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अ.भा. साहित्य परिषद की रिमझिम काव्य गोष्ठी सम्पन्न

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर ४ जुलाई ;अभी तक;  अखिल भारतीय साहित्य परिषद मंदसौर इकाई के द्वारा रिमझिम काव्य गोष्ठी का आयोजन ललित बटवाल, गोपाल बैरागी, गोपाल त्रिपाठी ‘निर्झर’, डॉ. उर्मिला तोमर, डॉ. निशा महाराणा, नंदकिशोर राठौर, अजय डांगी, चंदा डांगी, सुरेन्द्र शर्मा ‘पहलवान’, नरेन्द्र भावसार, हरिओम बरसोलिया, विजय अग्निहोत्री, नरेन्द्र त्रिवेदी, पूजा शर्मा के सानिध्य में अम्बिका बायोटेक वाटिका के प्राकृतिक सुरम्य वातावरण में गरमा गरम पकोड़ी के सेवन के साथ सम्पन्न हुआ।
                       कार्यक्रम की शुरूआत किशोरदीप द्वारा मॉ की वंदना ‘‘चलों उतारें हम सब मिलकर मॉ की पावन आरती’’ से हुई। गोपाल बैरागी ने गुरू की महिमा का बखान करते हुए ‘‘देते जो विद्या का दान, जग में होते वहीं महान, शिष्य को कर देते ज्ञान का अर्पण, उनके चरण कमलों से भाव भरा अभिनंदन कविता सुनाई। डॉ. उर्मिला तोमर ने वातावरण के अनुरूप रचना ‘‘बारिश की बूंदे भिगा देती सारी कायनात को, बूंदों का अद्भूत संसार, तरंगित कर देता मन के तार’’ सुनाकर बारिश की बूंदों को बरसने का आमंत्रण दिया। ललित बटवाल ने मल्हार राग में गीत ‘‘श्याम घन बन आए बादल नन्हीं, नन्हीं बूंद बन छाए बादल’’ गाकर बूंदों को बरसने का आव्हान किया।
                                   नंदकिशोर राठौर ने बूंदों को बरसने की दशाओं का चित्रण करते हुए ‘‘उमड़ घुमड़ कर बादर आए, दादुर मोर पपीहा गाए, तप से तपी धरा को, देने पानी की सौगात, आई बंूदों की बारात’’ कविता को सुनाकर माहौल को मानसूनी बना दिया।  डॉ. निशा महाराणा ने ‘‘लहरें आतुर थी, किनारे पे आने को, जैसे बेटियां बाबूल का दुलार पाने को’’ समुद्र और बेटियों के मन को कोई समझ नहीं सका बताया। विजय अग्निहोत्री ने सावन की विरह दशा का चित्रण ‘‘फिर याद आए सजन सावन के बहाने, हाथों में हाथ डाले प्यार के बहाने’’ सुनाकर किया।
गोपाल त्रिपाठी ‘‘निर्झर’’ ने वृक्षारोपण पर व्यंग कविता ‘‘एक गुलमोहर का पौधा लगाने के लिये, मंत्रीजी का हेलीपेड बना, जिसमंे कई पेड़ कटवा दिये’’ सुनाई। श्रीमती चंदा डांगी ने पानी को व्यर्थ न बहने देना, जहां जैसे हर बूंद को रोक लेना’’ सुनाकर पानी को सहेजने की आवश्यकता पर जोर दिया। हरिओम बरसोलिया ने अदालत पर कविता ‘‘देखी तेरी अदा, मुझको लग गई लत, दोनों जो मिले बन गई अदालत‘‘ सुनाई।
नरेन्द्र भावसार ने ‘‘गरिबी भी क्या गजब चीज है। ये रोकर के आंसू हँसना सिखाती है’’ अजय डांगी ने मोबाइल के अत्यधिक प्रयोग से प्रभावित हो रहे रिश्तों के बारे में बताते हुए कहा कि ‘‘पहले टीवी अब मोबाइल रिश्तों को तोड़ने की अग्नि मिसाइल’’। सुरेन्द्र शर्मा ‘पहलवान’ ने  कुदरत का करिश्मा तो देखो, सब भूल भूलईयां है’’ सुनाकर प्रकृति की संुदरता का चित्रण किया। नरेन्द्र त्रिवेदी ने ‘‘अमावस का दीप भी लड़ता है, तमस से रात भर लेकिन हर मानव सुबह चढ़ते सूरज को ही नमन करता है’’ सुनाई। पूजा शर्मा ने बेटियों को बाबूल की चिन्ता चिड़िया के माध्यम से मुखरित की ‘‘घर मेरे बाबुल का आबाद रखना चिड़िया, मैं आऊं या ना आऊं तू चहकती रहना चिडिया’’।
इस अवसर पर परिषद की नई सदस्य पूजा शर्मा का जन्मदिवस डॉ. उर्मिला तोमर, निशा महाराणा, चंदा डांगी ने पुष्पहार पहनाकर सभी सदस्यों के साथ जन्मदिवस की शुभकामना प्रदान की।
कार्यक्रम का संचालन नंदकिशोर राठौर ने किया एवं आभार नरेन्द्र भावसार ने माना और प्रकृति ने भी सभी कवियों की भावना के अनुरूप गोष्ठी समापन तक रिमझिम बरसात शुरू कर दी।

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