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*विद्यालय सामाजिक चेतना के केंद्र बनने चाहिए*
रमेशचन्द्र चन्द्रे
मन्दसौर ८ जून ;अभी तक; शिक्षा के माध्यम से समाज में चेतना जागृत हो यह विद्यालयों का प्रमुख उद्देश्य है, अतः हमारी शिक्षा संस्थाओं की गतिविधियां केवल अपने छात्रों तक सीमित ना रह कर समाज के जीवन को प्रभावित करने वाली और उसे दिशा देने वाली होनी चाहिए। हमें विद्यालयों के विशाल भवन का उपयोग सामाजिक क्रियाकलापों के लिए करना चाहिए। इन भवनों पर समाज का करोड़ों रुपया वह होता है किंतु इनका उपयोग केवल 6 या 8 घंटे के लिए होता है और शेष समय में उनमें ताले पड़े रहते हैं। शिक्षा संस्थाओं में छुट्टियां भी अन्य संस्थाओं की तुलना में अधिक होती है वर्ष भर में लगभग 4 या 5 महीने विद्यालय प्राय बंद ही रहते हैं, अतः यह विचार करने की आवश्यकता है कि इन विशाल भवनों का उपयोग समाज के कार्य के लिए किस प्रकार हो? हमें विद्यालय के भवन ही नहीं विद्यालय से संबंधित विशाल जन शक्ति का उपयोग भी सामाजिक चेतना जागृत करने हेतु करना चाहिए।
छात्र, शिक्षक, प्रबंध समिति, हितेषी, अभिभावकगण इन सब की विशाल जनशक्ति विद्यालय में उपलब्ध है। इस जनशक्ति का उपयोग योजनाबद्ध रीति से यदि किया जाए तो सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को हम शिक्षा के माध्यम से साकार कर सकते हैं
शासकीय और अशासकीय क्षेत्र के सक्रिय शिक्षक तथा समाज से सरोकार रखने वाले शिक्षा मनीषियों से मेरा यह निवेदन है।