प्रदेश
सामयिक संदर्भ में …. *क्या ,भाजपा जोखिम उठाने में कमजोर हो रही है?*
*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मन्दसौर २१ अक्टूबर ;अभी तक; ;अभी तक; यह स्वाभाविक प्रकृति है कि, कोई व्यक्ति या संस्था जब लंबे समय तक कंफर्ट जोन में रहती है, अर्थात जिन्हें रेशम के गद्दे पर सोने की आदत पड़ जाती है, वे चटाई पर सोने की कल्पना मात्र से ही सिहर उठते है। कुछ इसी तरह भारतीय जनता पार्टी को सत्ता की आदत लग जाने के कारण उसमें जोखिम उठाने की शक्ति और क्षमता में कमजोरी आई है?
एक समय था जब भाजपा, भारतीय जनसंघ के जमाने से लेकर के , विपक्ष में थी तब उसकी धार इतनी तेज थी कि- विपक्ष के नाम से नेहरू, इंदिरा, और उसके बाद के तमाम नेताओं की रूह तक कांप जाती थी तथा यही भाजपा, संगठन की रक्षा के लिए अथवा सत्ता प्राप्ति के बाधक तत्वों को बहुत निर्भयता एवं निर्ममता से छांट देते थी, किंतु अब, लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण भाजपा की धार बोठी हो रही है?
अभी मध्य प्रदेश में चुनाव के टिकट देने की पद्धति से इस बात का पता लगता है कि, इतने लंबे चिंतन- मनन के बाद भी जिन विधायकों के टिकट काटने चाहिए थे अथवा जातिगत समीकरण के आधार पर नए लोगों को टिकट देना था या सेकंड लाइन के लोगों को टिकट देने की योजना थी उस पर भाजपा अमल नहीं कर पाई
और अनेक स्थानों पर उन्हीं विधायकों को रिपीट कर दिया गया जो अपने कार्यकाल में विवादास्पद रहे हैं । यह भाजपा पदाधिकारीयों की राजनीतिक सूझबूझ का परिचायक है या कोई जबरदस्त मजबूरी? यह विचारणीय प्रश्न है।
सामान्यतः भाजपा के टिकट वितरण पद्धति में अनेक अप्रत्यक्ष संगठनों का हस्तक्षेप होता है तथा अनिर्णय की स्थिति में ये अप्रत्यक्ष संगठन ही उनकी नैया पार लगाया करते हैं , किंतु इस बार ऐसा प्रतीत होता है कि, उन्होंने भी अपने हाथ खींच लिए हैं।
खैर, जो भी हो वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति मजबूत है, क्योंकि कांग्रेस बिखरी हुई है और अन्य पार्टियां शक्तिहीन है। इसके साथ ही भाजपा के सकारात्मक क्रियाकलाप भी इसके अंको को बढ़ाती है। इसलिए मध्य प्रदेश में भाजपा की जीत सुनिश्चित है, किंतु भविष्य को ध्यान रखते हुए भाजपा संगठन को अपनी सैद्धांतिक दृढ़ता को मजबूत बनाते हुए अपने संगठन की धार को तेज करना पड़ेगा, अन्यथा पार्टी का एक बहुत बड़ा हिस्सा भाजपा के सैद्धांतिक ढांचे पर हावी हो जायगा जिसके कारण भाजपा के रूप में दूसरी कांग्रेस पार्टी का जन्म हो सकता है। अतः इससे बचना बहुत आवश्यक है। यदि 2047 तक भारतीय जनता पार्टी को अपने राष्ट्रीय-लक्ष्य प्राप्त करना है तो यह सब आत्म-चिंतन का विषय है।