अनासक्त भाव ही कल्याण करने वाला है- आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा.
अरुण त्रिपाठी
रतलाम, 21 अगस्त ;अभी तक ; जहां आसक्ति का भाव है, वहीं पर उत्पत्ति होती है। हमारे हाथ में कोई कंट्रोल नहीं है। मनुष्य भव मिला है तो प्रभु की आराधना ऐसी करो कि आने वाला भव सुधर जाए। आसक्त भाव लेकर किसी भी भव में जाएंगे तो वहां नुकसान होगा लेकिन यदि हम अनासक्त भाव लेकर गए तो वह कल्याणकारी होगा।
यह बात आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में चल रहे चातुर्मासिक मासिक प्रवचन में कही। उन्होने कहा कि प्रभु की आज्ञा अनुसार ही हमें काम करना चाहिए। अनासक्त भाव के लिए धर्म-आराधना करते रहे। प्रभु की धर्म-आराधना करने से ही हम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। प्रवचन में गणिवर्य डॉ. अजीत चंद्र सागर जी म.सा. ने कहा कि परमात्मा का शासन क्या है और परमात्मा कौन है, यह हमें धर्म ग्रंथ समझाते हैं। मनुष्य भव एक अवसर है जिसमें हम कई सारे कर्म कर सकते हैं, यही समझ कर हमें मोक्ष की ओर अग्रसर होना है। श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्री संघ गुजराती उपाश्रय रतलाम एवं श्री ऋषभदेव जी केसरीमल जी जैन श्वेतांबर पेढ़ी रतलाम ने सभी श्रावक, श्राविकाओं से प्रवचन में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित रहने का आव्हान किया है।