प्रदेश
संतों के समीप जाकर लौकिक कामनाओं की नहीं परलौकिक आत्म ज्ञान की जिज्ञासा प्रकट करना चाहिये- पू. स्वामी देवस्वरूपानंदजी महाराज
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर १६ जून ;अभी तक; परम अवधूत संत ब्रह्मलीन स्वामी श्री ऋषियानन्दजी महाराज की आराध्या-इष्ट मॉ भगवती गंगा का अवतरण दिवस गंगा दशहरा श्री ऋषियानन्द आश्रम तेलिया तालाब पर मनाया गया।
प्रारंभ में प्रातः 8 बजे गंगा मंदिर में भगवती गंगा के श्री विग्रह (प्रतिमा) का पूजन अभिषेक आरती की गई।
तत्पश्चात् पूज्य स्वामी देवस्वरूपानंद सरस्वती के आत्म तत्व पर प्रवचन हुए। प्रसादी भण्डारा हुआ। बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए।
स्वामीजी ने कहा कि हम अपने को जो देह शरीर मान बैठै है यही सबसे अज्ञान है। हम देह नहीं बल्कि देही है। अर्थात इस देह और इस देह में स्थित इन्द्रियों का नियंत्रक आत्मा है।
स्वामी जी जाग्रत स्थान और सुक्षुप्ती का व्याख्या करते हुए कहा जब हम जाग्रत होते है तब स्वप्न और सुश्रुप्ती अवस्था नहीं रहती। इसी प्रकार स्वप्न में जाग्रत-सुषुप्ती और सुषुप्ती में जाग्रत-स्वप्न अवस्था नहीं रहती परन्तु तीनों अवस्थाओं में जब हमेशा बना रहता है वह हम आत्मा ही है। तीनों अवस्थाओं से जो परे न्यारा है वह है आत्मा।
संतों के पास लौकिक कामनाओं की पूर्ति के लिये नहीं बल्कि अलौकिक आत्मानुभूति आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिये जाना चाहिये तभी संतों के सानिध्य में जाने का सच्चा लाभ प्राप्त होता है।
प्रारंभ में प्रातः 8 बजे गंगा मंदिर में भगवती गंगा के श्री विग्रह (प्रतिमा) का पूजन अभिषेक आरती की गई।
तत्पश्चात् पूज्य स्वामी देवस्वरूपानंद सरस्वती के आत्म तत्व पर प्रवचन हुए। प्रसादी भण्डारा हुआ। बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए।
स्वामीजी ने कहा कि हम अपने को जो देह शरीर मान बैठै है यही सबसे अज्ञान है। हम देह नहीं बल्कि देही है। अर्थात इस देह और इस देह में स्थित इन्द्रियों का नियंत्रक आत्मा है।
स्वामी जी जाग्रत स्थान और सुक्षुप्ती का व्याख्या करते हुए कहा जब हम जाग्रत होते है तब स्वप्न और सुश्रुप्ती अवस्था नहीं रहती। इसी प्रकार स्वप्न में जाग्रत-सुषुप्ती और सुषुप्ती में जाग्रत-स्वप्न अवस्था नहीं रहती परन्तु तीनों अवस्थाओं में जब हमेशा बना रहता है वह हम आत्मा ही है। तीनों अवस्थाओं से जो परे न्यारा है वह है आत्मा।
संतों के पास लौकिक कामनाओं की पूर्ति के लिये नहीं बल्कि अलौकिक आत्मानुभूति आत्म ज्ञान की प्राप्ति के लिये जाना चाहिये तभी संतों के सानिध्य में जाने का सच्चा लाभ प्राप्त होता है।