समय व स्वभाव परिवर्तनशील है, बीते हुए समय पर व्यर्थ चिंतन न करें- श्री विजयराजजी म.सा.

महावीर अग्रवाल 


मन्दसौर २२ मार्च ;अभी तक;  जीवन में बीती हुई बातों का चिन्तन करना समय की बर्बादी है जो वक्त बित गया है वह लौटकर आने वाला नहीं है जीवन में पूर्व समय में यदि किसी ने हमारा अनादर किया है या पूर्व समय में हमारे साथ उसके संबंध तनावपूर्ण रहे है तो उसका बार-बार चिंतन करने से कोई लाभ नहीं है अर्थात दूसरे शब्दों में कह सकते है कि गड़े मुर्दे उखाड़ने मेें कोई सार नहीं है। जिस प्रकार गड़े हुए मुर्दे को उखाडते है तो वह दुर्गंध ही देता है। वैसे ही बीते हुए जीवन के वे पल को आपके अनुकूल नहीं रहे यदि उनका बार-बार चिंतन मनन करोगे तो उनसे जीवन को कोई लाभ होने वाला नहीं है।
                               उक्त उद्गार प.पू. जैन आचार्य श्री विजयराजजी म.सा. ने नवकार भवन शास्त्री कॉलोनी में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने शुक्रवार को यहां धर्मसभा में कहा कि मन को प्रसन्न रखना है तो बीती हुई बातों का व्यर्थ में चिंतन मनन मत करो। जीवन में आगे की सोचो। जीवन के कड़वे अनुभव वाले बीते हुए पल का बार-बार चिंतन करने से नकारात्मकता आती है। जीवन में हमें इससे बचना जरूरी है।
                            आचार्य श्री ने कहा कि बीते हुए बातों का चिंतन करके वर्तमान समय का सुकुन खराब करना बुद्धिमता नहीं है। पूर्व समय में यदि किसी ने आपके साथ अनुकूल व्यवहार नहीं यिा यदि आपका अपमान किया है तो उसे भूल जाओ क्योंकि समय व मानव का स्वभाव परिवर्तनशील है जिसने अपमान किया है वह आपका सम्मान भी कर सकता है। आपके साथ समय आने पर खड़ा भी रह सकता है। इसलिये बीती बातों को छोड़ों, वर्तमान को सुधारने पर पर ध्यान दो। जीवन में समय एक जैसा नहीं रहता है तथा मानव का स्वभाव भी समय के साथ परिस्थिति के साथ बदलता है, इसलिये पुरानी बातों को छोड़ आगे का चिंतन करे।
                                आचार्य श्री ने कहा कि जीवन में धैर्य और सहनशीलता जरूरी है। धैर्य रखने से ही मनुष्य को आशा के अनुरूप सफलता मिलती है जो लोग छोटी छोटी बातों पर उत्तेजित हो जाते है उनका वर्तमान और भविष्य दोनों खराब हो जाता है। जीवन में हमें आगे की सोचना चाहिये। वर्तमान और भविष्य का चिंतन करना चाहिये। अतीत के पन्नों को व्यर्थ में टटोलोगे तो पीड़ा ही अनुभव होगी। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजनों ने संतों की वाणी की धर्मलाभ लिया।