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कर्म का फल मनुष्य को भोगना ही पड़ता है- साध्वी श्री रमणीक कुंवरजी

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर ६ अगस्त ;अभी तक ;  जैन धर्म व दर्शन कर्म और उसके फल पर विश्वास करता है अर्थात जो मनुष्य जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल भोगना पड़ेगा। जीवन में कभी भी ऐसे पापकर्म मत करो जिसके कारण तुम्हें पछताना पड़े या रोना पड़े हंसते हंसते हम जो कर्म बंधन करते है। कई बार बुरे कम का प्रभाव जीवन में उदय में आने पर उसका फल रोते रोते भोगना पड़ता है। इसलिये कर्म बंधन को समझे और जीवन  पुण्य कर्म करे, पापकर्म नही।
                                       उक्त उद्गार प.पू. जैन साध्वी श्री रमणीककुंवरजी म.सा. ने नईआबादी स्थित श्री जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन में कहे। आपने मंगलवार को यहां धर्मसभा में कहा कि जीवन में जाने अनजाने में पापकर्म हो जाते है। ऐसा होने पर सच्चे मन से उसका पश्चाताप करो, पश्चाताप की भावना पापकर्म का प्रभाव कम कर देती है। जीवन में सदैव पुण्य कर्म करने का प्रयास करें और पापकर्म से बचो।
जिनवाणी को आत्मसात करो- साध्वीजी ने कहा कि कई बार हम जिनवाणी ज्ञानीजनों की अच्छी बाते तो सुनते है लेकिन उसे जीवन में आत्मसात नहीं करते। जिनवाणी को यदि हम जीवन में आत्मसात करेंगे तो स्वयं का भी कल्याण करेंगे और दूसरे को भी इसके लिये प्रेरित कर पायेंगे।
जीवन में समभाव रखे- साध्वीजी ने कहा कि संसार में कोई भी वस्तु स्थायी नहीं है जो वस्तु आपके पास है वह पहले दूसरे के पास थी और आगे भविष्य में और किसी के पास होगी। इसलिये वस्तु पर राम अर्थात मोह ठीक नहीं है। जीवन में समभाव रखना जरूरी है।
धर्मसभा में साध्वी श्री चंचलाश्रीजी म.सा. ने भी अपने विचार रखे। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। संचालन पवन जैन (एच.एम.) ने किया.

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