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सद्गुरू स्वामी शांतिप्रकाश महाराज के 128वां जन्मोत्सव पर सत्संग सभा हुई
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर २४ अगस्त ;अभी तक ; श्री प्रेम प्रकाश पंथ के तृतीय पीठाधीश्वर सद्गुरु स्वामी शांतिप्रकाश महाराज प्रेम के अवतार थे। आप श्री ने हर मनुष्य में भगवान का स्वरूप देखा, आपका जीवन समाजसेवा, गरीब, बेसहारा, निर्धन व्यक्तियों एवं गौमाता की सेवा के लिये समर्पित था।
यह अमृतमयी उद्गार संतश्री शंभूलालजी प्रेम प्रकाशी ने श्री प्रेम प्रकाश आश्रम में सद्गुरू स्वामी शांतिप्रकाश महाराज के 128 वे जन्मोत्सव एवं वर्सी उत्सव के अवसर पर आयोजित सत्संग सभा में उपस्थित संगत के बीच व्यक्त कियेे।
संत श्री शुभलाल ने कहा कि जब देश में गो- माता की हत्या को लेकर जेल भरो आंदोलन हो रहा था तब सभी मर्यादाओं को तोड़कर स्वामी शांतिप्रकाशजी महाराज ने उस आन्दोलन में हिस्सा लिया था। तब आपने कहा मेरा जीवन गौ माता के लिये समर्पित है। आपने अनेक स्थानों के साथ-साथ कल्याण मुम्बई में जनसेवा के लिये धर्मशाला गौशाला, नारी शाला एवं बुजुर्गों के लिये विशाल स्थानों का निर्माण किया जो आज भी फल फूल रहे है।
संत श्री ने स्वामीजी के जीवन के अनेक चमत्कारी जीवन लीलाओं को आपने भजनों एवं प्रवचन के माध्यम से बतलाते हुए कहा कि आपका अवतार अवि भाजित हिन्दुस्तान के छोटे से गांव चक में हुआ। 11 वर्ष की अल्प आयु में बड़ी माता बीमारी में आपके नेत्रो की ज्योति चली गई किन्तु आचार्य सद्गुरू स्वामी टेऊँरामजी महाराज की कृपा दृष्टि एवं आशीर्वाद से अंतरआत्मा की ज्योति ऐसी प्राप्त हुई कि आप किसी भी भक्त से पांच वर्ष बाद भी मिलते थे तो स्वामी केवल उसकी आवाज से ही उसका नाम लेकर हाल चाल जान लेते थे। स्वामीजी के जीवन में त्याग, तपस्या एवं सेवा की भावना अटूट थी।
संत श्री ने कहा कि स्वामी शांति प्रकाश महाराज के 128 वें जन्मोत्सव से हम यही प्रेरणा लेवे कि सद्गुरू एवं महात्माओं की सेवा में हमें अहंकार न आवे, निस्वार्थ सेवा ही श्रेष्ठ सेवा है।
संतश्री ने जन्मोत्सव एवं वर्सी उत्सव पर श्रीमद् भागवत गीता एवं श्री प्रेमप्रकाश ग्रंथ के पाठों का भोग सम्पन्न किया।
इस पावन अवसर पर नन्दू आडवानी, दृष्टानन्द नैनवानी, वासुदेव सेवानी, ताराचंद जैसवानी,सुरेश बाबानी, दयाराम जैसवानी, नारायण शिवानी, मोहनदास फतनानी, हरिश उत्तवानी, गिरीश शिवानी, सुंदर आसवानी, देवीदास प्रदनानी, बाबू श्यामयानी, चंदीराम चंदानी, किशन लालवानी, जयकुमार जैसवानी आदि उपस्थित थे। अंत में सुख समृद्धि एवं अंचल में अच्छी बारिश का ‘‘पल्लव’’ पाकर सत्संग सभा समाप्त की गई। प्रसादी भण्डारे का भी आयोजन किया गया। आभार प्रदर्शन पुरूषोत्तम शिवानी एवं श्रीमती पुष्पा पमनानी ने प्रकट किया।
संत श्री ने स्वामीजी के जीवन के अनेक चमत्कारी जीवन लीलाओं को आपने भजनों एवं प्रवचन के माध्यम से बतलाते हुए कहा कि आपका अवतार अवि भाजित हिन्दुस्तान के छोटे से गांव चक में हुआ। 11 वर्ष की अल्प आयु में बड़ी माता बीमारी में आपके नेत्रो की ज्योति चली गई किन्तु आचार्य सद्गुरू स्वामी टेऊँरामजी महाराज की कृपा दृष्टि एवं आशीर्वाद से अंतरआत्मा की ज्योति ऐसी प्राप्त हुई कि आप किसी भी भक्त से पांच वर्ष बाद भी मिलते थे तो स्वामी केवल उसकी आवाज से ही उसका नाम लेकर हाल चाल जान लेते थे। स्वामीजी के जीवन में त्याग, तपस्या एवं सेवा की भावना अटूट थी।
संत श्री ने कहा कि स्वामी शांति प्रकाश महाराज के 128 वें जन्मोत्सव से हम यही प्रेरणा लेवे कि सद्गुरू एवं महात्माओं की सेवा में हमें अहंकार न आवे, निस्वार्थ सेवा ही श्रेष्ठ सेवा है।
संतश्री ने जन्मोत्सव एवं वर्सी उत्सव पर श्रीमद् भागवत गीता एवं श्री प्रेमप्रकाश ग्रंथ के पाठों का भोग सम्पन्न किया।
इस पावन अवसर पर नन्दू आडवानी, दृष्टानन्द नैनवानी, वासुदेव सेवानी, ताराचंद जैसवानी,सुरेश बाबानी, दयाराम जैसवानी, नारायण शिवानी, मोहनदास फतनानी, हरिश उत्तवानी, गिरीश शिवानी, सुंदर आसवानी, देवीदास प्रदनानी, बाबू श्यामयानी, चंदीराम चंदानी, किशन लालवानी, जयकुमार जैसवानी आदि उपस्थित थे। अंत में सुख समृद्धि एवं अंचल में अच्छी बारिश का ‘‘पल्लव’’ पाकर सत्संग सभा समाप्त की गई। प्रसादी भण्डारे का भी आयोजन किया गया। आभार प्रदर्शन पुरूषोत्तम शिवानी एवं श्रीमती पुष्पा पमनानी ने प्रकट किया।