संतान को संस्कारी बनाने पर ध्यान दे, दिखावे से बचे, सादगीपूर्ण जीवन जीये- आचार्य श्री विजयराजजी

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर २६ मार्च ;अभी तक;  मानव जीवन में विवेक जरूरी है, जो मनुष्य विवेक के साथ जीवन निर्वहन करते है उनका वर्तमान व भविष्य दोनों सुखी रहता है। विवेक के साथ कार्य करने वाले जीवन में कामयाबी को प्राप्त करते है। जीवन में यदि सफलता पाना है और अपनी आत्मा को निर्मल बनाए रखना है तो विवेक रखे।
उक्त उद्गार प.पू. जैन आचार्य श्री विजयराजजी म.सा.ने नवकार भवन शास्त्री कॉलोनी में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने मंगलवार को होली चातुर्मास के उपलक्ष्य मंे आयोजित धर्मसभा में कहा कि सच्चा श्रावक श्राविका वही है जो त्याग की प्रवृत्ति रखे अर्थात जीवन में अपरिग्रह को अपनाये जितनी जरूरी है उतनी ही वस्तुएं अपने पास रखे। कई बार हम बिना जरूरत के भी कपड़े, जूते, बेल्ट, पर्स खरीद लेते है यह एक प्रकार की फिजुल खर्ची ही है। आज के समय में जब कमाई घट रही है तथा खर्चे बड़ रहे है ऐसे में इस प्रकार की फिजुलखर्ची करना उचित नहीं कहा जा सकता है। यही मनुष्य को विवेक से काम लेना चाहिए और जितनी जरूरत हो उतनी ही वस्तुएं खरीदना चाहिये। जीवन में दिखावे से बचें और सादगीपूर्ण जीवन निर्वहन का प्रयास करे। आपने कहा कि माता-पिता को अपनी संतान पर पुरी निगाह रखनी चाहिये तथा जहां भी जरूरत हो वहां संतान को रोकना टोकना जरूर चाहिये। यदि माता-पिता संतान को रोकते टोकते नहीं है तो उनके बिगड़ने की संभावना बड़ जाती है। जिन संतान के माता-पिता संतान के क्रिया कलापों पर ध्यान नहीं देते है वहां संतान के व्यसनी, व्यभिचारी होने की संभावना बड़ जाती है। आपने कहा कि कोई भी त्यौहार आते है तो जीवन में नई प्रेरणा देते है। होली का पर्व भी हमें कई प्रेरणा देता है।
 उपाध्याय श्री जितेशमुनिजी ने कहा कि प्रभु महावीर ने अपनी देशना में मनुष्य को जागृतरखने की बात कही है। उत्तराध्ययन सूत्र में प्रभु महावीर कहते है कि तुम सदैव जागृत रहो किसी का भी विश्वास मत करो अर्थात समय परिवर्तनशील है समय पर भरोसा मत करो, अपने शरीर, धन सम्पत्ति पर भरोसा मत करो क्योंकि शरीर व व धन संपत्ति कब तक आपके पास रहेगी कह नहीं सकते इसलिये जीवन में अपने शरीर का धन सम्पत्ति का अभिमान मत करो। आपने कहा कि यह संसार असार है, यहां विश्वास करने लायक कुछ नहीं है। संसार परिवर्तनशील है। घर, परिवार, रिश्ते, नाते सब अस्थायी है। कई बार हम अपनी धन संपत्ति पर ज्यादा ही विश्वास करते है लेकिन यह भी अस्थाई है। तथा सम्पत्ति विपत्ति का भी कारण बन सकती है। धन संपत्ति के कारण भाइयों व बहनों में विवाद होते है। धन संपत्ति जो सुख का कारण बन सकती है, वहीं दुख का कारण बन जाती है। जब तक संसार में आपका पुण्य प्रबल है तब तक घर परिवार तथा धन सम्पत्ति का सुख आपको मिलेगा। आपका पुण्य समाप्त होते ही यह आपके दुख का भी कारण भी बन सकता है। इसलिये जीवन में सत्य को समझो जीवन में जागृत रहो। संसार के स्वरूप को समझो तथा अपने को उसके  अनुसार जागृत रखो।
आज व कल आचार्य श्री के प्रवचन हर्ष विलास में होंगे व 28 को संयुक्त स्थानवासी जैन समाज का स्वामी वात्सल्य होगा- श्रीसंघ की विनती पर होली चातुर्मास हेतु मंदसौर पधारे आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. व उपाध्याय श्री जितेशमुनिजी म.सा. के प्रवचन आज दिनांक 27 मार्च बुधवार व 28 मार्च गुरूवार को प्रातः 9 बजे से 11.30 बजे तक हर्ष विलास पैलेस, रेल्वे स्टेशन के पीछे मंदसौर पर होंगे। दिनांक 28 मार्च, गुरूवार को संयुक्त स्थानकवासी जैन समाज का स्वामी वात्सल्य भी होगा। जिन धर्मालुजनों को निमंत्रण पत्र प्राप्त न हुआ हो तो वे इस सूचना को ही निमंत्रण पत्र मानकर स्वामी वात्सल्य का भी लाभ ले। उक्त आशय की जानकारी श्रीसंघ अध्यक्ष विमल पामेचा ने दी।