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सुख व दुख दोनों में समभाव रखो- योग रूचि विजयजी

महावीर अग्रवाल 
मन्दसौर २३ अगस्त ;अभी तक ;   मानव का स्वभाव होता है कि उसे दुख में भगवान याद आते है, जीवन में जब तकलीफ आती है तो उसे परमात्मा का स्मरण होने लगता है। कई मनुष्य सुख के दिनों में प्रभु को भूल जाते है और धन सम्पत्ति कमाने में ही लगे रहते है। मनुष्य का अपना यह व्यवहार बदलना चाहिए और सुख और दुख दोनों में समभाव रखते हुए प्रभु को स्मरण व उनकी पूजा, धर्म आराधना करनी चाहिये।
                                           उक्त उद्गार प.पू. जैन संत श्री योगरूचि विजयजी म.सा. ने नईआबादी आराधना भवन हाल में आयोजित धर्मसभा मे कहे। आपने शुक्रवार को यहां धर्मसभा में कहा कि जीवन में मानव शरीर एक जैसा नहीं रहता है। यदि आज युवावस्था में तो कल वृद्धावस्था भी आयेगी और वृद्धावस्था में रोग भी होंगे और यदि रोग होंगे तो पीड़ा दुख तो अनुभव होगा ही। इसलिये जीवन में समभाव रखो। दुख सुख जीवन के अनिवार्य अंग है इन्हें समझने का प्रयास करो। जैन धर्म व दर्शन में अनादी मुनि का वृतान्त मिलता है जब उनके शरीर में भयंकर पीड़ा हुई तो उन्होने दीक्षा लेने का विचार किया जब शरीर की पीड़ा समाप्त हो ई तो उन्होनंे अपने दीक्षा लेने के विचार को नहीं त्यागा और सांसारिक राजपाठ, पत्नी सुख, पुत्र सुख सभी का त्याग कर दिया। जीवन में कभी भी ऐसा प्रसंग आने पर कभी पीछे मत हटो।
                                      मनुष्य भव में सुख दुख दोनो है- संतश्री ने कहा कि मनुष्य भव में सुख दुख दोनों आते व जाते रहते है। यह कभी टिके नहीं रहते है। इसलिये सुख में अहंकार मत करो। दुख में शोक मत करो। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। प्रभावना अनिल कुमार वरदीचंद धींग परिवार की ओर से वितरित की गई ।

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