श्रद्धा व भावपूर्वक ही संतों को नमन करें- साध्वी श्री उर्विता श्रीजी
महावीर अग्रवाल
मंदसौर १८ अगस्त ;अभी तक ; जीवन में साधु-साध्वी और गुरू को वंदन करते समय विवेक रखना चाहिये। जब भी इन्हें वंदन करो भावपूर्वक श्रद्धाभाव से करो, आपके द्वारा यदि श्रद्धा भाव भावपूर्वक वंदन किया जाता है तो इससे आपके कर्म बंधन टूटते है अर्थात पापकर्म का क्षय होता है। जीवन में जहां भी 5 महाव्रतधारी साधु साध्वी मिले उन्हें श्रद्धाभाव से वंदन नमस्कार करो और उनकी वयावच्छ अर्थात सेवा करो।
उक्त उद्गार प.पू. जैन साध्वी श्री उर्विताश्रीजी म.सा. ने चौधरी कॉलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में कहे। आपने रविवार को यहां धर्मसभा में साध्वी श्री विशुद्धप्रज्ञाजी म.सा. व सविता श्रीजी म.सा. की पावन उपस्थिति में कहा कि श्री कृष्ण जब नेमीनाथजी के पास उन्हें वंदन करने जाते थे तो वे पूर्ण श्रद्धाभाव से उन्हें वंदन करते थे। उस दौरान वे अपने परिवार की सभी पत्नियों, बालकों एवं प्रजा के प्रमुख प्रतिनिधियों को भी साथ ले जाते थे। उनकी भावपूर्वक श्रद्धापूर्वक की गई वंदना नमस्कार के कारण उनका तीर्थंकर कर्म बंधा है अर्थात वे अगली 24वीं सी में तीर्थंकर बनेंगे। यदि हम भी कृष्णजी से प्रेरणा ले और भावपूर्वक वंदन करे तो हम कम से कम अगला भव तो सुधार ही सकते है। जैन धर्म व दर्शन भाव व श्रद्धापूर्वक वंदन की महत्ता को शास्त्रों में भी स्थान मिला है। राजा क्षणिक भी सब संतों के पास जाते थे तो वे भी उनके आदर सत्कार का पूरा ध्यान रखते थे। साध्वीजी ने कहा कि जब भी संतों को वंदन करते है वह वंदना व्यक्ति को नहीं बल्कि जिन शासन के श्वेत वस्त्र को नमन होता है। आपने कहा कि स्वार्थ की भावना से हमंे कभी वंदन नहीं करना चाहिये जब भी गुरू के पास जाओ ज्ञान प्राप्त करने धर्म चर्चा हेतु जाओ। भौतिक धन सम्पादा की चाहत लेकर गुरू के पास मत जाओ। स्वार्थ के लिये की गई वंदना नमस्कार आपको शुभ फल नहीं देती है इसलिये जीवन को इसका जरूर ध्यान रखना रखे। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। संचालन श्रीसंघ अध्यक्ष दिलीप डांगी ने किया।