रमेशचन्द्र चन्द्रे
मंदसौर १५ मार्च ;अभी तक ; संपूर्ण विश्व में सबसे अधिक चुनाव भारत में होते हैं तथा कोई न कोई चुनाव आते ही रहते हैं। हमारे भारत में चुनाव आयोग के पास वर्ष में 365 दिन चुनाव का काम रहता है, जिसके कारण जो पैसा राष्ट्र के विकास पर खर्च होना चाहिए, वह चुनाव में ही व्यर्थ हो जाता है। इसलिए वन नेशन-वन इलेक्शन आखिर कैसे करेगा काम? क्या होगी इसकी रूपरेखा, जानें, इसके फायदे और नुकसान।
देश में एक बार फिर ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की चर्चा जोरों पर है। मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। आइए जानते हैं क्या है ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ और इसके लागू होने से क्या फायदे और नुकसान है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से किया एक और वादा पूरा कर दिया है। मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, तो इसके तहत लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। सरकार संसद के शीतकालीन सत्र यानी नवंबर-दिसंबर में इस बारे में बिल पेश करेगी। बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली कमेटी ने इस पर मार्च में ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि पहले चरण में लोकसभा और राज्यसभा चुनाव को एक साथ कराना चाहिए। कमेटी ने सिफारिश की थी कि, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ संपन्न होने के 100 दिन के भीतर ही स्थानीय निकाय चुनाव हो जाने चाहिए। क्या है ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का कॉन्सेप्ट?
वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि भारत में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक ही दिन या एक तय समय सीमा में कराए जाएं।
पीएम मोदी लंबे समय से वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत करते आए हैं। उन्होंने कहा था कि चुनाव सिर्फ तीन या चार महीने के लिए होने चाहिए, पूरे 5 साल राजनीति नहीं होनी चाहिए। साथ ही चुनावों में खर्च कम हो और प्रशासनिक मशीनरी पर बोझ न बढ़े।
आजादी के बाद एक साथ हो चुके हैं चुनाव-
भारत के लिए यह कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है देश में आजादी के बाद से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से एवं कांग्रेस की चुनावी राजनीति के स्वार्थ से अलग-अलग समय पर होने लगे।
एक देश एक चुनाव को मोदी सरकार क्यों जरूरी मानती है, इसे समझिए-
इससे जनता को बार-बार के चुनाव से मुक्ति मिलेगी। चुनावी खर्च बचेगा और वोटिंग परसेंट में बढ़ोतरी होगी ।
हर बार चुनाव कराने पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, यह रुपया देश के विकास में लगाया जा सकता हैं।
इसके अलावा देश में राजनीतिक स्थिरता लाने में ये अहम भूमिका निभा सकता है।
बार-बार इलेक्शन की वजह से बार बार नीतियों में बदलाव की चुनौती कम होगी। सरकारें सदैव चुनावी मोड में जाने की बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी। प्रशासन को भी इसका फायदा मिलेगा, गवर्नेंस पर ज्यादा ध्यान देकर मुझे काम करने के लिए समय बढ़ेगा।
पॉलिसी और आचार संहिता जैसी स्थिति से छुटकारा मिलेगा।अधिकारियों का समय और एनर्जी बचेगी।
इसका बड़ा आर्थिक फायदा भी है, सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी।
पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च-स्तरीय समिति ने पहले ही कदम के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की तथा इसके बाद 100 दिनों के भीतर एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की थी। इस समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि- त्रिशंकु स्थिति या अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी स्थिति में नयी लोकसभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। समिति ने कहा कि- लोकसभा के लिए जब नये चुनाव होते हैं, तो उस सदन का कार्यकाल ठीक पहले की लोकसभा के कार्यकाल के शेष समय के लिए ही होगा।
जब राज्य विधानसभाओं के लिए नए चुनाव होते हैं, तो ऐसी नयी विधानसभाओं का कार्यकाल (अगर जल्दी भंग नहीं हो जाएं) लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल तक रहेगा।
समिति ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था लागू करने के लिए, संविधान के अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) में संशोधन की आवश्यकता होगी। समिति ने कहा, ‘इस संवैधानिक संशोधन की राज्यों द्वारा पुष्टि किए जाने की आवश्यकता नहीं होगी।’ उसने यह भी सिफारिश की कि भारत निर्वाचन आयोग, राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करना होगा।
समिति ने कहा कि- इस उद्देश्य के लिए मतदाता सूची से संबंधित अनुच्छेद 325 को संशोधित किया जा सकता है।