शब्द में यदि भक्ति मिल जाए तो वह प्रार्थना कहलाती है- मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा.
अरुण त्रिपाठी
रतलाम, 28 अगस्त २८ अगस्त ;अभी तक; जीवन में प्रार्थना का बहुत महत्व है। यह हमें सीधे प्रभु से जोड़ती है। प्रभु की प्रार्थना करके भक्ति भाव के साथ हम उनसे जुड़ सकते हैं। भक्ति यदि हमें शब्द में मिल जाए तो वह प्रार्थना कहलाती है।
यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा के शिष्य मुनिराज ज्ञानबोधी विजयजी म.सा. ने मोहन टाकीज, सैलाना वालों की हवेली में कही। मुनिराज ने जीवन में प्रार्थना का महत्व समझाते हुए कहा कि प्रवास में यदि भक्ति मिल जाए तो वह यात्रा कहलाती है। भोजन में यदि भक्ति मिल जाए तो वह प्रसाद कहलाता है। इसी प्रकार यदि श्रम में भक्ति मिल जाए तो वह सेवा कहलाती है। जल में भक्ति मिले तो वह अभिषेक कहलाता है। ठीक इसी प्रकार मकान में भक्ति मिल जाए तो वह मंदिर बन जाता है और पत्थर में भक्ति मिलती है तो वह प्रतिमा कहलाता है।
मुनिराज ने कहा कि शब्द में भक्ति मिलने पर वह प्रार्थना कहलाने लगती है। प्रार्थना से ही हमें प्रभु मिलते हैं और उनकी कृपा बरसती है। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे।