दुख के क्षणों में समभाव रखो- साध्वी श्री अर्हताश्रीजी

महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २३ अक्टूबर ;अभी तक;  मानव जीवन में सुख दुख के क्षण आते जाते रहते है लेकिन मनुष्य को इससे घबराना नहीं चाहिए जब भी प्रतिकूल परिस्थिति आये समभाव रखे। अनावश्यक रूप से शोक में रहने से कोई लाभ नहीं होता है। समभाव में रहने से प्रतिकूल परिस्थिति अनुकूल बन सकती है।
                                            उक्त उद्गार परम पूज्य जैन साध्वी श्री अर्हताश्रीजी म.सा. ने चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में कहे। आपने सोमवार को यहां धर्मसभा में मैना सुंदरी व श्रीपाल की कथा का वृतान्त सुनाते हुए कहा कि अपने पिता के द्वारा कुष्ठ रोगी से विवाह कराने के बाद मैना सुंदरी जब ससुराल पहुंची तो वहां गरिबी थी, कष्ट थे लेकिन मैना सुंदरी ने कष्ट पर दुख प्रकट करने की बजाय समभाव  रखा। मैना सुंदरी जो कि जैन धर्म के सिद्धांतों पर अडिग श्रद्धा रखती थी कठिन  परिस्थिति में भी उसने अपना शीलव्रत बनाये रखा तथा कुष्ठ रोगी श्रीपाल को तन मन से अपना पति स्वीकार किया। मैनासुंदरी की कथा आज की स्त्रियों के लिये प्रेरणादायी है। आज की स्त्रियां अधिक पढ़ी लिखी है लेकिन उनमें समझदारी की कमी है। ससुराल में थोड़ा सा दुख आने पर मायके आ जाती है तथा पति से तलाक मांगने लगती है पति या सास ससुर से थोड़ा सा क्लेष होने पर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती है। स्त्रियों को ऐसा करने की बजाय मैना सुंदरी व श्रीपाल की कथा को पढ़ना चाहिये। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। कोमलचंद प्रकाशचंद छाजेड़ की ओर से प्रभावना हुई।
                            45 श्रावक श्राविकाये कर रहे है औलीजी की तपस्या- साध्वी श्री अर्हताश्रीजी मसा. की पावन प्रेरणा से रूपचांद आराधना भवन में 45 श्रावक श्राविकाओं की औलीजी की तपस्या चल रही है। श्रावक श्राविकायें प्रतिदिन औलीजी के तप के अंतर्गत आयम्बिल कर रहे है। तपस्या कराने का धर्मलाभ मोहनलाल नीतिनकुमार आदित्य भण्डारी परिवार ने लिया है।