एम्स के डेंटल सर्जन की जेड प्लेट काे मिला कॉपीराइट:7 हजार रुपए में होगी जबड़े के फ्रैक्चर की सर्जरी, अब तक 1 लाख रुपए आता था खर्च
सड़क हादसों व मारपीट की घटनाओं में जबड़ा या चेहरे के अन्य हिस्से की हड्डी में फ्रैक्चर होना बड़ी समस्या है। इसके मद्देनजर एम्स में रविवार को संस्थान के डेंटल सेंटर ने कार्यशाला का आयोजन किया है। इसमें एम्स के डॉक्टर दूसरे अस्पतालों के डॉक्टरों को टूटे हुए जबड़े को जोड़ने की अत्याधुनिक तकनीक बताएंगे। एम्स के डेंटल सेंटर के डॉक्टरों का कहना है कि छोटे प्लेट के माध्यम से टूटे जबड़े को जोड़ने से मरीज जल्द ठीक हो जाता है।
डेंटल सेंटर के मैक्सिलोफेसियल सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. अजोय रॉय चौधरी ने कहा कि हादसा पीड़ितों के चेहरे के फ्रैक्चर हड्डियों को जोड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिशा निर्देश हैं। इसके बावजूद डॉक्टर अपने-अपने तरीके से सर्जरी करते हैं। इस कार्यशाला का मकसद विश्व में इस्तेमाल हो रही अत्याधुनिक तकनीक की जानकारी उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा कि पहले ऐसे मामलों में मरीजों की सर्जरी के लिए वायर का इस्तेमाल होता था। टूटे हुए जबड़े को जोड़ने के अलावा वायर से दांतों को बांध देते थे। इसलिए मरीज का मुंह नहीं खुल पाता। लिहाजा मरीज छह से आठ सप्ताह तक भोजन नहीं कर पाता था। इस वजह से मरीज को कमजोरी व पोषण से संबंधित परेशानियां होती थीं।
अब एम्स में इस तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जाता। टाइटेनियम के बने छोटे प्लेट व स्क्रू इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके माध्यम से चेहरे की फ्रैक्चर हड्डी को जोड़ दी जाती है। इसलिए एक दिन बाद ही मरीज पानी व अन्य तरल पदार्थ लेने लायक हो जाता है। दो सप्ताह में मरीज भोजन भी करने लगते हैं। एम्स में हर साल इस तकनीक से करीब 350 मरीजों की सर्जरी की जाती है।
एम्स में अब तक 60 मरीजों को आर्टिफिशल जबड़ा लगाया गया है। एम्स के ओरल एंड मैक्सिलोफेसियल सर्जरी के विभाग के एचओडी डॉ. अजय रॉय चौधरी ने कहा पहले आर्टिफिशल जबड़ा उपलब्ध नहीं होने की वजह से पारंपरिक तकनीक से सर्जरी करनी होती थी, जिससे मरीज के चेहरे की गड़बड़ी पूरी तरह ठीक नहीं होती थी। अब पिछले कुछ सालों से आर्टिफिशल जबड़ा आ गया है। एम्स में पिछले चार सालों में 60 मरीजों की आर्टिफिशल जबड़ा लगाया गया है और इसके लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया। डॉक्टर ने कहा कि इस तकनीक में पहले 3डी मॉडल तैयार कर सर्जरी की प्लानिंग की जाती है। इसके बाद खराब जबड़े को निकालकर आर्टिफिशल जबड़ा लगाया जाता है।
डॉक्टर अजय रॉय ने कहा कि एम्स में जिन मरीजों की सर्जरी हुई है उनमें से ज्यादातर 18 से अधिक उम्र के लोग हैं। कुछ 15 से 18 साल के बीच के भी हैं। उन्होंने कहा कि अभी देश में स्वदेशी इंप्लांट उपलब्ध नहीं है और विदेशों में भी इसे बनाने वाली कंपनियां कम है। इसलिए यह महंगा है और इसकी कीमत डेढ़ लाख रुपये है। लेकिन अब राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना बड़ी मददगार साबित हो रही है। डॉक्टर का कहना है कि इलाज के लिए आए 90 पर्सेंट मरीजों का इलाज राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना से मिली मदद से संभव हो पाया है। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की भी जबड़े की सर्जरी हो पा रही है।
डॉक्टर ने कहा कि बड़ी चिंता की बात यह है कि देश भर में ऐसी सर्जरी करने वाले डेंटल सर्जन कम हैं। उन्होंने कहा कि हमने दूसरे अस्पतालों के डॉक्टरों को ट्रेनिंग देना शुरू किया है। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों को ट्रेनिंग देने के लिए एम्स के डेंटल सेंटर ने सोमवार से तीन दिवसीय वर्कशॉप शुरू की है, जिसमें देश भर के 50 डेंटल सर्जन हिस्सा ले रहे हैं।
हादसों में जबड़े के फ्रैक्चर के मरीजों को अब महंगे इलाज से निजात मिलेगी। भोपाल के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) के डेंटल सर्जन ने जेड प्लेट को ईजाद किया है। इसे मिनिस्ट्री ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री ने कॉपीराइट दिया है। इस जेड प्लेट को संस्थान के डेंटिस्ट डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अंशुल राय ने तैयार किया है।
अभी स्ट्रेट प्लेट लगाकर की जाती है सर्जरी
डॉ. अंशुल राय ने बताया कि अब तक जबड़ा फ्रैक्चर के मरीजों की सर्जरी स्ट्रेट प्लेट लगाकर की जाती है। आमतौर पर निजी अस्पतालों में यह ऑपरेशन एक रुपए से अधिक में होता है। अब एम्स में जेड प्लेट इम्प्लांट से इस सर्जरी के करने से 7 से 8 हजार रुपए में हो सकेगी।
फ्रैक्चर को जोड़ने एक ही प्लेट लगाना पड़ेगी
डॉ. अंशुल राय के मुताबिक एक मरीज के एक तरफ के जबड़े के फ्रैक्चर को जोड़ने दो स्ट्रेट प्लेट इंप्लांट लगाना पड़ता था। जबकि जेड प्लेट एक ही लगाना पड़ेगी। जेड प्लेट इम्प्लांट लगाने से मरीज की रिकवरी भी जल्दी होगी।
जबड़ा फ्रैक्चर के हर महीने 40 मरीज
भोपाल एम्स के डेंटिस्ट्री डिपार्टमेंट में हर महीने औसतन 40 मरीज जबड़े के फ्रेक्चर के भर्ती होते हैं। इन सभी मरीजों के जबड़े का फ्रैक्चर को जोड़ने स्ट्रेट प्लेट लगाई जाती है। स्ट्रेट प्लेट इंप्लांट सर्जरी में जेड प्लेट इंप्लांट सर्जरी की तुलना में ज्यादा समय लगता है। भारत सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री से जेड प्लेट को कॉपीराइट मिल गया है। इस कारण अब जबड़े के फ्रैक्चर के 50 फीसदी मरीजों को जेड प्लेट लगाई जाएगी।