आदिनाथ मुनिराज को 6 माह बाद मिला प्रथम आहार, समवशरण से भव्य जीवो को दिव्य देशना दी,

महावीर अग्रवाल
मन्दसौर १६ जून ;अभी तक;  दिगंबर जिनालय अभिनंदन नगर में विराजित होने वाली 11 प्रतिमाओं के पंचकल्याणक महोत्सव के चौथे दिवस भगवान का ज्ञान कल्याणक महोत्सव पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया गया। आदि कुमार ने राज वैभव त्याग कर दीक्षा ली, तप किया व आदिनाथ मुनिराज की अवस्था में विहार करते रहे। लगभग 6 माह व्यतीत हो जाने के बाद भी विधि नहीं मिलने से उनका आहार नहीं हुआ।
नगरवासी मुनि आदिनाथ को भोजन का निमंत्रण देते हैं। हमारे धन-संपत्ति ले लो, वस्त्र आभूषण ले लो, मकान महल ले लो, परंतु हमारे निवास चलकर आहार करो। मुनि आदिनाथ तो संकल्पित थे तभी राजा श्रेयांश को अवधि ज्ञान से ज्ञात हुआ कि निग्रंथ मुनि नवधा भक्ति से आहार करते हैं तब राजा श्रेयांश ने अपने परिवार सहित मुनिराज को नवधा भक्ति से विधि पूर्वक आहार कराया। प्रथम आहार इक्षु रस का कराया गया फिर तप करते हुए मणिराज को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई वह समवशरण में विराजमान हुए व भव्य जीवों को उपदेश दिया।
                      यह जानकारी देते हुए महोत्सव की मीडिया प्रभारी डॉ चंदा भरत कोठारी ने बताया कि ज्ञान कल्याणक महोत्सव में इन सभी दृश्यों का चित्रण किया गया। समवशरण में मुनि श्री आदित्यसागरजी, अप्रमितसागरजी व सहजसागरजी महाराज ने विराजित होकर भव्य जीवों की जिज्ञासाओं का समाधान किया। यह अत्यंत अद्भुत दृश्य उपस्थित हुआ।
                      ज्ञान कल्याणक महोत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित हुए प्रातः 6 बजे से जाप अनुष्ठान अभिषेक शांतिधारा पूजन महामुनि आदिनाथ की प्रथम आहार विधि, प्राण प्रतिष्ठा, सूरी मंत्र, समवशरण की रचना, महाआरती, शास्त्र सभा, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि आयोजन चलते रहे।
                             कार्यक्रम के दौरान मुनि श्री आदित्यसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा अभी तक आप अपनों के लिए जीते रहे अब आप अपने लिए भी जीना प्रारंभ करें। जब कर्म का तीव्र उदय आता है तो बुद्धि और पुरुषार्थ दोनों काम नहीं करते। आपने आत्मा की शांति व उन्नति के लिए कहा विपरीत श्रद्धान छोड़ कर णमोकार मंत्र पर श्रद्धान करें। मिथ्यात्व छोड़कर सम्यक्त्व की ओर बढ़े। जहां कषाय है वहां आत्मा की शुद्धि व उन्नति नहीं है अतः कषाय छोड़ने का प्रयास करें। उन्होंने कहा विषयों की अभिलाषा का त्याग करें, संक्लेश परिणामों को छोड़ें। मुनि श्री ने कहा 8 दोषों से रहित अरिहंत परमेष्ठी व निरग्रंथ गुरुओं पर श्रद्धा रखें। परिचय उनसे करें जिनसे जीवन में गुणों की वृद्धि हो, ज्यादा लोगों से परिचय आत्मशांति में बाधक है। उन्होंने कहा उपकार के भाव में आनंद है, दूसरों को पीड़ा देने में नहीं। मुनि श्री ने कहा सच्चे देव शास्त्र और गुरु की सेवा का पुरुषार्थ सिद्धत्व तक ले जाने वाला होता है। मुनिराज ने प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित करने की विधियां संपन्न की।
आयोजन में पूजन से पूर्व शांति धारा श्री चांदमल जैन नंदावता ने की, धर्मसभा में आचार्य श्री के चित्र अनावरण व दीप प्रज्वलन माणकलाल विनोद कुमार जैन इंदौर, पं. विजय कुमार गांधी, विमल कुमार सिंहल, तथा भीलवाड़ा बूंदी नीमच इंदौर आदि अनेक स्थानों से आए श्रावको ने किया।
तीनों मुनिश्री के पाद प्रक्षालन व शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य श्री गुलाबचंद मनीष नीरज शाह तथा अनिल पाटनी भीलवाड़ा को प्राप्त हुआ। सायंकाल होने वाली महाआरती के लाभार्थी श्री चांदमल माणकलाल शैलेंद्र जैन परिवार थे।
मुनि आदिनाथ को राजा श्रेयांश के रूप में प्रथम आहार देने का सौभाग्य श्री शांतिलाल जयकुमार सौरभ गौरव बड़जात्या को प्राप्त हुआ। मुनिश्री के चरणों में श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद का लाभ लेने वालों में श्री महावीर जैन दलोदा, रामचंद्र उदयपुरिया, ओम सर, कमल बंडी, राजकुमार पाटनी प्रो अशोक अग्रवाल, सुधीर जैन, अनिल भोलीया मुकेश सिंघई समरथमल जैन, नरेंद्र कुमार गांधी एड, डॉ.मनसुखलाल गांधी, डॉ. वीरेंद्र गांधी, मुकेश सिंघई, समरथमल जैन सुनील सागर युवा संघ व अभिनव नवयुवक मंडल आदि शामिल थे।पंचकल्याणक के पांचों दिन पूरी समाज के स्वामी वात्सल्य के लाभार्थी श्री कमल राजमल बंडी, प्रकाशचंद्र भोवई, सुरेश कुमार अरनिया, एड संजय प्रकाशचंद गंगवाल, व सुनील कुमार भोलिया का स्वागत पंचकल्याणक महोत्सव समिति अध्यक्ष शांतिलाल बड़जात्या, दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष आदिश जैन, नवीन जिनालय ट्रस्ट अध्यक्ष श्री सुरेश जैन, मुनिसेवा समिति अध्यक्ष अरविंद मेहता, ललित दोषी, अभय अजमेरा, राजेश जैन, राकेश जैन, आदि ने किया। संचालन कोमल प्रकाश जैन ने किया, आभार सचिव अजीत बंडी ने माना।