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सुरखी ; कांग्रेस के लिए अब गोविन्द का मुकाबला आसान नहीं रहा 

रवींद्र व्यास

  कांग्रेस का गढ़ रही मध्यप्रदेश के  सागर   जिले की सुरखी   विधानसभा  सीट का राजनैतिक  समीकरण २०२३ के विधान सभा चुनाव में बदलता जा रहा है   |  1977 के बाद से जनसंघ बनाम  बीजेपी  को जिस राजनैतिक  परिवर्तन की उम्मीद थी उसमे  सफलता  पाने के लिए बड़े पापड बेलने पड़े  |  अब इस सीट पर  एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिल सकता है | समाजवादी नेता का परिवार पहले ही बीजेपी का हो  गया था | 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने  वाले गोविन्द सिंह राजपूत भी बीजेपी  से जुड़ गए  और उप चुनाव में  प्रचंड मत से सीट जीती |  ये अलग बात है कि सुरखी वासियों को अब भी इन्तजार है अपनी विधान सभा सीट के निवासी को विधायक बनते देखने का | 

अधिकांश   ग्रामीण क्षेत्र वाला सुरखी  विधानसभा क्षेत्र, राहतगढ़ तहसील ,सुरखी और जैसीनगर आर आई सर्किल को मिलाकर बना है |  297 मतदान केंद्र वाला यह  विधानसभा  क्षेत्र 106 किमी लंबा और कई   विधानसभा  क्षेत्रो से घिरा है |  यहां के कुल  2  लाख 15   हजार 023 मतदाता में  1  लाख 16  हजार 559 पुरुष और 98 हजार 454 महिला तथा १० अन्य मतदाता  हैं।  9 5 फीसदी  हिन्दू आबादी में सामान्य वर्ग 31. 09 फीसदी , ओबीसी 36 फीसदी अजा के 20. 72 फीसदी ,अजजा के 6 . 19 जबकि ५ फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं |    कृषि और व्यापार  आधारित  इस विधानसभा क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था में   रोजगार की तलाश में पलायन एक बड़ी समस्या हैं |

सुरखी  विधानसभा क्षेत्र जातीय समीकरणों वाला  क्षेत्र है , इनमे यादव ,पटेल ,दांगी ठाकुर ,और लोधी समाज का वर्चस्व माना जाता है  |   इस  विधानसभा सीट पर आम तौर पर मतदाताओं ने कांग्रेस पर ही ज्यादा विश्वास किया है | आजादी के बाद के समय में देश के साथ सुरखी के लोग भी कांग्रेस का ही साथ देते रहे | 1952 से सुरखी  एक तरह से कांग्रेस का अजेय गढ़ रही है।1952 से 2020 तक यहां 16 चुनाव हुए जिनमे से कांग्रेस 9 बार और जनसंघ बनाम बीजेपी ५  बार जनता दल 2 बार   चुनाव जीती।  कभी भी सुरखी  का स्थानीय निवासी यहाँ से चुनाव नहीं जीत सका | 1967 और 1972 के चुनाव में यह विधानसभा सीट अजा के लिए सुरक्षित हो गई थी | 1977और 1990 में समाजवादी नेता लक्ष्मी नारायण यादव चुनाव जीते। 1993 मे पहली बार बीजेपी के भूपेंद्र सिंह ने यहां खाता खोला था। इसके पहले  चुनावों में बीजेपी लगातार तीसरे नंबर पर ही रही बीजेपी को औसतन 16 फीसदी मत से ही संतोष करना पड़ता था  |यहां से बीजेपी 1998, 2013 मे चुनाव जीती। कांग्रेस के विट्ठल भाई पटेल दो बार 1980और 1985मे चुनाव जीते,गोविंद राजपूत तीन बार कांग्रेस और  एक बार बीजेपी के टिकट पर   2003,2008, और 2018,उपचुनाव २०२०  मे जीते ।

                                      कांग्रेस से त्यागपत्र देने के बाद 2020 में हुए उप चुनाव में वे बीजेपी के टिकट पर 40991 मत से जीते थे।  दिलचस्प ये है की कांग्रेस नेता के तौर  पर गोविन्द सिंह जब भी जीते १० हजार से ऊपर से जीते जब हारे तो 200 से भी कम मत से हारे | इसके पीछे गोविन्द राजपूत का अपना एक अलग चुनावी समीकरण काम करता है |  इस विधान सभा का राजनैतिक मिजाज   पूर्णतः बदल गया है |  दरअसल कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे गोविन्द सिंह राजपूत ने सिंधिया के साथ  बीजेपी की सदस्यता ले ली | जिसके कारण २०२० में यहां हुए  उपचुनाव  में बीजेपी की पारुल साहू ने कांग्रेस का दामन थाम लिया | उप चुनाव में 2013 के उम्मीदवार आमने सामने थे फर्क सिर्फ इतना था पार्टी बदल गई थी | गोविन्द सिंह ने यह चुनाव जीत कर सुरखी में बीजेपी की पताका फहरा दी | जिसका बीजेपी को अरसे से इंतजार था |

