जुआ खेलने के अपराध में पुलिस आरक्षक हुआ दोषमुक्त, विभागीय दंडात्मक आदेष को हाईकोर्ट ने ठहराया सही
सिद्धार्थ पांडेय
जबलपुर २७ जून ;अभी तक; जुआ खेलने के अपराध में दोषमुक्त होने के बावजूद भी विभागीय जांच में दोषी करार दिये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। हाईकोर्ट जस्टिस जी एस आलूवालिया की एकलपीठ ने अपने आदेष में कहा है कि विभागीय जांच में तभी हस्ताक्षेप किया जा सकता है,जब बिना किसी साक्ष्य के आधार पर की गयी हो। एकलपीठ ने साक्ष्य के आधार पर की गयी विभागीय जांच को सही मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
छिंदवाडा में पदस्थ एसएएफ आरक्षक उत्कृष्ट उपाध्याय की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि भोपाल पुलिस ने उसे जुआ खेलने का प्रकरण दर्ज किया था। जिसके बाद उसके खिलाफ विभागीय जांच के आदेष जारी किये गये थे। जुआ खेलने के अपराध में न्यायालय ने उसे दोषमुक्त करार दिया था। विभागीय जांच में उसे दोषी पाते हुए एक वेतन वृध्दि की सजा से दंडित किया गया। जिसके खिलाफ उसने अपील दायर की थी,जो खारिज कर दी गयी।
याचिका में कहा गया था कि विभागीय जांच के दौरान सिर्फ विभागीय गवाह ने उसके खिलाफ बयान दिये थे। स्वतंत्रता गवाह अपने बयान में मामले के जानकारी नहीं होना बताया था। इसके बावजूद भी उसे विभागीय जांच के बाद सजा से दण्डित किया गया। याचिका में विभागीय दंडात्मक सजा को निरस्त करने की राहत चाही गयी थी।
एकलपीठ ने अपने आदेष में पाया कि गिरफतार करने वाले पुलिस कर्मचारी का याचिकाकर्ता से कोई द्वेष नहीं था और जांच में वह विभागीय गवाह था। विभागीय जांच मेें हाईकोर्ट तभी हस्ताक्षेप करता है जब बिना किसी साक्ष्य के आधार पर कोई निष्कर्ष निकाला जाता है। इस मामले में साक्ष्य होने पर विभागीय जांच की गयी थी। एकलपीठ ने उक्त आदेष के साथ याचिका को खारिज कर दिया।