करना, इसके प्रसंस्करण के लिए अलग फैक्ट्रियां लगाना और लोग खायें या न खायें इसके लिए भी सोचना अभी बाकी है।इसके अलावा ये सारी फसले अपरिवर्तनीय, जैव विविधता को नष्ट करने वाले, कुपोषण को बढ़ाने वाले, पर्यावरण को नष्ट करने वाले, खाद्य को जहरीला बनाने वाले, इसकी खेती में उपयोग रासायनिक केंसर बढ़ाने वाले है। इसलिए सभी हितधारकों के साथ बात करना आवश्यक है एवं वार्ता करके राष्ट्रीय नीति बनाना आवश्यक है।
                              कई फसलों में जीव जन्तुओं के जीन को डालकर नया जीव तैयार का खेल चल रहा है। अभी तक यह तय नहीं है कि ऐसी फसलों को फसल कहें या जीव, खाद्यान्न फसलों में यदि जीव जंतुओं का जीन डाला जाता है तो उसको शाकाहारी बोलेंगे या मांसाहारी यह भी तय नहीं है।
                                  जैसे की आप अवगत है कि किसी भी जी.एम. फसल में अभी तक अधिक उपजाऊ वाले जीन का उपयोग नहीं हुआ है और झूठामूठा इसको अधिक उपजाऊ वाला बोलना एक वैज्ञानिक धोखा जैसा है। फिर भी इसके पक्ष में आवाज उठाना, भीडतंत्र तैयार करना, वैज्ञानिकों को इसके बारे में चर्चा करने के ऊपर प्रतिबंध लगाना एक बड़े षडयंत्र की ओर इसारा कर रहा है। जैसे कि मल्टीनेशनल कंपनियां एवं उनके साथ भारत में उनके स्लीपर सेल के समान कार्य करने वाले एवं भारत को कमजोर करने की सोच रखने वाले वेश, ये सभी मिलकर ऐसा दुश्वक चला रहे है, जिससे विश्व में भारत की कृषि क्षेत्र में जो थाथी है उस पर आघात कर सके और जी.एम. बीजों के माध्यम से ये भारत की बीज स्वायत्तता को नष्ट कर सके। यदि यह है तो विषय बहुत ही गंभीर है। आशा करते है कि गंभीर जिम्मेदारियों को समंझते हुए आपका मंत्रालय, माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देशानुसार सभी हितधारकों के साथ सलाह मशवरहा करने के लिए तत्काल आगे कदम बढ़ायेगा और पब्लिक डोमेन में इसका प्रचार-प्रसार करते हुए सभी हितधारकों को सलाह के लिए आमंत्रित करेगा।  सभी जानते है कि आज तक किसी भी जी.एम. फसल में अधिक उपजाऊ वाले जींन का उपयोग नहीं हुआ है। तब भी झूठमूठ इसको अधिक उपजाऊ बोलना एक वैज्ञानिक धोखा जैसा है।  मल्टीनेशनल कंपनियां एवं उनके साथ भारत में उनके स्लीपर सेल के समान कार्य करने वाले एवं भारत को कमजोर करने की सोच रखने वाले देश, ये सभी मिलकर ऐसा दुश्चक्र चला रहे है, जिससे विश्व में भारत की कृषि क्षेत्र में जो थाथी है उस पर आघात कर सके और जी.एम. बीजों के माध्यम से ये भारत की बीज स्वायत्तता को नष्ट कर सके।
                                भारतीय किसान संघ मालवा प्रांत ने आग्रह किया कि देश का सबसे बड़ा अराजनैतिक, स्वतंत्र, देश में 600 से अधिक जिलों में विस्तारित, हजारों की संख्या में ग्राम समितियों के माध्यम से सक्रिय किसान संगठन ‘‘भारतीय किसान संघ’’ के प्रतिनिधि के नाते हम आपसे आग्रह करते है देश हित में, किसान हित में पर्यावरण हित में, जैव विविधता के हित में, देशवासियों के स्वास्थ्य के हित में ऐसी फसल भारत में प्रवेश न करने दे, इसके लिए आप प्रयास करेगें। एक और इस विषय में सभी हितधारकों से व्यापक चर्चा करते हुए एक राष्ट्रीय जी. एम. नीति (मा. सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार) बने इसके लिए सरकार को संवेदनशील होकर, भूमिका निभाने के लिए सक्रिय सहयोग करायेगे।

 


Related Articles

Back to top button