   2018 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी की विधायक पारुल साहू का टिकट काट कर सुधीर यादव को टिकट दिया गया तो यहां पार्टी में बड़ा विद्रोह देखने को मिला बड़ी संख्या में  बीजेपी के कथित कार्यकर्ता भोपाल भी पहुंचे थे उन्होंने सागर सांसद लक्ष्मीनारायण यादव के बेटे सुधीर यादव को टिकट दिए जाने का विरोध किया चेतावनी दी थी कि अगर पारुल साहू को टिकट नहीं दिया गया तो वे पार्टी  त्याग देंगे पार्टी नेताओं ने सुधीर यादव का टिकट नहीं बदला और ना ही पार्टी कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़ी पर अन्दुरुनी तौर पर पार्टी प्रत्यासी का विरोध किया जिसके चलते कांग्रेस प्रत्यासी गोविन्द सिंह राजपूत 21418 मत से चुनाव जीत गए |2020 के विधान सभा उप चुनाव  में  गोविन्द सिंह के बीजेपी में आने से बीजेपी की पारुल साहू ने पार्टी से त्यागपत्र देकर कांग्रेस में सम्मलित हो गई इसका असर ये हुआ कि कांग्रेस 1977 के मत प्रतिशत से भी नीचे  पहुंच गई |

                                        दरअसल सुरखी विधानसभा क्षेत्र ठाकुर और पिछड़ा वर्ग बाहुल्य इलाका माना जाता है | इस क्षेत्र में जितना असर गोविंदसिंह का माना जाता है उतना ही असर भूपेंद्रसिंह का भी माना जाता है | यहि कारण  है कि उप चुनाव में गोविंदसिंह ने विधान सभा क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी ऐतिहासिक जीत  दर्ज कराई थी | जितने के बाद गोविन्द सिंह से बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं को जिस तरह की अपेक्षा थी वे उस पर खरे नहीं उतरे | भूपेंद्र सिंह के रिश्तेदार से उनका विवाद तो सर्वविदित है | हाल ही में भूपेंद्र सिंह के विरुद्ध जब मोर्चा बीजेपी के अंदर से खोला गया तो उसमे भी गोविन्द सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका बताई जाती है | इन हालातों के चलते अगर सुरखी  में कोई बड़ा उलटफेर हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा |

 कौन जीता-कौन हारा 

2003 :जीते– गोविन्द सिंह राजपूत कांग्रेस           –

2008: जीते- गोविन्द सिंह राजपूत _कांग्रेस ,

2013जीते –  पारुल साहू   -बीजेपी                  

2018 जीते–   गोविन्द सिंह राजपूत _कांग्रेस ,      

2020 जीते–   गोविन्द सिंह राजपूत _बीजेपी

 

1951- पं. ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी कांग्रेस 

1957- बीबी राय कांग्रेस 

1962- बीबी प्रेम नारायण राय कांग्रेस

1967- एन पी राय भारतीय जनसंघ 

1972- गया प्रसाद कबीरपंथी कांग्रेस 

1977- लक्ष्मीनारायण यादव जनता पार्टी

1980- विट्ठल भाई पटेल कांग्रेस 

1985- विट्ठल भाई पटेल कांग्रेस 

1990- लक्ष्मीनारायण यादव जनता दल 

1993- भूपेंद्र सिंह भाजपा 

1998- भूपेंद्र सिंह भाजपा 

सुरखी विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के गोविंद राजपूत  को हराना  आसान नहीं होगा | हालांकि इस बार चुनौती बड़ी कड़ी होगी , बीजेपी के मंत्री नेताओं के आपसी मनमुटाव ने कई चुनौतियां सामने खड़ी कर दी हैं | नेताओं के मनमुटाव को दूर करने के लिए अब स्वयं शिवराज सिंह आगे आ गए हैं | गोविन्द सिंह से मुकाबले के लिए अब कांग्रेस यहां से एक ऐसे प्रत्यासी की तलाश में जुटी है जो यहाँ के गोविन्द राजपूत के जातीय समीकरण को प्रभावित कर सके |

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