पारिवारिक रिश्तेदारों के प्रति मोह से बचे, धर्म से नाता जोड़े- योग रूचि विजयजी
महावीर अग्रवाल
मन्दसौर ७ अगस्त ;अभी तक ; मनुष्य जीवन में हम जितना पारिवारिक रिश्तों मंे उलझे रहते है उतने ही हम धर्म से विमुख बने रहते है। पारिवारिक रिश्तों की परवाह करे लेकिन इन रिश्तों में इतने न उलझे कि आपका अगला भव बिगड़ जाये। मनुष्य जीवन बहुत पुण्य कर्म से मिला है इसका सदुपयोग करे, केवल पारिवारिक रिश्तेदारों में उलझकर इसे बर्बाद न करे। पत्नी, बच्चे, पोते, नवासे यह रिश्ते मृत्यु के बाद किसी काम के नहीं है। इन जन्म में आप जो धर्म आराधना, दान पुण्य तप तपस्या कर रहे है। उसका पुनीत फल ही आपका अगला भव निश्चित करेगा। इसलिये पारिवारिक रिश्ते के प्रति मोह छोड़ांे, धर्म से नाता जोड़ों
उक्त उद्गार प.पू. जैन संत पन्यास प्रवर श्री योग रूचि विजयजी म.सा. ने नईआबादी आराधना भवन मंदिर हाल में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने बुधवार को यहां धर्मसभा में कहा कि व्यक्ति राग अर्थात पारिवारिक रिश्तों के प्रति मोह हमारी दुर्गति का कारण बन सकता है। जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का अपनी पत्नी के प्रति बहुत अधिक मोह था इसी मोह के कारण वे धर्म से विमुख रहे और मृत्यु के बाद उन्हें नरक गति मिली। राम अर्थात मोह हमें दुर्गति की ओर प्रवृत्त कर सकता है इसलिये जीवन में इससे दूर रहे।
जहां आसक्ति है वहीं उत्पत्ति है- संत श्री ने कहा कि मनुष्य की जहां आसक्ति होती है मृत्यु के बाद उसकी वहां उत्पत्ति हो सकती है मित्र, भाई, पत्नी, बच्चों के प्रति ज्यादा मोह है तो मृत्यु के बाद सद्गति कैसे मिलेगी, विचार करे।
गुरू निंदा मत करो- संतश्री ने कहा कि जैन आगमों में गुरू निंदा को सबसे बड़ा पाप बताया है। गुरू जिसने ज्ञान दिया उसकी निंदा कदापि नहीं करें। यदि गुरू निंदा करोगे तो तुम्हें सद्गति नहीं बल्कि दुर्गति में जाना होगा। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। प्रभावना अभय कुमार हीरालाल नाहर परिवार के द्वारा वितरित हुई।