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*मंदिरों में भगवान से बड़ा कोई नहीं होता* 

  *रमेशचन्द्र चन्द्रे*
    मन्दसौर १५ जुलाई ;अभी तक;    जो भक्त भगवान के निराकार स्वरूप के सामने एकाग्र चित्त नहीं हो सकता उसके लिए मंदिर ही एक ऐसा केंद्र है जहां स्थापित मूर्ति के साथ वह तादात्म्य स्थापित कर मन की शांति प्राप्त कर सकता है, क्योंकि मूर्ति के रूप में ईश्वर का साकार रूप मंदिर में ही होता है, किंतु आजकल मंदिर के ट्रस्टी और पुजारी, भक्तों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए जोड़ तोड़ करते हैं तथा अपना वर्चस्व स्थापित करने के प्रयासों में अपने मूल लक्ष्य से स्वयं तो  भटक ही  जाते है तथा भक्तों को भी भटका देते हैं।
                              मंदिर आने वाले लगभग सभी भक्त कम या ज्यादा आस्था लेकर ही आते हैं और उस आस्था का नकदीकरण करने के लिए यदि  पुजारी- पंडे, ज्योतिषी अथवा भविष्यवक्ता बन कर  तांत्रिक एवं मंत्रिक क्रिया कर गंडे, ताबीज और टोटके  बताने का काम करते हैं तो  वे एक प्रकार से मंदिर में बैठकर  ईश्वरीय शक्ति को ही चुनौती देने का काम करते हैं। इस कारण भोले भाले भक्त भ्रमित होकर ईश्वरीय शक्ति से ना जुड़कर ऐसे व्यवसायिक व्यक्तियों से जुड़ जाते हैं और जो भक्त, मंदिर में  ईश्वर से प्रेम करने के लिए जाते है वह वहां उपस्थित पंडे- पुजारियों को ही ईश्वर का अवतार या रूप मानने लग जाते है। यदि इन व्यवसायिक लोगों के बीच कोई में जागरूक भक्त या ट्रस्टी आता है तो वह इन दोनों का टारगेट बन जाता है।
                          उक्त स्थिति के कारण ही धार्मिक तथा सांस्कृतिक संकट उत्पन्न होता है और अनेक बार वहां के पंडे पुजारी ही विवादों के कारण बन जाते हैं तथा कभी-कभी यह लोग ट्रस्टीयों को आपस में ही लडवा देते हैं या फिर ट्रस्टीयों और भक्तों के बीच गलतफहमी पैदा करने में कामयाब हो जाते हैं।
                           इसी कारण भारत के अनेक धार्मिक स्थानों पर अनेक प्रकार के विवाद दिखाई देते हैं जिनका निराकरण होना सनातन धर्म के लिए अति आवश्यक है। *इसके साथ ही ट्रस्टी सेवा के लिए होते हैं किंतु वे अपने आप को मंदिर का मालिक समझने लगते हैं और कुछ भक्त भी ऐसे हैं* *जिन्हें भक्ति का अहंकार हो जाता है तथा वे मंदिर और मंदिर के गर्भगृह को अपनी विरासत समझ कर अव्यवस्थाएं उत्पन्न करते हैं।*
                               अतः अंत में यही निष्कर्ष  है कि जब मंदिर के ट्रस्टी, पंडे पुजारी, पूजा -पाठ  को छोड़कर राजनीति करने लगते हैं तथा इनके साथ राजनेता भी जुड़ जाते हैं तब ही इस प्रकार के संकट उत्पन्न होते हैं ।
                       मंदिर सामाजिक चेतना एवं भक्ति के केंद्र बनना चाहिए इसलिए हर समय वहां शांति स्थापित हो इस प्रकार के प्रयास आवश्यक है। *यहां यह भी स्मरण रखने योग्य बात है कि अच्छे पुजारी सम्मान के पात्र होते हैं उन्हें नौकर नहीं समझा जाना चाहिए*।
 *नोट:-* उपरोक्त स्थिति हर मंदिर या धार्मिक संस्थान पर नहीं है कुछ कुछ स्थानों पर ही यह स्थिति दिखाई देती है जिसके कारण समाज में अच्छा मैसेज नहीं जाता है।

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