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योगरूचि विजयजी ने तीन आगमों का वाचन कर जीव दया की महत्ता बताई

महावीर अग्रवाल 
मन्दसौर २८ सितम्बर ;अभी तक ;   नईआबादी आराधना भवन मंदिर में चातुर्मास हेतु विराजित प.पू. जैन संत श्री योगरूचि विजय जी म.सा. के द्वारा 45 जैन आगमों (शास्त्रों) की वाचना की जा रही है। इसके अंतर्गत प्रतिदिन 3-3 जैन आगम की वाचना हो रही है। कल संतश्री ने दशाश्रुत स्कंध, व्यवहार सूत्र, बवह, कल्पसूत्र का वाचन किया और इन तीनों शास्त्रों में जो महत्वपूर्ण संदेश है उसे धर्मालुजनों को बताया।
                                         संतश्री ने धर्मसभा में जीव दया की महत्ता बताते हुए कहा कि साधु व श्रावक दोनों की जीव दया भिन्न होती है, गृहस्थ जीवन में रहते हुए पुरी तरह से जीव हिंसा के पाप से मनुष्य दूर रहे यह संभव नहीं है। न चाहते हुए भी मनुष्य को जाने अंजाने में सूक्ष्म या पंचेन्द्री हिंसा का पाप लगता ही है। मनुष्य गृहस्थ जीवन में रहते हुए मात्र 6.25 प्रतिशत ही जीव दया का पालन कर पाता है। साधु साध्वी जिन्होंने संयम लिया है तथा जैन धर्म व दर्शन के ज्ञान रखने वाले संयमी ही पूरी तरह से जीव हिंसा केपाप से बच पाते हे। संतश्री ने कहा कि ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करने के कारण प्रतिदिन पति पत्नी को भी काम क्रिड़ा के कारण असंख्य सूक्ष्म जीवों की हिंसा का पाप लगता है। इसलिये पति पत्नी को अनावश्यक पाप से बचना चाहते है किा ब्रह्मचर्य का पालन का प्रयास करे। वे जोड़े जिनकी आयु अधिक है वे ब्रह्मचर्य के पंचकाण लेकर अनावश्यक पाप से बच सकते है। धर्मसभा का संचालन दिलीप रांका ने किया।

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