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    अखबार से जुड़ा हुआ हर व्यक्ति ‘‘पत्रकार’’ नहीं होता ‘संवाददाता’’ और ‘‘पत्रकार’’ में अंतर होता है

    (रमेशचन्द्र चन्द्रे)

    मंदसौर ९ जुलाई ;अभी तक ;  आजकल अवैधानिक रूप से चलने वाली यूट्यूब चैनल एक या आधे पृष्ठ का अखबार, ऑनलाइन प्रकाशित करने वाले लोग भी अपने आप को ‘पत्रकार’ घोषित करते है, जबकि उनकी योग्यता एव आचरण पर अनेक प्रश्न चिन्ह खड़े हुए हैं?
    जिन्होंने जर्नलिज्म को पढ़ा है,उन्हें मालूम है कि अखबार से जुड़े हुए घटकों में विभिन्न लोगों का योगदान रहता है, जिसमें प्रमुख रूप से अखबार का संचालन करने वाले व्यक्ति या समूह, उसके बाद होता है ‘‘प्रधान संपादक’’ जो केवल समाचारों का पादन एवं संयोजन करता है, दूसरा होता है ‘‘प्रबंध संपादक’’ जो अखबार को प्रकाशित होने के लिए जिन आवश्यक संसाधन तथा वस्तुओं की आवश्यकता होती है अर्थात साधनों की आवश्यकता होती है, उनको जुटाना एवं तीसरा होता है ‘‘स्तंभकार’’ जो किसी विशेष विषय को लेकर ही सोचता है तथा उससे संबंधित लोगों से संपर्क करता है तथा लेख लिखता है।
    इसके बाद होता है, ‘‘विज्ञापन प्रबंधक’’ जो अखबार के लिए विज्ञापन इकट्ठे करने की योजना बनाता है, क्यूंकि विज्ञापन ही अखबार के मूल्य को नियंत्रित करता है और विज्ञापन के कारण ही एक अखबार पाठकों के पास 25 रुपए लागत का होकर 2 से 5 रूपये में पहुंचता है। इसलिए विज्ञापन, अखबार का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
    इसके बाद अखबारों के ‘प्रसारण व्यवस्था’ का विभाग जो अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है  क्योंकि अखबारों को पाठकों तक पहुंचाने के लिए रात्रि को ही सारी व्यवस्थाएं करनी पड़ती है तब जाकर प्रातः काल अखबार पाठकों के हाथ में होता है।
    अब हम उस शब्द पर विचार करते हैं जिसे ‘पत्रकार’ कहते हैं इसलिए इसका विश्लेषण आवश्यक है।
    एक होता है ‘रिपोर्टर’ जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘प्रतिवेदक’ किंतु मीडिया की भाषा में इसे ‘संवाददाता’ कहा जाता है, परंतु यह पत्रकारिता से जुड़ा होने के बाद भी ष्पत्रकारष् नहीं कहा जा सकता।
    किसी भी अखबार में रिपोर्टर या संवाददाता की एक संक्षिप्त भूमिका होती है, क्योंकि वह अपने क्षेत्र में होने वाले घटनाक्रमों या कार्यक्रमों का केवल  समाचार बना कर प्रेषित करता है, उसमें उसका अपना कोई विचार या दृष्टिकोण नहीं होता है तथा उसे अपना दृष्टिकोण व्यक्त करने का अधिकार भी नहीं है, वह केवल जनता के बीच में एक कच्चे माल को समाचार के रूप में प्रस्तुत कर देता है, प्रकाशित सामग्री पर जनता अपने विचार, मौखिक या लिखित रूप में व्यक्त करती रहती है या कर सकती है।
    किंतु ‘पत्रकार’ एक बड़ा और व्यापक शब्द है जिसे अंग्रेजी में ‘जर्नलिस्ट’ कहते हैं, जो किसी भी घटनाक्रम एवं  कार्यक्रम को समाज तथा राष्ट्र के हितों से जोड़कर उसके हित- अहित की अभिव्यक्ति एवं उसके साथ कार्यपालिका एवं विधायिका से जुड़े हुए अनेक प्रश्न खड़े करता है, तथा अपने दृष्टिकोण को उस समाचार के साथ जोड कर लिखता है। क्योंकि वह केवल ‘संवाददाता’ या ‘रिपोर्टर’ नहीं है वह ‘पत्रकार’ होता है।
    यह ‘पत्रकार’ नाम का बहादुर प्राणी, इस बात की कदापि चिंता नहीं करता है कि सरकार या समाज उसके समाचार के प्रकाशन से खुश होती है या ना खुश, वह केवल निर्भीकता पूर्वक सत्य का उद्घाटन करता है। इसे कहते हैं ‘पत्रकार’ अर्थात जर्नलिस्ट। इसलिए अखबार या मीडिया से जुड़ा हुआ हर कोई व्यक्ति ‘पत्रकार’ नहीं होता है ।
    किंतु दुर्भाग्य है कि अखबारों के एजेंट, उनके हॉकर तथा पाठकों से बिल की वसूली करने वाले भी अपने आप को ‘पत्रकार’ कहते हैं तथा कुछ अखबारों ने तो संवाददाता के परिचय पत्र ऐसे ऐसे लोगों को प्रदान कर दिए हैं, जिनका इस विषय से कोई संबंध नहीं है
    इसलिए मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बनने के लिए या बनाए रखने के लिए ष्पत्रकारष् की अपनी एक योग्यता होती है तथा अखबार का एक विशेष चरित्र होता है।
    एक पत्रकार को अपनी लेखनी की शार्पनेस बनाए रखने के लिए निरंतर अध्ययन तथा खोजी दृष्टि होने के साथ-साथ तथा उसके जीवन में सैद्धांतिक दृढ़ता अति आवश्यक होती है क्योंकि पत्रकारिता एक सम्मान एवं समाज के प्रति जिम्मेदारी की विधा है।
    अतः अखबारों से जुड़े या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े हुए सभी लोगों को इस लेख में अपना स्थान अवश्य ही ढूंढ लेना चाहिए।

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