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    Homeप्रदेशकुम्भ का मेला हिन्दू सनातनीयो का महा महोत्सव है- सन्त श्री शम्भूलाल

    कुम्भ का मेला हिन्दू सनातनीयो का महा महोत्सव है- सन्त श्री शम्भूलाल

    महावीर अग्रवाल
    मन्दसौर ११ फरवरी ;अभी तक ;   श्री प्रेम प्रकाश पंथ के 104वें चेत्र मेला प्रयागराज महाकुंभ में श्री प्रेम प्रकाश पंथ की छावनी एवं विगत दिनों श्री प्रेम प्रकाश आश्रम मन्दसौर के सम्पन्न 15वें वार्षिक महोत्सव के त्रिवेणी धार्मिक अनुष्ठान कार्यक्रम की अपार सफलता को स-स्नेह मिलन समारोह के रूप में श्री प्रेम प्रकाश आश्रम में संत श्री शम्भूलालजी के सानिध्य में सत्संग एवं भोजन प्रसादी के भण्डारे के साथ मनाया गया।
                                        इस आशय की जानकारी श्री प्रेम प्रकाश सेवा मण्डली के अध्यक्ष पुरूषोत्तम शिवानी ने देते हुए बताया कि संत श्री शम्भूलालजी प्रेम प्रकाशी ने सत्संग हाल में उपस्थित संगत पर अपने मुखारविन्द से महाकुम्भ के मेले के महात्म को अत्यन्त ही सारगर्भित व सरल शब्दों मे समझाते हुए बताया कि कुंभ का मेला हिन्दू सनातनीयो का मेला नहीं महा महोत्सव है। कुंभ मेले की परम्परा पर प्रकाश डालते हुए संत श्री ने कहा कि समुद्र मंथन के समय जो जगत के कल्याण हेतु 14 रत्न प्राप्त हुए थे उसे देवताओं व दैत्यों ने बराबर-बराबर बांट लिये। इस बंटवारे के बाद जो जहर बचा उसे सबने लेने से इंकार कर दिया। उस जहर से सृष्टि जलने लगी सभी देवी-देवताओं और दैत्यों ने भगवान श्री विष्णु से प्रार्थना कर जहर ग्रहण करने को कहा। भगवान विष्णु ने कहा कि इसका उपाय मेरे पास नहीं है आप देवादिपति देवों के देव भगवान श्री शंकरजी से निदान की प्रार्थना करे ,वे ही कुछ कर सकने में सक्षम है। भगवान शिवशंकर ने प्रार्थना स्वीकार कर उस जहर को पीकर कंठ में रोक लिया और रोककर देवभूमि हरिद्वार के ऋषिकेश गये जहां पर आज भी निलकंठ महादेव मंदिर है। उस स्थान पर बैठकर भगवान ने उस जहर को पीकर पचाया तभी भगवान शिवशंकर का नाम नीलकंठ पड़ा। भगवान श्री अमृत को बहाने के लिये कलश लेकर जब गये तब उस समय में उक्त अमृत की बुुंदे जहां-जहां पड़ी वहां वहां पर महाकुंभ का मेला लगता है। प्रत्येक कुंभ के मेले में मोनी अमावस्या के दिन का मुख्य स्नानका दिन होता है। इसलिये इस वर्ष प्रयागराज में महाकुंभ के मोनी अमावस्या के दिन 10 करोड़ श्रद्धालु संगत पहुंच गई।
    संतश्री शंभुलालजी ने महाकुंभ की सच्ची कथा को अत्यन्त ही सरल एवं सारगर्भित रूप में सत्संग के माध्यम से बताकर श्रद्धालु संगत को मंत्रमुग्ध व भावुक कर दिया। आपश्री ने मोनी अमावस्या के अमृत स्नान के महात्म्य को प्रतिपादित करते हुए कहा कि उस दिन त्रिवेणी संगम में स्नान हेतु आकाश मण्डल से तारे उतरकर स्नान करते है। अखाड़ो के सन्यासी, तपस्वी स्नान कर लोक कल्याण करते है। आपने कहा कि वे तारे नहीं देवता के रूप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप मंे देवता आते है। आपने प्रेम प्रकाश पंथ के पर प्रकाश डालते हुए तृतीय बा‌दशाही सत्गुरु स्वामी शान्ति प्रकाश जी महाराज के भजन
    “गुरु जा प्यारा। गदिजी सतनाम साक्षी चओ”
    सतनाम साक्षी च ओ।।
    “गुरु अजा प्यारा ”
    कहे टेऊँ सतनाम साखी,
    मिठो आहे जिएं माखी
    अर्थात सतनाम साक्षी गुरू मंत्र मनुष्य के जीवन में सुखों के मार्ग का द्वार है।
    संतश्री ने सेवाधारी संगत को आशीर्वाद स्वरूप सतगुरूओं का प्रसाद पखर प्रसाद प्रदान किया। सस्नेह प्रसाद भण्डारा पाकर संगत निहाल हुई। सुख व समृद्धि का ‘पल्लव’ अरदास पाकर  कार्यक्रम समाप्ति उपरांत आभार प्रदर्शन दादी पुष्पा पमनानी एवं दयाराम जैसवानी ने प्रकट किया।

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