गुरू की आज्ञा को श्रेष्ठ समझो- योग रूचि विजयजी म.सा.
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २४ जुलाई ;अभी तक; जैन धर्म व दर्शन में गुरू आज्ञा को श्रेष्ठ स्थान दिया गया है। गुरू आज्ञामें जो भी चलते है वे श्रेष्ठ स्थान पाते है तथा जो गुरू की आज्ञा में नहीं चलते है उनकी दुर्गति होती है। इसलिये जीवन में गुरू आज्ञा को सबसे अधिक महत्व दो।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन संत पन्यास प्रवर योग रूचि विजय जी म.सा. ने आराधना भवन नईआबादी में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने बुधवार को धर्मसभा में कहा कि जैन धर्म में तीर्थंकरों की आज्ञा को श्रेष्ठ धर्म कहा है। वर्तमान में तीर्थंकार भगवान नहीं है ऐसे में गुरू आज्ञा भी तीर्थंकरों की आज्ञा के समान महत्वपूर्ण है। इसलिये गुरू जो भी आज्ञा दे उसका पालन शिष्य को करना ही चाहिये। शिष्य चाहे गृहस्थ हो या संयमी, यह नियम सभी के लिये है। आपने कहा कि जो भी गुरू आज्ञा नहीं मानता है उसका वर्तमान भव तो बिगड़ता ही है साथ ही अगला भव भी बिगड़ जाता है।
हरिभद्रसूरिश्वरजी म.सा. के जीवन से प्रेरणा ले- आपने आचार्य श्री हरिभद्रसूरिश्वरजी का वृतान्त बताते हुए कहा कि वे परम गुरू भक्त थे उन्होंने 1444 ग्रंथों की रचना की उनका जीवन सभी साधु संतों के लिये ही नहीं बल्कि सभी के लिये प्रेरणादायी है।
धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजनों ने संतश्री की अमृतमयी वाणी का धर्मलाभ लिया। धर्मसभा का संचालन दिलीप रांका ने किया। धर्मसभा के पश्चात् रोशनलालजी अजयकुमारजी धाकड़ (जैन) परिवार के द्वारा प्रभावना का वितरण हुआ।