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समन्वय परिवार ने पूज्य स्वामी सत्यमित्रानंदजी का अपना घर में मनाया 92 वां प्रकाशोत्सव

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर २० सितम्बर ;अभी तक ;   भानपुरा पीठ के निवृत्तमान पद्म विभूषण जगदगुरू शंकराचार्य तथा भारत माता मंदिर हरिद्वार के संस्थापक ब्रह्मलीन स्वामी श्री सत्यमित्रानंदजी गिरी महाराज का स्थानीय समन्वय परिवार द्वारा सीतामऊ फाटक स्थित बालगृह अपना घर में 92वां प्रकाशोत्सव (महानिर्वाण दिवस) ऋषिकेश के परम पूज्य स्वामी श्री  आनन्द स्वरूपानंदजी महाराज के सानिध्य में मनाया गया। प्रारंभ में स्वामी सत्यमित्रानंदजी के चित्र पर माल्यार्पण कर और दीप प्रज्वलन किया गया। स्वामीजी का समन्वय परिवार अध्यक्ष रामेश्वर काबरा ने शाल श्रीफल भेंटकर व पुष्पहार पहनाकर सम्मान किया। सम्मान करने वालों में समन्वय परिवार के गोपाल त्रिवेदी, दिलीप गौड़, रमेशचन्द्र सेनी, रमेश शर्मा, शंभुसेन राठौर, हरिकृष्ण गौड़, उमेन्द्रसिंह गौड़, श्रीमती गीतांजली गौड़, शुभम गौड़, सुश्री योग्यता मोड़, श्रीमती भारती शर्मा, श्रीमती हेमलता सोनी, प्रियेश व्यास, अर्चना माहेश्वरी, वंदना गौड़ आदि ने स्वामीजी को वंदन प्रणाम कर आशीर्वाद लिया।
                         स्वामीजी बालिकाआंे और उपस्थितजनों को जीवन में चरित्र की महत्ता बताते हुए कहा कि जिसका आचरण चरित्र उज्जवल और पवित्र होता है वह हर जगह पूजा जाता है। चाहे जितनी विद्वता हो परन्तु चरित्र यदि उज्जवल नहीं है तो उसे हमेशा घृणा की दृष्टि से देखा जाता है। रावण प्रकाण्ड विद्वान थ। तीनों लोगों में उसकी धाक थी परन्तु एक चरित्र की कमी होने से कोई भी रावण को याद नहीं करता बल्कि प्रतिवर्ष उसके पुतले जलाये जाते है।
                              आपने कहा स्कूलों में चरित्र निर्माण की  ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। घर में परिवार में माता-पिता के बाद स्कूली शिक्षा में बच्चे पर चरित्र निर्माण की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। हमारा जीवन दूसरो के लिये प्रेरणादायक बने ये संस्कार बच्चों में बचपन से यदि दिये जाते है तो वे समाज में अपने साथ ही अपने परिवार-समाज को प्रतिष्ठा दिलाते है। वर्तमान में बच्चों में मोबाइल में जो विदेशी कार्टून देखने और गेम खेलने की दुष्प्रवृत्ति घर करती जा रही है उससे माता-पिता को बच्चों को दूर रखना चाहिए। उज्जवल चरित्र के साथ ज्ञान भी होना चाहिये।
शास्त्रों का स्वाध्याय-ध्यान प्रभु भक्ति के संस्कार बचपन से हमारे जीवन में होना चाहिये।
स्वामी सत्यमित्रानंदजी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए आपने कहा स्वामीजी का सम्पूर्ण जीवन का लक्ष्य उद्देश्य हमारे जीवन में ज्ञान का प्रकाश हो इस ओर था। स्वामीजी के दर्शन करने, जीवन को सुखी आनन्दित बनाने के लिये केवल सनातन धर्मावलम्बी ही नहीं प्रत्येक धर्म के अनुयायी स्वामीजी के पास आकर अपनी प्रत्येक शंका-समस्या का समाधान पा जाते थे।
सेवा परमो धर्म बताते हुए आपने दूसरे के दुखों का निवारण कर सुख पहुंचाना को परम धर्म बताया। जीवन में अम्बानी अडानी की तरह सब कुछ खरीदा जा सकता है परन्तु आयु को कोई
खरीद नहीं सकता इसलिये आयु का एक-एक पल व्यर्थ बर्बाद नहीं करके हमें सद्कार्यों में लगाना चाहिए।
अपना घर की उत्तम व्यवस्था-बालिकाओं के लिये विभिन्न स्कूलों में उच्च शिक्षा की व्यवस्था देखकर स्वामीजी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बच्चियों के बीच आना अपना परम सौभाग्य  माना।
रविन्द्र पाण्डे, बंशीलाल टांक, डॉ. दिनेश तिवारी ने भी संबोधित किया।
संचालन डॉ. घनश्याम बटवाल ने किया व आभार रामेश्वर काबरा ने माना।
अंत में आरती स्वामी सत्यमित्रानंदजी द्वारा रचित प्रार्थना ‘‘अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में’’ का सामूहिक गान और प्रसाद वितरण हुआ।

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