प्रदेश
30 वर्षीय किन्नर जोइता मंडल भारत की प्रथम न्यायाधीश थी
महावीर अग्रवाल
मंदसौर ७ जून ;अभी तक; 30 वर्षीय जोइता मंडल पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं और अब उन्हें भारत की प्रथम ‘किन्नर’ (Transgender) न्यायाधीश होने का खिताब मिल चुका है। जोइता ने यह अपने संघर्षों से सबक लिया और जीवन में कभी हार नहीं मानी, इसी का नतीजा है कि आज वह एक सफल व्यक्ति हैं, तथा समाज को एक नई शिक्षा प्रदान कर रही हैं। अब वे समाज सेवा के कई काम करती हैं जैसे वृद्धाश्रम चलाती हैं और रेड लाइट इलाके में रहने वाले परिवारों के जीवन में बदलाव लाने की भी कोशिश कर रही हैं। जोइता के इसी सेवाभावी स्वभाव की वज़ह से पश्चिम बंगाल की सरकार द्वारा उन्हें सम्मानित करते हुए लोक अदालत का न्यायाधीश बनाया और इस तरह वे भारत की प्रथम ‘किन्नर’ न्यायाधीश बन गईं।
वे मध्य प्रदेश की व्यावसायिक नगरी कहे जाने वाले इंदौर शहर में ट्रेडेक्स द्वारा ऑर्गनाइज किए गए एक समारोह में भाग लेने के लिए आई थी। तब उन्होंने मीडिया से किन्नर समाज तथा रेड लाइट एरिया में रहने वाले परिवारों की समस्याओं जैसे कई मुद्दों पर बातचीत की और उन्होंने अपने जीवन के उस कठिन समय के बारे में भी बताया जिस समय वह रेलवे स्टेशन तथा बस अड्डों पर रात बिताया करती थीं। उन्होंने अपने जीवन से जुड़े कई पहलुओं के बारे में मीडिया से बात की
घर के सदस्यों द्वारा बेरहमी से पीटा जाता था ।स्कूल कॉलेज में भी उपेक्षित किया जाता था ।मजाक बनाया जाता था और उन्हें नाचने पर मजबूर किया जाता था। समाज में भी उन्हें एक हिकारत भरी दृष्टि से देखा जाता था।
जोइता ने ट्रांसजेंडर होने की वज़ह से इतने ज़ुल्म सहे, जिसे सुनकर रूह कांप जाती है। वे बताती हैं कि “उस समय वह स्वयं को एक साधारण लड़की की तरह समझती थीं, उनका बचपन ऐसे ही बीता, फिर जब उनकी आयु 18 वर्ष होने को थी, तब दुर्गा पूजा के समय उनका भी मन हुआ कि वे भी साज श्रृंगार करें । इसलिए वे ब्यूटी पार्लर गयीं । जब वहाँ से वापस आई तो उनके परिवार के सदस्य बहुत गुस्सा हो गए, क्योंकि वे सभी उन्हें लड़का ही मानते थे, तब उन्हें इतना मारा गया था वह बेहोश हो गई थी।
किंतु जोइता मंडल ने अपने आप को समाज सेवा में लगा दिया जिसकी योग्यता के कारण उन्हें बंगाल सरकार ने उपभोक्ता फोरम में अशासकीय प्रतिनिधि जिन्हें न्यायाधीश का दर्जा प्राप्त है के रूप में नियुक्त किया।
विश्व के कुछ राष्ट्र छोड़ दें तो अन्य राष्ट्रों में किन्नर समाज के दो अपने शैक्षणिक योग्यता बढ़ाते हैं और विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं देते हैं ।
भारत में उक्त व्यवस्था लागू नहीं हो रही है ।आज भी किन्नर विभिन्न स्थानों पर नाच गाकर अपना जीवन यापन करते हैं ।इसके बजाय किन्नरों को अपनी योग्यता बढ़ना चाहिए और किसी भी शासकीय अशासकीय क्षेत्र में उन्हें अपनी सेवाएं देनी चाहिए तो सब परिवार को भी चाहिए कि ऐसे परिवारों में जहां किन्नर बच्चे पैदा होते हैं उनको बजाएं बाहर भेजने के उनकी शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करना चाहिए तथा सरकार को भी इस दिशा में प्रयास करते रहना चाहिए ।
*संकलन-रमेशचन्द्र चन्द्रे*